Friday, 9 July 2010

भीतर की खुरचन


















खोखली दिवारों के
खाली मकान में
रहती हूँ मैं.
खाली बर्तन की
तेज़ आवाज़ सी
झूठी हंसी में ..
खनकती हूँ मैं .

भीतर के दर्द का
लावा बनती हूँ जब ..
तब आँखों की कोरो से
गिरती हूँ मैं .

लोग कहते हैं
बात-बात पर रोती हूँ मैं
ये ना समझें कि
वेदना के कीचड़ में
दुनियां को
खिलते कमल सा
दिखाती हूँ मैं .

सोचा करते हैं
'वो' भी कि ..
उनसे जुदा रह,
खुश रहती हूँ मैं.
'वो' ना समझे कि
हर पल उन्हें
याद करती हूँ मैं.

रक्त-रंजित एहसासों में
सिमटी रहती हूँ मैं
फिर भी हंसी के
चिथड़ो में
लिपटी रहती हूँ मैं.

एक हंसी की खातिर
तुम्हे क्या पता...
कितने गम के
कपाटो से
गुजरती हूँ मैं.

दस्तक देते हैं
कितने ही आंसू..
पलकों की
झिर्रियों से
मगर ...
हंसी के डोले में
सजा, उन्हें
फुसलाती हूँ मैं.

कुरेदो ना
इस से ज्यादा
मेरे भीतर की
खुरचन को..
कब ना जाने
खोखली दिवार
सी ढह जाऊ मैं ...

बस...
बस यहीं रोक लो..
शब्दों की चाल को
इन शब्दों में
पिघल के कहीं
ढल के रह जाऊ ना मैं.

47 comments:

HBMedia said...

bahut badhiya ...hamesha ki tarah!

मनोज कुमार said...

अनामिका जी खुरचन को खुरच-खुरच कर रख दिया है आपने शब्दों में। ऐसा लगता है कि झूठी हंसी के पैबंद लगा कर दिल में दर्द लिए हंसते रहते हैं।

Girish Kumar Billore said...

एक हंसी की खातिर
तुम्हे क्या पता...
कितने गम के
कपाटो से
गुजरती हूँ मैं.
सच कहूं ये बात मेरे आस पास की है पर आपने बड़े सलीके से कह दी

Jandunia said...

शानदार पोस्ट

स्वप्न मञ्जूषा said...

waah !!
tum itna jo muskura rahi ho kya gam hai jisko chhupa rahi ho...!!
khoobsurat..

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत ही सुन्दर खास कर निम्न पंक्तियाँ

दस्तक देते हैं
कितने ही आंसू..
पलकों की
झिर्रियों से
मगर ...
हंसी के डोले में
सजा, उन्हें
फुसलाती हूँ मैं.

M VERMA said...

एक हंसी की खातिर
तुम्हे क्या पता...
कितने गम के
कपाटो से
गुजरती हूँ मैं.
बहुत खूबसूरती से आपने इस मर्म को बयान किया है
सुन्दर रचना

अजित गुप्ता का कोना said...

nice

RAJWANT RAJ said...

TLASHTE HAI AE SUKUN TUJHE HM
JHROKHON SE JHANK KE
JANE KAISI SHKHSHIYT HAI TERI
KI NAZAR AATI HI NHI
YE GM OUR SUKOON EK HI THALI KE CHTTE BTTE HAI . ENHE JITNA PUCHKARO YE UTNA HI PRESHAN KRTE HAI .

वाणी गीत said...

एक हंसी कितनी वेदना छिपा सकती है ...
यह कविता बखूबी बता सकती है ...
मुग्ध हुए हम तो !!

रश्मि प्रभा... said...

लोग कहते हैं
बात-बात पर रोती हूँ मैं
ये ना समझें कि
वेदना के कीचड़ में
दुनियां को
खिलते कमल सा
दिखाती हूँ मैं .
bahut badhiyaa

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

रचना बहुत अच्छी लगी ... मन की वेदनाओं को शब्द दी हैं आप ...

राजकुमार सोनी said...

क्या बात अनामिका जी
आपने तो खामोश कर दिया
आप के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि
भाषा का इतना जबरदस्त प्रवाह बनाकर चलती है कि कोई भी एक बार में पूरी रचना पढ़ जाता है.
आप आने वाले समय में और भी कमाल करेगी इसका मुझे भरोसा है.

Avinash Chandra said...

