टूटी-फूटी
अस्तव्यस्त सी
अपनी नींद की चादर से
शरीर को छुड़ा,
अपने मस्तिष्क के कुछ
खोये और जगे,
कुछ जीवित और मृत प्रायः
कुलबुलाते कीड़ों का
भार वहन करता सा मैं ...
खुद को सूत्रधार की
कठपुतली महसूस
करता हुआ,
उसकी ठोकरों की पीड़ा
सहने को विवश
भावनाओं के अंगारों
पर झुलसता, छटपटाता ...
विश्वास मार्ग की
भूलों भरी वेदनाओं में
तिरस्कृत होता मैं और
मेरा यह अपमानित दर्द
असमंजस में हैं
कि क्या ऐसा भी कभी
हो सकता है कि
जिसे दिल की गहराइयों में बसा,
उसके साथ को
अपना सौभाग्य बना
' कोई मेरा भी है ' के
अहसाह को
विश्वास के हिम पर बिठा
अपने प्यार को
सुरक्षित मानता रहा ....
वही प्यार, जीवन संघर्षों के
घात-प्रतिघात की
पीडाओं को सहते हुए
अवहेलना,अविश्वास,
दुत्कार और
परायेपन की आंधी में
यूँ उजड़ जाएगा.
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
और
इस अट्टहास भरे जीवन के
मसखरे पन से बचता-बचाता सा
एकदम तनहा, लडखडाता,
लहूलुहान साँसों के तार
जोड़ने का
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.
45 comments:
एकदम तनहा, लडखडाता,
लहूलुहान साँसों के तार
जोड़ने का
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.
वाह ... बहुत खूब ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
हारा हुआ महसूस करना बहुत दुख देता है...अच्छी अभिव्यक्ति !!
ये सच है आज प्रेम, प्यार ,,, रीत अनुराग सब गुलाम हो के रह गया है ... भावनाएं बिक रही हैं ... उनका सौदा हो रहा है ... मानव मन की पीड़ा कों शब्दों में उतारा है ...
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
अनुभवसिद्ध अभिव्यक्ति
व्यथित मन की कथा को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने....
दिल को छू भी गयी....और व्यथित भी कर गयी.....
सस्नेह
अनु
मन में वेदना उत्पन्न करती रचना....
सोचने को विवश कर दिया आपने....
कुँवर जी,
खुद को सूत्रधार की
कठपुतली महसूस
करता हुआ,
गहन भाव ...अंतस तक उतर गये ...!!
सुंदर रचना अनामिका जी ...!!
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ...jidagi me aisa kai baar lagta hai..per har raat ke baad din..nirasha ke baad asha..aaur haar ke baad jeet sunishchit hai..behtarin manhsthiti ks shandaar chitran
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
....बहुत गहन भाव और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...रचना अंतस को छू जाती है...
कहाँ अपने हाथ में कुछ है..जो मिले, कृतज्ञ रहें..
विश्वास का टूटना स्वाभाविक रूप से भी चिंता का विषय बन जाता है. यह दुःख जितना ही व्यक्ति नजदीक हो अपना हो, उतना ही ज्यादा होता है.
सुंदर भाव पूर्ण कविता. अनामिका जी आजकल कुछ अधिक व्यस्ततावश ब्लॉग पर उतनी सक्रियता नहीं रख पा रही हूँ इसलिए हो सकता है कि कभी कमेन्ट छूट गया हो. ऐसा कोई जानाबूझा नहीं होता है.
कमाल की रचना है!
मन को छू गई!
कभी-कभी जीवन में ऐसा भी होता है। ऐसे ही किसी क्षण में जब हंसी का पात्र बना था, तो मैंने अपना तख़ल्लुस ‘मनहूस’ रख लिया था।
रचना पढ़ के लगा कि यह तो मेरे मन की बात है। हो सकता कई और मैं के मन की बात हो।
कभी-कभी ऐसा वक्त भी आता है जीवन में... मुश्किलों से जीतना ही जीवन है... गहन भाव
विश्वास के छले जाने की पीड़ा को कोई भुक्तभोगी ही पहचान सकता है ! उस टूटन के बाद इंसान खुद को कितना बौना महसूस करता है उसे बखूबी अभिव्यक्ति दी है ! बहुत ही बेहतरीन रचना अनामिका जी ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.
