Thursday 21 April 2011

एक प्रार्थना ...















सुकून उतना ही देना खुदा जितने से जिंदगी चल जाए
औकात बस इतनी देना कि औरों  का भला हो जाए. 

दोस्ती बस इतनी हो कि दोस्त को मुस्कान मिल जाए
घर में अँधेरा इतना देना कि दूसरे का घर रोशन हो जाए 

रिश्तो में गहराई इतनी हो कि प्यार से निभ जाए  
प्यार हो तो इतना हो कि छूटे तो दिल ना टूट जाए.  

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें.  

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ  
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !! 


64 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभे पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें

बहुत बढ़िया पंक्तियाँ हैं...... गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति....

Anupama Tripathi said...

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

sunder soch darshati sunder rachna ..!!

hamarivani said...

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

सूबेदार said...

घर me अधेरा इतना देना की दुसरे का घर रोशन हो जय.----------
बहुत सुन्दर कबिता आध्यात्मिकता को छूते हुए.apne prabhawit kiya
बहुत-बहुत धन्यवाद

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभे पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें...

हर पंक्ति बड़ा संदेश दे रही है.

हरीश प्रकाश गुप्त said...

सुन्दर भाव पूर्ण पंक्तियां हैं.

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी प्रार्थना को हमारा भी स्वर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस प्रार्थना में मैं भी शामिल हूँ ...

घर में अँधेरा इतना देना कि दूसरे का घर रोशन हो जाए

अँधेरे से दूसरों को रोशनी कैसे मिलेगी ..यह समझ नहीं पायी ...ज़रूर कुछ खास गहन सोच होगी ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बस मौला ज़्यादा नहीं, कर इतनी औकात,
सर ऊंचा कर कह सकूं, मैं मानुस की ज़ात! (साभार: मनोज कुमार)
और ज़ियादा मुझे दरकार नहीं है लेकिन,
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे!!

इस्मत ज़ैदी said...

रिश्तो में गहराई इतनी हो कि प्यार से निभ जाए
प्यार हो तो इतना हो कि छूटे तो दिल ना टूट जाए.

वाह !ख़ूब !

अनामिका की सदायें ...... said...

"घर में अँधेरा इतना देना कि दूसरे का घर रोशन हो जाए"

संगीता जी कहने का आशय यह है कि अगर मैं दूसरों के घर में खुशियाँ लाने का प्रयास अपना घर जला के भी करूँ तो इतनी ही अंधेरों में डूबू या अपने घर को इतना ही अंधेरों में डुबोऊ जितने कि अंधेरों में मैं रह सकूँ और दूसरे का घर भी रोशन हो जाये.

kshama said...

Harek pankti behtareen hai....dohraun to kaunsi?

राज भाटिय़ा said...

सुकून उतना ही देना खुदा जितने से जिंदगी चल जाए
औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए.
वाह जी बहुत सुंदर लगी आप की यह विचार मय कविता, धन्यवाद

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

संतोष धन सबसे उत्तम...और सुन्दर लेखन....

वाणी गीत said...

सांस इतनी पिंजर में की कुछ नेक कर जाएँ ...
बहुत ही नेक ख्याल है ...
मगर दूसरों का घर रोशन करने के लिए अपने घर में अँधेरा क्यों ...एक दिया हमारे घर मे भी जले रौशन और उसकी लौ से हम कई घरों को रौशन करें ...नहीं क्या ??

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर रचना भाव प्रस्तुति....आभार

रजनीश तिवारी said...

बहुत भावपूर्ण और आदर्श प्रार्थना । शुभकामनायें ।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह। आमीन।

monali said...

Behad saarthak prarthana.. :)

संध्या शर्मा said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें.

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

भावपूर्ण सन्देश.. आपकी इस प्रार्थना में हम भी शामिल हैं..

मुकेश कुमार सिन्हा said...

औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए.

bahut badi baat kah di aapne..:)

vandana gupta said...

वाह ……………बहुत सुन्दर भाव भरे हैं…………एक सुन्दर संदेश देती रचना।

मनोज कुमार said...

इस प्रार्थना का पूरा स्वर आशामूलक है। यह आशा वायवीय नहीं बल्कि ठोस ज़मीन पर पैर टिके रहने के कारण है।

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

दिल को सकून देने वाली अभिव्यक्ति. शब्दों में बहुत अच्छी विचारधारा समावेश.
तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे (http://sirfiraa.blogspot.com , http://rksirfiraa.blogspot.com , http://shakuntalapress.blogspot.com , http://mubarakbad.blogspot.com , http://aapkomubarakho.blogspot.com , http://aap-ki-shayari.blogspot.com , http://sachchadost.blogspot.com, http://sach-ka-saamana.blogspot.com , http://corruption-fighters.blogspot.com ) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सुकून उतना ही देना खुदा जितने से जिंदगी चल जाए
औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए.


कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Amit Chandra said...

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

बेहतरीन प्रस्तुति। दिल को सुकुन देने वाली रचना। आभार।

अरुण चन्द्र रॉय said...

सुन्दर भाव पूर्ण पंक्तियां हैं. बेहतरीन प्रस्तुति।

प्रेम सरोवर said...

आपके उदगार ही सही संदर्भों मे आपके सुंदर विचारों के संवाहक हैं।
प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

Kunwar Kusumesh said...

