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तेरी दूरियाँ मुझसे इतनी क्यों हैं ?
इन दूरियों का दर्द इतना बे-दर्द क्यों है?
हर अरमान पर जल उठती हूँ कि ...
तेरी जुदाई भी सलाखों सी लगती क्यों हैं ?
न चाह कर भी साँसे आती-जाती हैं ?
इन सांसों पर तेरा नाम है फ़िर तुझ बिन ये चलती क्यों हैं ?
तेरी यादों का आना -जाना मार ही तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??
भर जाता है इतना दर्द क्यों सीने में ..
रूह भी ज़ार - ज़ार होती क्यों है ??
जब हम तुझ बिन जी ही नहीं सकते तो
खुद को जीने का ये भरम क्यूँ है ?
39 comments:
भर जाता है इतना दर्द क्यों सीने में ..
रूह भी ज़ार - ज़ार होती क्यों है ??
वाह! अनामिका जी, बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है ! यह शेर तो दिल में बस गया !
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार !
विरह की वेदना -
असह्य पीड़ा से भरी -
मर्मस्पर्शी रचना -
तेरी दूरियाँ मुझसे इतनी क्यों हैं ?
इन दूरियों का दर्द इतना बे-दर्द क्यों है?
virah ka dard ujagar karti rachna .
बेहतरीन पंक्तियाँ।
Phirbhee ye zinda laash chalti rahtee hai! Zindagee kee bedardee kya khoob shabdon me utaree hai...bada achha lag raha hai jo aapne phir se likhna shuru kar diya!
अत्यंत भावपूर्ण रचना है .........अनामिका जी
अत्यंत भावपूर्ण कविता...वाह..
नीरज
न चाह कर भी साँसे आती-जाती हैं ?
इन सांसों पर तेरा नाम है फ़िर तुझ बिन ये चलती क्यों हैं ?
jab naam hai saanson per to adhoora raha kahan ... bechain man yun hi sochta hai
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
भर जाता है इतना दर्द क्यों सीने में ..
रूह भी ज़ार - ज़ार होती क्यों है ??
जब हम तुझ बिन जी ही नहीं सकते तो
खुद को जीने का ये भरम क्यूँ है ?.........
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ....
जुदाई में झुलसने वाला दृश्य...अच्छा लेखन
बहुत दर्द भरी रचना ! जिस दिन इन 'क्यूँ' का जवाब मिल जायेगा सारे संशयों का समाधान हो जायेगा ! हर एक शब्द व्यथा के घोल में डूबा मेरे मन को भी संक्रमित करता जाता है ! इतनी प्रभावशाली प्रस्तुति के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !
मन की कश्मकश को बखूबी लिखा है ...
न चाह कर भी साँसे आती-जाती हैं ?
इन सांसों पर तेरा नाम है फ़िर तुझ बिन ये चलती क्यों हैं ?
जब नाम लिखा है तो कहाँ उसके बिना रहीं ?
बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति ...मार्मिक कहूँ तो ज्यादा उचित होगा ...
बेहतरीन...छूती हुई पंक्तियाँ.
अनामिका जी एक बेहद संवेदनशील रचना , मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बढ़ायी
फिर से एक बेहद संवेदनशील रचना. यह दूरियां नज्दीकियाँ कब बनेगी. बेहतरीन रचना के लिए बधाई.
न चाह कर भी साँसे आती-जाती हैं ?
इन सांसों पर तेरा नाम है फ़िर तुझ बिन ये चलती क्यों हैं ?
एक एक शब्द संवेदनाओं से भरा है, बेहद मार्मिक रचना...बेहतरीन लेखन...
तेरी यादों का आना -जाना मार ही तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??
बहुत दर्द उकेरा है आपने इन पंक्तियों में ..याद का आना मार देने की तरह ...कितना दर्द भरा है
• इस कविता के द्वारा आपने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि आपकी रचनात्मकता दर्द के मरुस्थल में भी सूखी नहीं है।
anamika ji
shabdo ki syahi meapni kalam ko dubokar apne jajbaaton ko bahut behatreen tareeke se aapne a
pannon par ukera hai bahut hi bhav bheeni prastuti ke liye aapkobahut bahut badhai v dhanyvaad.
poonam
तेरी यादों का आना -जाना मार ही तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??
भर जाता है इतना दर्द क्यों सीने में ..
रूह भी ज़ार - ज़ार होती क्यों है ??
बहुत बढ़िया...... गहन अभिव्यक्ति लिए वेदना के भाव
हर अरमान पर जल उठती हूँ कि ...
तेरी जुदाई भी सलाखों सी लगती क्यों हैं ?
आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति...
bahur sundar...
"दूरियां ना होती तो जुदाई कौन जानता
मोहब्बत का मतलब कुछ और निकलता
उस के पाक होने का अहसास कैसे पता पड़ता
निरंतर इंसान खुद की सोचता"
सदा की तरहसुन्दर सोच
जब हम तुझ बिन जी ही नहीं सकते तो
खुद को जीने का ये भरम क्यूँ है ?
बेहतरीन शब्द रचना ।
तेरी दूरियाँ मुझसे इतनी क्यों हैं ?
इन दूरियों का दर्द इतना बे-दर्द क्यों है?
हर अरमान पर जल उठती हूँ कि ...
तेरी जुदाई भी सलाखों सी लगती क्यों हैं ?
badhiya rachna har baar ki tarah
behtarin rachna se sarabor karne k liye shukriya..........
विरह की वेदना को दर्शाती सुन्दर अभिव्यक्ति
अत्यंत भावपूर्ण रचना|
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|
तेरी दूरियाँ मुझसे इतनी क्यों हैं ?
इन दूरियों का दर्द इतना बे-दर्द क्यों है?
हर अरमान पर जल उठती हूँ कि ...
तेरी जुदाई भी सलाखों सी लगती क्यों हैं ?
बहुत अच्छी रचना, बधाई.
जब हम तुझ बिन जी ही नहीं सकते तो
खुद को जीने का ये भरम क्यूँ है ?
बहुत खूब..
सुंदर रचना..
तेरी यादों का आना -जाना मार ही तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??...
उफ्फ ... उनकी यादें भी क्या गुल खिलाती हैं ...
very impressive and heart touching too .....
जब हम तुझ बिन जी ही नहीं सकते तो
खुद को जीने का ये भरम क्यूँ है ?
बहुत कुछ कह जाती है कुछ पंक्तियाँ....
बेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत भावपूर्ण कविता.
तेरी यादों का आना -जाना मार ही तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??
बहुत सुन्दर बेहतरीन रचनाओ से सुसज्जित ये आप का ज्ञान से भरा ब्लॉग आनंद दाई है शुभकामनायें आप हमारे ब्लॉग पर भी आ अपना मार्ग दर्शन व् समर्थन दें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
ek marm sparshi ghazal.bahut achchi lagi.
हर अरमान पर जल उठती हूं कि …
तेरी जुदाई भी सलाखों सी लगती क्यों हैं ?
आपकी रचना का विरहालाप अंदर तक छू रहा है ………
बहुत भाव पूर्ण लिखा है आपने …!
आदरणीया अनामिका जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
अच्छी रचना के लिए आभार !
गणगौर पर्व और नवरात्रि उत्सव की शुभकामनाएं !
साथ ही…
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!
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