गहन भावों की सुंदर प्रस्तुति
MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
हाँ वाकई हार तो गए हैं .... और हंसी के पात्र भी शायद बन ही गए हैं .... यह भाव तो जैसे मेरे मन के लिख दिये हैं ... बस चौपड़ की जगह शतरंज होनी चाहिए थी ...क्योंकि चौपड़ पर प्यादे नहीं गोटियाँ होती हैं ।
आज की दुनिया में भावनाओं का मूल्य ही क्या है !
यह सतही तर्कों का ज़माना है 1
प्रेम और भावनाओं को ही सकल संसार मान लेना और फिर इससे परे दुनिया की कठोर वास्तविकता कई बार ऐसा नैराश्य उत्पन्न करती ही है , लाख बचना चाहो !
झुलसा रही है वेदना शब्दों की !
इस अट्टहास भरे जीवन के
मसखरे पन से बचता-बचाता सा
एकदम तनहा, लडखडाता,
लहूलुहान साँसों के तार
जोड़ने का
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.
भावनाओं की गहन अभिव्यक्ति ...
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
तीव्र पीड़ा और मन की व्यथा का सटीक सच्चा चित्रण ,ये शाब्दिक अभिव्यक्ति मन को छू गई
जीवन में हार और वो भी भावनाओं की हार मनुष्य को तोड़ देती है
रचना की इस अनुपम उप्लब्धि के लिये बधाई स्वीकार करें
वाह बहुत उम्दा भाव बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बेहद गहन और शानदार पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए ।
मेरी टिप्पणी तो खो ही गयी है , या फिर शायद पसंद नहीं आई ....
उफ़ ! कितना दर्द छिपाए हैं ये पंक्तियाँ...मन के पार गए बिना निस्तार नहीं होता...
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हंसी का पात्र ... मन की व्यथा को सुन्दर शब्द दिया है..
जीवन मे ऐसे पल भी आते हैं।
तिरस्कृत होता मैं और
मेरा यह अपमानित दर्द
असमंजस में हैं
दर्द अक्सर असमंजस में होता है .. क्यों?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
उम्दा अभिव्यक्ति !!
बेहतरीन रचना , बहुत खुबसूरत एहसास
Aaj pahli baar aayi aapke blog par bahut achcha laga aakar aur afsos bhi hua ki itni der se kyun pahunch saki main yahaan :(
Rachna wakai bahut achchi lagi ....saargarbhit
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,....
सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
सादर.
बहुत खूब !
मैने कभी किसी बड़े रूसी लेखक का उपन्यास पढ़ा था।कुछ भी याद नहीं न उपन्यास न लेखक का नाम। इस कविता को पढ़कर उसकी याद हो आई। एक मार्मिक अहसास तब भी था, आज, इस कविता को पढ़कर भी। मन की पीड़ा सटीक अभिव्यक्त हुई है।..बहुत खूब।
खूबसूरत और गहरे एहसास ....
शुभकामनाएँ!
"ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ"
सुन्दर भाव संयोजन
आभार
अतिसुन्दर
मर्मस्पर्सी
साधु-साधु
sundar bhavon se saji mili padhne ko .........aabhar
बहुत सुंदर रचना
ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं
क्या कहने
dदिल की गहराई से निकले जज़्बात।
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं ..
बढ़िया अभिव्यक्ति...
मार्मिक एवं सारगर्भित कविता अच्छी लगी ।मेरे पोस्ट अतीत से वर्तमान तक का सफर पर आपके प्रतिक्रियाओं की बेसब्री से इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
बहुत खूब , शानदार प्रस्तुति.
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .
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