हर पल होंठों पे बसते हो ....
हर पल होंठों पे बसते हो
मेरे मौन को तोड़ा करते हो
धूप - छाँव दे मोह -माया की
अपनी महता तोला करते हो.
अश्रु गगरी नीर भरे जब
वेदना-विह्व्हल हो जाती है
मोहिनी सूरत ला ख्यालों में
तब अंतस को बहलाया करते हो.
क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो
यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
56 comments:
बहन अनामिका,
जीवन के उन मृदु भावों से सुसज्जित जो किसी के अंतस में स्थित एकांतवास का सुख अनुभव करने से वंचित रहकर प्रवंचना का जीवन बिताने को गहन अंधकर की कंदरा में तिरोहित कर दिए जाते हैं, ऐसे अश्रु कणों को जो गरिमा आपने प्रदान की है, वह सर्वथा अतुलनीय है!! सधुवाद!!
क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो
बहुत ही खूबसूरत भाव, आपके शब्दों में सम्मोहन है !
यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
ख्वाबो-ख्यालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
अच्छी रचना है...बधाई.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ब्यक्ति जीवन क़े करीब
बहुत-बहुत बधाई
यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
ख्वाबो-ख्यालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
ये यादें ऐसी ही होती हैं बहुत सुन्दर रचना। बधाई
मन ही तो है जो धोखा दे जाता है ....
जब यादों के गलियारे में हो तो फिर ढूँढती क्यों हो ? वो तो यादों में ही होना चाहिए :):)
खैर मजाक एक तरफ ....
बहुत खूबसूरत और प्रेम पगी रचना ...
आंतरिक करूणा से भरी यह रचना हृदय फलक पर गहरी छाप छोड़ती है। संवेदना के कई स्तरों का संस्पर्श करती यह रचना मन की छटपटाहट को पूरे आवेश के साथ व्यक्त करती है।
अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!
यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
अनामिका जी आपकी एक और खूबसूरत सदा के लिए बधाई और धन्यवाद
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
बहुत सुंदर रचना,धन्यवाद
bahut sundar prastuti............shabda-shabda manobhaavo ko darshaataa hai.........yahii aapkii khoobi hai
प्रेम की मौन अभिव्यक्ति।
bahut sunder anamika ji :)
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !!
...behatreen !!!
बहुत सुन्दर रचना....एकाकीपन में भी किसी अपने के होने का सुन्दर चित्र खींचती हैं यह पंक्तियाँ|
सुन्दर अभिव्यक्ति !!
अनामिका, अपना तो कोई ऐसा अनुभव है नहीं अब क्या बताएं? बस इतना कह रही हूँ कि ऐसा कोई सताए तो हमें याद कर लिया करो, पीड़ा कम हो जाएगी। हा हा हा हा।
सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति, गणेश चतुर्थी एवम ईद की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत पारदर्शी रचना ! मन के हर कोने को उजागर कर गयी ! बहुत सुन्दर !
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
सम्मोहित करने वाले भाव ।
ये रचना दो तरफ़ इशारा करती है एक तो प्रेयसी का इन्तज़ार और दूसरा अपने अन्दर जो बैठा है उसके लिये विकलता और दो होते हुये भी एकाकार का भाव है।
बहुत ही सुन्दर रचना दिलको छु गयी .......आभार
खूबसूरत भाव--अच्छी लगी रचना.
अनामिका जी मन तो चंचल होता है और जो चंचल होता है वो इस्थिर कहाँ ?कभी अपने पास तो कभी जिसके लिए भटकता है उसके पास . बड़े उहापोह की भावना प्रेम भरी दर्शा रही रचना बहुत अच्छी है .......
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
बहुत सुन्दर!
बहुत सुंदर -
मन की गहरी भावनाओं का
सजीव वर्णन -निश्छल प्रेम में डूबी -
बहुत सुंदर कविता -
क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो
bahut khoobsurat bhav diye hain
badhai
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............
प्रेम की कसक लिए सुंदर भाव
mukhar chup ko bya krti shandar kvita ke liye kya bat ! kya bat ! kya bat! .
यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
बहुत गहरी प्रेमानुभूति.सुंदर भाव, सुन्दर अभिव्यक्ति
क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था....
बहुत अच्छा लिखा है... सुन्दर भाव
BHUT KHOOB, ACHA LAGA
Bahut sunder abhivykti.
अच्छी लगी रचना.....
दिलको छु गयी !!!!
बहन जी आदाब ईद मुबारक हो गणेश चतुर्थी की बधाई हो आप्म्की रचना अगर में नहीं पढ़ पता तो यकीन maaniye आज साहित्यिक रूप से में भूखा प्यासा रह जाता बहन जी भुत भुत बधाई. अख्तर खान अकेला कोटा राजथान
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.......
मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो
अति सुंदर शब्दों की माला....अर्थात कविता!
यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ ....
प्रेम नें उन्मादी मीरा की याद करा दी आपने ... सुंदर पंक्तियाँ हैं .... लाजवाब ....
बहुत ही सुंदर और मनभावन रचना .
पढ़कर बहुत अच्छा लगा .
आभार .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
उत्कट प्रेमाभिव्यक्ति प्रशंसनीय ।
क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....
एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html
बहुत ही सुंदर रचना .
अश्रु गगरी नीर भरे जब
वेदना-विह्व्हल हो जाती है
मोहिनी सूरत ला ख्यालों में
तब अंतस को बहलाया करते हो
bahut sundar rachna aur saath hi ganesh chaturathi ki badhai .
भावों की अभिव्यक्ति बेहद सराहनीय
बड़ी खूबसूरती से शब्द दिए...सुन्दर भाव..बधाई.
bhao ki sunder abhivayakti...........
upendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )
बहुत सुन्दर कविता है........बधाई !
aapki rachnayen prem pradhaan hoti hai aur shbdon mein maadhury hota hai..!
आप की रचना पढ़ी अच्छी लगी।
दुख तो इसमें भी है-मगर आशा की किरण लिए हुए।
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