खोखली दिवारों के
खाली मकान में
रहती हूँ मैं.
खाली बर्तन की
तेज़ आवाज़ सी
झूठी हंसी में ..
खनकती हूँ मैं .


सन्नाटा छा गया, कैसे लिखा ऐसे?

Mahfooz Ali said...

खोखली दिवारों के
खाली मकान में
रहती हूँ मैं.
खाली बर्तन की
तेज़ आवाज़ सी
झूठी हंसी में ..
खनकती हूँ मैं .


पहली पंक्तियों ने ही दिल को छू लिया.... बहुत ही मनोहक रचना...

--
www.lekhnee.blogspot.com


Regards...


Mahfooz..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दर्द को
शब्दों में ढाल
कविता सी
बहती हूँ मैं....

खूबसूरत अंदाज़ भीतर की खुरचन का...

kshama said...

कुरेदो ना
इस से ज्यादा
मेरे भीतर की
खुरचन को..
कब ना जाने
खोखली दिवार
सी ढह जाऊ मैं ...

Baap re baap! Kya likhtin hain aap! Gazab dhaya hai!

पूनम श्रीवास्तव said...

anamika ji, bahut hi bhauokta se bhariek behatreen rachna jo andar tak dil ko khurach gai.
poonam

vandana gupta said...

ाअनामिका जी
वेदना का जीवन्त चित्रण कर दिया………………हर लफ़्ज़ से दर्द ही दर्द टपक रहा है…………किसी एक पंक्ति की क्या तारीफ़ करूँ।

Padm Singh said...

अच्छी रचना ... किन्तु रचना का लक्ष्य समझ नहीं आता ... मन कुछ मलिन सा हो जाता है ... शायद संवेदना ही के कारण

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बस...
बस यहीं रोक लो..
शब्दों की चाल को
इन शब्दों में
पिघल के कहीं
ढल के रह जाऊ ना मैं.
--
मार्ामिक और सुन्दर रचना के लिए बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

Aapne apne dil ke jajbaaton ko kured kar bahut hi dardnaak racnha likhi hai ... bahut lajawaab rachna ban aayi hai ,, badhaai ...

Aruna Kapoor said...

एक हंसी की खातिर
तुम्हे क्या पता...
कितने गम के
कपाटो से
गुजरती हूँ मैं.

.....सुंदर भाव प्रस्तुत किया है आपने!...बधाई!

चैन सिंह शेखावत said...

एक हंसी की खातिर
तुम्हे क्या पता...
कितने गम के
कपाटो से
गुजरती हूँ मैं.


aantrik vedna ki marmik abhivyakti.

Mithilesh dubey said...

kya bat hai, aapki ye rachna dil ko chu gayi, bahut badhiya laga

राजेश उत्‍साही said...

अनामिका की सदायें

गम के कपाटों की दरारों से आती हैं

खोखली दीवारें भी कुछ बुदबुदाती हैं

प्रेमिल आंखें क्‍यों देख नहीं पाती हैं
जितना खुरचोगे उतने ही जख्‍म उभर आएंगे

प्रेम वैसे ही थोड़ा है हम कहां कहां लगाएंगे

विरह को ही आवरण बना लो

शब्‍दों को ही आचरण बना लो

मन को अपने आमरण बना लो।

स्वप्निल तिवारी said...

खोखली दिवारों के
खाली मकान में
रहती हूँ मैं.
खाली बर्तन की
तेज़ आवाज़ सी
झूठी हंसी में ..
खनकती हूँ मैं .



di....bahut din bad aaya..:)

ye wala hissa sabse badhiya tha nazm ka... baki ki nazm is hisse ki khubsurti tak nahi pahunch payi ... khokhle bartan si hansi wali baat to zabardast hai ./..

Apanatva said...

ek ek pankti chi nisha chod gayee dil par............
dua hai ise ehsaas se koi hakeekat me na guzre...........

रचना दीक्षित said...

कुरेदो ना
इस से ज्यादा
मेरे भीतर की
खुरचन को..
कब ना जाने
खोखली दिवार
सी ढह जाऊ मैं ...


बस...
बस यहीं रोक लो..
शब्दों की चाल को
इन शब्दों में
पिघल के कहीं
ढल के रह जाऊ ना मैं.

अनामिका आज तो कुछ अलग ही बात है,सुना है की खुर्जा की खुरचन बहुत अच्छी होती है पर आपकी इस खुरचन का तो जवाब नहीं क्या कहूँ अब ग़म की फेहरिस्त तो कानून के हाथ की तरह बहुत लम्बी होती है सो कुछ न कहना ही बेहतर है

डॉ टी एस दराल said...