सुन्दर पंक्तियाँ, सुन्दर कामनाएं.

Rajesh Kumari said...

behtreen prastuti.har line khoobsurat hai bhaavnaavon se susajjit.

Anita said...

आमीन ! बहुत सुंदर प्रार्थना बिल्कुल वैसी, जैसी भगवान झट से सुन् लेता है !

सु-मन (Suman Kapoor) said...

naye andaz me sundar kavita..

Dinesh pareek said...

बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आने से बहुत रोचक है आपका ब्लॉग बस इसी तह लिखते रहिये येही दुआ है मेरी इश्वर से
आपके पास तो साया की बहुत कमी होगी पर मैं आप से गुजारिश करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे भी पधारे
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

संगीता पुरी said...

सुन्दर पंक्तियाँ ..

महेन्‍द्र वर्मा said...

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

उत्तम विचार, उत्तम काव्य सृजन।
सभी के मन में यही भावना उत्पन्न हो।

Sunil Kumar said...

औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए.
उत्तम विचार,बहुत सुंदर प्रार्थना.....

नीलांश said...

har pankti sunder hai...

Satish Saxena said...

बढ़िया प्रस्तुति ....शुभकामनायें आपको !

Dr Varsha Singh said...

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

बहुत सार्थक और अच्छी सोच .... सुंदर भावाभिव्यक्ति.

राजीव तनेजा said...

सुन्दर प्रार्थना

amrendra "amar" said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें.

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभे पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें
प्रभावी अभिव्यक्ति....

Parul kanani said...

dua kabool ho....!

कुमार राधारमण said...

यह एक शांत मन की प्रार्थना प्रतीत होती है। जब मन ऐसा स्तर ग्रहण कर ले,तो भला करने की आवश्यकता नहीं होती,जो होता है वह स्वतः भला ही होता है।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर मन को सुकून पहुँचाने वाली रचना ...

mridula pradhan said...

सुकून उतना ही देना खुदा जितने से जिंदगी चल जाए
औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए.
kya khoobsurti se likha hai.....

Ashish (Ashu) said...

आमीन !...
आपके शब्दों में कमाल का जादू है .....आप यूँ ही लिखते रहें ....!

रचना दीक्षित said...

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

बहुत प्रभावित करती रचना. यही कामना सब करें तो ये संसार कैसा हो जायेगा यह सोच कर ही मन हिलोरें लेने लगता है.

Akshitaa (Pakhi) said...

कित्ती प्यारी सी कविता..सुन्दर भाव..बधाई.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!

ashish said...

उम्दा सोच से प्रभावित रचना . आजकल तो नेकी कर दरिया में डालने वाली बात होती है .

Anonymous said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.......पहली पोस्ट ने दिल जीत लिया.......खुदा करे आपकी ये दुआ पूरी हो.......असली प्रार्थना ऐसी ही होती है......बहुत खूबसूरत .......आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ....ताकि आगे भी साथ बना रहे|

कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)

http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/


एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

Kailash Sharma said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें.

हरेक पंक्ति एक सार्थक और गहन सन्देश देती है..बहुत प्रेरक प्रस्तुति..आभार

Sadhana Vaid said...

साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

बहुत सुन्दर एवं प्रभावशाली रचना ! ऐसी प्रार्थना में तो मेरे स्वर भी सम्मिलित हैं ! बहुत प्यारी रचना !

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें.

अनामिका जी नमस्कार बहुत सुन्दर सन्देश समाज के लिए काश लोग अपनी आँखे इस और खोलें कितना सुन्दर संसार हो ...घूंघट में दुल्हन कितनी सुन्दर ....

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

निर्मला कपिला said...

सच्ची और सार्थक प्रार्थना। बहुत बहुत बधाई।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

ह्रदय से निकली प्रार्थना.........भावपूर्ण

दिगम्बर नासवा said...

तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें. ...

Kya baat kahi hai ...

Asha Joglekar said...

हर पंक्ति में जीवन जीने का संदेश है । काश कि ऐसा ही हम कर पायें ।

पूनम श्रीवास्तव said...

anamika ji
dil se nikli aapki sachchi duabahut hi behtreen lagi .
har panktiyo ka chayan aur har sabdo ko bade hi hi prabhav shali dhang se prastut kiya hai aapne.
sach ye prarthanato ham sabke dil ki aawaz hai .
bahut bahut badhai
v-hardik dhanyvaad
poonam

अविनाश मिश्र said...

Sundar rachna.. Dhanywad.. Kabhi humare blog per bhi aye , naya hun protsahan ki jarurat hai.... avinash001.blogspot.com

Unknown said...

बहुत सुन्दर लिखा..
तन की चादर इतनी हो कि गैरों की नज़र ना चुभ पाए
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें.

दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...

Amrita Tanmay said...

prarthana me shamil hun....

issbaar said...

खूबसूरत्र और प्रभावी चित्र ने आपके शब्दचित्र के साथ मिलकर हमें भी आपके प्रार्थना में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर दिया है. ये प्राथनाएँ अभिव्यक्ति में जितनी सहज और मृदु हैं, आचरण में उतनी ही घुमावदार और तपाने वाली. खैर, एक कमेंटदार की हैसियत से साधुवाद!