Thursday, 21 June 2012

हंसी का पात्र


टूटी-फूटी 
अस्तव्यस्त सी 
अपनी नींद की चादर से 
शरीर को छुड़ा,
अपने मस्तिष्क के कुछ
खोये और जगे,
कुछ जीवित और मृत प्रायः 
कुलबुलाते कीड़ों का 
भार वहन करता सा मैं ...

खुद को सूत्रधार की 
कठपुतली महसूस 
करता हुआ, 
उसकी ठोकरों की पीड़ा 
सहने को विवश 
भावनाओं के अंगारों 
पर झुलसता, छटपटाता ...
विश्वास मार्ग की 
भूलों भरी वेदनाओं  में 
तिरस्कृत होता मैं और 
मेरा यह अपमानित दर्द 
असमंजस में हैं 
कि क्या ऐसा भी कभी 
हो सकता है कि 
जिसे दिल की गहराइयों में बसा,
उसके  साथ को 
अपना सौभाग्य बना 
' कोई मेरा भी है ' के  
अहसाह को 
विश्वास के हिम पर बिठा 
अपने प्यार को 
सुरक्षित मानता रहा ....
वही प्यार, जीवन संघर्षों के 
घात-प्रतिघात की 
पीडाओं को सहते हुए 
अवहेलना,अविश्वास,
दुत्कार और 
परायेपन की आंधी में  
यूँ उजड़ जाएगा.

प्रतीत होता है 
जैसे  आज 
ये  भावनाएं,  
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास 
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं 
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
और 
इस अट्टहास भरे जीवन के 
मसखरे पन से बचता-बचाता सा
एकदम तनहा, लडखडाता, 
लहूलुहान साँसों के तार 
जोड़ने का 
असफल प्रयास करता हुआ 
स्वयं के लिए 
एक हंसी का पात्र बन कर 
रह गया हूँ मैं.

45 comments:

सदा said...

एकदम तनहा, लडखडाता,
लहूलुहान साँसों के तार
जोड़ने का
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.
वाह ... बहुत खूब ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार

ऋता शेखर 'मधु' said...

प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,

हारा हुआ महसूस करना बहुत दुख देता है...अच्छी अभिव्यक्ति !!

दिगम्बर नासवा said...

ये सच है आज प्रेम, प्यार ,,, रीत अनुराग सब गुलाम हो के रह गया है ... भावनाएं बिक रही हैं ... उनका सौदा हो रहा है ... मानव मन की पीड़ा कों शब्दों में उतारा है ...

Dr.R.Ramkumar said...

प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,



अनुभवसिद्ध अभिव्यक्ति

ANULATA RAJ NAIR said...

व्यथित मन की कथा को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने....

दिल को छू भी गयी....और व्यथित भी कर गयी.....

सस्नेह
अनु

kunwarji's said...

मन में वेदना उत्पन्न करती रचना....

सोचने को विवश कर दिया आपने....

कुँवर जी,

Anupama Tripathi said...

खुद को सूत्रधार की
कठपुतली महसूस
करता हुआ,

गहन भाव ...अंतस तक उतर गये ...!!
सुंदर रचना अनामिका जी ...!!

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ...jidagi me aisa kai baar lagta hai..per har raat ke baad din..nirasha ke baad asha..aaur haar ke baad jeet sunishchit hai..behtarin manhsthiti ks shandaar chitran

Kailash Sharma said...

प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,

....बहुत गहन भाव और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...रचना अंतस को छू जाती है...

प्रवीण पाण्डेय said...

कहाँ अपने हाथ में कुछ है..जो मिले, कृतज्ञ रहें..

रचना दीक्षित said...

विश्वास का टूटना स्वाभाविक रूप से भी चिंता का विषय बन जाता है. यह दुःख जितना ही व्यक्ति नजदीक हो अपना हो, उतना ही ज्यादा होता है.

सुंदर भाव पूर्ण कविता. अनामिका जी आजकल कुछ अधिक व्यस्ततावश ब्लॉग पर उतनी सक्रियता नहीं रख पा रही हूँ इसलिए हो सकता है कि कभी कमेन्ट छूट गया हो. ऐसा कोई जानाबूझा नहीं होता है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कमाल की रचना है!
मन को छू गई!

मनोज कुमार said...

कभी-कभी जीवन में ऐसा भी होता है। ऐसे ही किसी क्षण में जब हंसी का पात्र बना था, तो मैंने अपना तख़ल्लुस ‘मनहूस’ रख लिया था।

रचना पढ़ के लगा कि यह तो मेरे मन की बात है। हो सकता कई और मैं के मन की बात हो।

संध्या शर्मा said...