दिल में दर्द छुपाकर हँसते रहना --क्या बात है । छूपे दर्द की अभिव्यक्ति भी कमाल की है ।
बहुत सुन्दर ।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

दिल की खुरचन .....जिन्दगी की सच्चाई.........कुछ याद आए लम्हें ...........और आँख भर आई............

बहुत सुन्दर रचना.............

Anupama Tripathi said...

amazing..very deep and full of melancholy..congrars for the beautiful post.

meri dunia said...

अनामिका जी !मैं कल रात se आप से संपर्क करने की कोशिश कर रही हूँ लेकिन अभी तक असमर्थ हूँ.मेरा इ-मेल पता है-shobhaguptablog@gmail.com संभव हो तो कृपा करके संपर्क करें.मेरा ब्लॉग पता है-http://meriduniameinmeribaat.blogspot.com/

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

ऐ रफीक रकाबत अच्छी नहीं एहतेराम करने वालों से!
दर्द हमें भी होता है बेशक शाद रहते हैं!
हंसी में ना जाने क्या-क्या छुपा लेना पड़ता है, इंसान को!
खुरच दिया आपने, हरा कर दिया...... ना जाने कब नींद आएगी!

सुधीर राघव said...

कुरेदो ना
इस से ज्यादा
मेरे भीतर की
खुरचन को..
कब ना जाने
खोखली दिवार
सी ढह जाऊ मैं ...

बहुत सुन्दर रचना.............

प्रज्ञा पांडेय said...

स्त्री की सदियों की पीड़ा उसकी खनकती हंसी की वजह है .. ना हँसे तो जाये कहाँ ....उसके अंतर्मन की कहानी लिख दी आपने !बहुत सुन्दर .आपको बधाई इस सुन्दर कविता के लिए

Sadhana Vaid said...

आपने तो कमाल ही कर दिया अनामिकाजी ! वेदना की इतनी मर्मस्पर्शी और सशक्त अभिव्यक्ति कितने दिनों के बाद पढने को मिली ! अंदर तक भिगो गयी आपकी रचना ! बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें !

मनोज भारती said...

भीतर के दर्द की गहरी अभिव्यक्ति है इस कविता में ...हँसी का मनोविज्ञान किस-किस दर्द से होकर गुजरता है और पीछे कितनी सारी
खुरचन छोड़ जाता है । बहुत खूब !!! लाजवाब

निर्मला कपिला said...

दर्द को शब्दों मे ढाल
कविता मे बहती हूँ मै।
बहुत सुन्दर गहरे भाव लिये उमदा रचना।
बस यहीं रोक लो..
शब्दों की चाल को
इन शब्दों में
पिघल के कहीं
ढल के रह जाऊ ना मैं.
बस जरा सी सहानिभूति और बह जाता है सब दर्द गिले शिकवे। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।

सूबेदार said...

एक हसी की खातिर -------
क्या बात है अनामिका जी
सबकुछ खामोश
बहुत अच्छी कबिता
बहुत-बहुत धन्यवाद.

rashmi ravija said...

रक्त-रंजित एहसासों में
सिमटी रहती हूँ मैं
फिर भी हंसी के
चिथड़ो में
लिपटी रहती हूँ मैं.

ओह्ह क्या लिख दिया ये.... वेदनासिक्त हंसी...की पूरी कहानी लिख दी..

शोभना चौरे said...

antrmn ko chuti sundar kavita .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

कुरेदो ना
इस से ज्यादा
मेरे भीतर की
खुरचन को..
कब ना जाने
खोखली दिवार
सी ढह जाऊ मैं ...
...मार्मिक अभिव्यक्ति.

दीपक 'मशाल' said...

क्या खूब समेटा है दर्द को एक ही कविता में.... बधाई..

madhav said...

aapki kavitaen sidhi dil me utar jaati hain.apni sanvednaon ko isi tarah bachaye rakhen,jeevan ke jhanjhavaton ke beech bhi.
sahitya sugandh par meri taja kavita padhne ka kasht karen.
mahavnagda.blogspot.com

शोभा said...

खोखली दिवारों के
खाली मकान में
रहती हूँ मैं.
खाली बर्तन की
तेज़ आवाज़ सी
झूठी हंसी में ..
खनकती हूँ मैं .
वाह वाह क्या बात कही है। अति सुन्दर।

संजय भास्‍कर said...

आपने तो कमाल ही कर दिया अनामिकाजी