कभी-कभी ऐसा वक्त भी आता है जीवन में... मुश्किलों से जीतना ही जीवन है... गहन भाव

Sadhana Vaid said...

विश्वास के छले जाने की पीड़ा को कोई भुक्तभोगी ही पहचान सकता है ! उस टूटन के बाद इंसान खुद को कितना बौना महसूस करता है उसे बखूबी अभिव्यक्ति दी है ! बहुत ही बेहतरीन रचना अनामिका जी ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.

गहन भावों की सुंदर प्रस्तुति

MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,

हाँ वाकई हार तो गए हैं .... और हंसी के पात्र भी शायद बन ही गए हैं .... यह भाव तो जैसे मेरे मन के लिख दिये हैं ... बस चौपड़ की जगह शतरंज होनी चाहिए थी ...क्योंकि चौपड़ पर प्यादे नहीं गोटियाँ होती हैं ।

प्रतिभा सक्सेना said...

आज की दुनिया में भावनाओं का मूल्य ही क्या है !
यह सतही तर्कों का ज़माना है 1

वाणी गीत said...

प्रेम और भावनाओं को ही सकल संसार मान लेना और फिर इससे परे दुनिया की कठोर वास्तविकता कई बार ऐसा नैराश्य उत्पन्न करती ही है , लाख बचना चाहो !
झुलसा रही है वेदना शब्दों की !

रश्मि प्रभा... said...

इस अट्टहास भरे जीवन के
मसखरे पन से बचता-बचाता सा
एकदम तनहा, लडखडाता,
लहूलुहान साँसों के तार
जोड़ने का
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.
भावनाओं की गहन अभिव्यक्ति ...

इस्मत ज़ैदी said...

प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,

तीव्र पीड़ा और मन की व्यथा का सटीक सच्चा चित्रण ,ये शाब्दिक अभिव्यक्ति मन को छू गई
जीवन में हार और वो भी भावनाओं की हार मनुष्य को तोड़ देती है
रचना की इस अनुपम उप्लब्धि के लिये बधाई स्वीकार करें

Rajesh Kumari said...

वाह बहुत उम्दा भाव बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Anonymous said...

बेहद गहन और शानदार पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मेरी टिप्पणी तो खो ही गयी है , या फिर शायद पसंद नहीं आई ....

Anita said...

उफ़ ! कितना दर्द छिपाए हैं ये पंक्तियाँ...मन के पार गए बिना निस्तार नहीं होता...

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Amrita Tanmay said...

हंसी का पात्र ... मन की व्यथा को सुन्दर शब्द दिया है..

vandana gupta said...

जीवन मे ऐसे पल भी आते हैं।

M VERMA said...

तिरस्कृत होता मैं और
मेरा यह अपमानित दर्द
असमंजस में हैं

दर्द अक्सर असमंजस में होता है .. क्यों?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!

Udan Tashtari said...

उम्दा अभिव्यक्ति !!

अरुन अनन्त said...

बेहतरीन रचना , बहुत खुबसूरत एहसास

Alokita Gupta said...

Aaj pahli baar aayi aapke blog par bahut achcha laga aakar aur afsos bhi hua ki itni der se kyun pahunch saki main yahaan :(
Rachna wakai bahut achchi lagi ....saargarbhit

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,....

सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
सादर.

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत खूब !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मैने कभी किसी बड़े रूसी लेखक का उपन्यास पढ़ा था।कुछ भी याद नहीं न उपन्यास न लेखक का नाम। इस कविता को पढ़कर उसकी याद हो आई। एक मार्मिक अहसास तब भी था, आज, इस कविता को पढ़कर भी। मन की पीड़ा सटीक अभिव्यक्त हुई है।..बहुत खूब।

अशोक सलूजा said...

खूबसूरत और गहरे एहसास ....
शुभकामनाएँ!

Anjani Kumar said...

"ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ"
सुन्दर भाव संयोजन
आभार

Arun sathi said...

अतिसुन्दर
मर्मस्पर्सी
साधु-साधु

Dr. sandhya tiwari said...

sundar bhavon se saji mili padhne ko .........aabhar

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं
क्या कहने

निर्मला कपिला said...

dदिल की गहराई से निकले जज़्बात।

Satish Saxena said...

ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं ..

बढ़िया अभिव्यक्ति...

प्रेम सरोवर said...

मार्मिक एवं सारगर्भित कविता अच्छी लगी ।मेरे पोस्ट अतीत से वर्तमान तक का सफर पर आपके प्रतिक्रियाओं की बेसब्री से इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

S.N SHUKLA said...

बहुत खूब , शानदार प्रस्तुति.

कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .