Wednesday 11 July 2012

ये दोस्ती



जब नासूर तुम्हारे भरने लगें 
जब दिल की जलन ठंडी होने लगे
जब अश्क आँखों से सूख चलें
जब विकार  राहें भटकने लगें.
जब अविश्वास पर विश्वास आने लगे
जब रिश्तों की गर्माहट याद आने लगे
जब दोस्ती की चाह फिर से जगे
जब प्यार की हूक दिल में उठे 

तब पलट के एक बार देखना मुझे
मैं वहीँ हूँ जहाँ थी पहले  खड़ी
जहाँ से भटके थे राह तुम अपनी
जहाँ मेरी बाते तुम्हें तंज देने लगी थी
जहाँ सवाल मेरे तुम्हें अखरने लगे थे
जहाँ मेरी शिकायतें तुम्हें दर्द देने लगी थी
जहाँ तुम्हारी "मैं' तुम्हारे संग हो चली थी
जहाँ तुम्हारे वर्चस्व भाव में मैं दबने लगी थी
जहाँ तुम्हारे अहम् ने मुझको बोना किया था
जहाँ तुम 'श्रेष्ठ' और मैं 'निम्न' होने लगी थी
जहाँ गैरों के बोल तुम्हें लुभाने लगे थे
जहाँ तुम्हारे झूठे बोलों ने तुम्हें झकझोरा नहीं था
जहाँ मजबूरियां बहाना बन गयी थी

जहाँ मेरी यादों से तुम नाता तोड़ने लगे थे 
हाँ मैं आज भी वहीँ उसी मोड़ पर खड़ी हूँ.
मगर पलटना तभी तुम जब 
खुद से वादा करो कि  
अब लौट के  ना जाओगे 
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे
हाँ बहुत सी शर्ते हैं
इस दोस्ती की
ये शर्तें तो तुमको
निभानी पड़ेंगी
वर्ना ये दोस्ती दिल से 
छुडानी पड़ेगी।



53 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि
अब लौट क ना जाओगे अपने विकारों पर विजय पाओगेमुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे...

सच है तभी लौटना...
वरना जी तो रही ही हूँ तुम्हारे बगैर...
बहुत सुंदर..

अनु

सदा said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि
अब लौट क ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे
भावमय करते शब्‍दों का संगम ... अनुपम प्रस्‍तुति के लिए आभार

vandana gupta said...

अद्भुत भावमयी प्रस्तुति।

yashoda Agrawal said...

शनिवार 14/07/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

रश्मि प्रभा... said...

पलट के एक बार देखना मुझे
मैं वहीँ हूँ जहाँ थी पहले खड़ी... क्योंकि मैंने दोस्ती निभाई थी, प्यार किया था

सूबेदार said...

बहुत आकर्षक -------- ये दोस्ती
बहुत सुन्दर

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर स्पष्ट भाव..... बहुत उम्दा

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत सुन्दर.. बहुत प्रभावशाली

Anita said...

प्यार में शर्त कोई भी होती नहीं...मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया...कोई जब तुम्हारा...
बहुत सुंदर कविता !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्यार में शर्त कोई भी होती नहीं...मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया-----------अनीता जी ने कहा ---


हाँ बहुत सी शर्ते हैं
इस दोस्ती की
ये शर्तें तो तुमको
निभानी पड़ेंगी
वर्ना ये दोस्ती दिल से छुडानी पड़ेगी। आपने कहा ...

शायद यह भी एक जवाब हो सकता है


दोस्ती की बीन
बजाई जो तुमने
मदहोश हुये से
नाचे भी खूब
शर्तों पर ज़िंदगी
भला कैसी बंदगी ?
****************

दिल बेबस
तंज़ सहते रहे
मोड पर ठिठक
मौन हो चले
मार्ग अवरुद्ध हैं
पग क्यों कर बढ़ें ?

मनोज कुमार said...

कविता किस भावभूमि पर रची गई है, वह कवयित्री ही जानें, पर यदि शिल्पगत कमियों को छोड़ दिया जाए तो कई स्थलों पर मैं और मैं से उत्पन्न अहम्‌ के टकराव पर बल दिया गया है। यह इस कविता की विशेषता है। लेकिन इस टकराव के परिणाम को लक्षित नहीं कर पाई हैं। क्योंकि कविता का अंत कुछ शर्तों को प्रमुखता देता है, जो कहीं न कहीं मैं के अहम को बढ़ावा देता है। दोस्ती तो अहम्‌ का विसर्जन है।

कविता लगता है एक लय में कही गई है और उससे जो प्रवाह निकलता है वह कवयित्री के मनो भाव को पाठक तक पहुंचने का प्रभाव उत्पन्न करता है।

Amrita Tanmay said...

दोस्ती ..वाह! एकदम सही कहा है..अति सुन्दर..

अनामिका की सदायें ...... said...

अनीता जी आपने लिखा...

प्यार में शर्त कोई भी होती नहीं...मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया...कोई जब तुम्हारा...
बहुत सुंदर कविता !

और संगीता जी आपने भी लिखा

हाँ बहुत सी शर्ते हैं
इस दोस्ती की
ये शर्तें तो तुमको
निभानी पड़ेंगी
वर्ना ये दोस्ती दिल से छुडानी पड़ेगी। आपने कहा ...

लेकिन मैंने क्या लिखा......

खुद से वादा करो कि
अब लौट के ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे

बेशक शब्द शर्त प्रयोग हुआ है लेकिन कहने वाले के भाव क्या है ये नहीं समझा गया....
ये बाते तो आधार होती हैं दोस्ती की .....अगर ये विश्वास,हम का भाव, विकार मुक्त दोस्ती
न हो तो दोस्ती वैसे भी कहाँ संभव है, और कहाँ तक टिक पायेगी ......?????

अनामिका की सदायें ...... said...

मनोज जी,

आपने लिखा ...

लेकिन इस टकराव के परिणाम को लक्षित नहीं कर पाई हैं। क्योंकि कविता का अंत कुछ शर्तों को प्रमुखता देता है, जो कहीं न कहीं मैं के अहम को बढ़ावा देता है। दोस्ती तो अहम्‌ का विसर्जन है।

मनोज जी परिणाम तो लक्षित है ना कि

नासूर तुम्हारे भरने लगें
जब दिल की जलन ठंडी होने लगे
जब अश्क आँखों से सूख चलें
जब विकार राहें भटकने लगें.
जब अविश्वास पर विश्वास आने

अर्थात दिल में नासूर, जलन, आँखों में अश्क, विचारों में विकार और विश्वास पर अविश्वास घर कर गए .

बात जहाँ शर्तो की है , उसके लिए ऊपर ही मैंने अपनी टिप्पणी ऊपर अनीता जी और संगीता जी को दी है, आशा है आपके भी मन का संशय समाप्त हो गया होगा.

वाणी गीत said...

दोस्ती में शर्तें? प्रेम में तो समझा जा सकता है ...
मेरे खयाल से प्रेम और दोस्ती दोनों अलग होती हैं , आप जिससे प्रेम करते हैं , उससे दोस्ती हो सकती है , मगर दोस्ती प्रेम में बदले यह आवश्यक नहीं !

Anupama Tripathi said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि
अब लौट के ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे

बहुत ही सुंदर भाव ...!!
प्रबल रचना ...!!

Unknown said...

VRY NICE, aap bahut acha likhti ho.............

Unknown said...

aap bahut acha likhti ho/////

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... सच है किसी कों यूं ही नहीं दे देना चाहिए लौटने का हक ... बहुत ठेस लगती है जब दुबारा दिल टूटता है ... उम्दा भाव ...

Sadhana Vaid said...

बहुत गहन अहसास निहित हैं इस कविता में ! जितनी स्थितियां आपने बताई हैं पलट कर आने के लिए एक अहमवादी दोस्त से उनको समझ कर लौट आने की अपेक्षा करना बहुत निराशाजनक हो सकता है क्योंकि अपने अहम को टूटता हुआ देखना किसीको स्वीकार नहीं होता ! इतनी सशक्त प्रस्तुति के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !

amit kumar srivastava said...

just superb.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..

Kailash Sharma said...

उत्कृष्ट और बहुत प्रभावी प्रस्तुति..

प्रतिभा सक्सेना said...

विश्वास बहुत ज़रूरी है और दूसरे की भावनाओं को समझना भी अन्यथा आधार ही टूट जाता है - सुन्दर अभिव्यक्ति .

रजनीश तिवारी said...

सच है दोस्ती मतलब "मैं" से "हम " हो जाना ...

ऋता शेखर 'मधु' said...

जब लौटो तो सभी पुराने अहम छोड़कर...बहुत सुंदर कहा...मैं तो वहीं खड़ी मिलूँगी|

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत ही खूबसूरत रचना आभार

Nidhi said...

मैं को तोड़ हम हो जाओगे...बस यह हो जाए तो सब कुछ स्वतः हो जाएगा .बढ़िया अभिव्यक्ति .

इस्मत ज़ैदी said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि
अब लौट क ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे...

क्या बात है अनामिका जी ,,बहुत सच्ची बात कही है आप ने
यदि विश्वास नहीं तो कोई भी रिश्ता दूरगामी नहीं हो सकता

सु-मन (Suman Kapoor) said...

दोस्ती पर अच्छी अभिवक्ति ...

अरुन अनन्त said...

वाह पढ़कर मज़ा आ गया
(अरुन शर्मा = arunsblog.in)

Anonymous said...

सुन्दर और गहन ।

मन के - मनके said...

’हां मैं आज भी----खुद से वादा करो---’
’रिश्ते’ का सत्य तभी तक कायम है—’बीत गया सो रीत गया’ को जी लिया जाय.

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

कुमार राधारमण said...

कोई शर्त होती नहीं प्यार में
मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया....

Pallavi saxena said...

सुंदर स्पष्ट भाव लिए खूबसूरत भावभिव्यक्ति...

हरकीरत ' हीर' said...

वर्ना ये दोस्ती दिल से छुडानी पड़ेगी।....

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है कुछ त्यागना पड़ता है .....
प्यार ये सब कुछ करा देता है .....
अब तो प्रत्युत्तर का इन्तजार है .....:))

Saras said...

क्या वाकई सच्चे प्यार में शर्तें होतीं है ..........? शायद नहीं ...पर एक रक्त रंजित अतीत की शायद कुछ शर्तें हों...क्योंकि अहसास दिलवाना भी कभी कभी ज़रूरी हो जाता है ...है न

शिखा कौशिक said...
This comment has been removed by the author.
शिखा कौशिक said...

sarthak v sundar prastuti .aabhar
BHARTIY NARI

स्वाति said...

आँखें नम हो गई..आपके इस कविता का लिंक मैं अपने फेसबुक आई.डी. से शेयर कर रही हूँ| आभार....

Onkar said...

अंतिम पंक्तियों में आपने गज़ब कर दिया

Creative Manch said...

खुद से वादा करो कि
अब लौट के ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे


भावपूर्ण बहुत सुन्दर कविता
सादर

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर अभिव्यक्ति....
मैं जिसदिन ही हम हो जाये।
कम कितने ही गम हो जाये।

सादर.

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया

सादर

मुकेश कुमार सिन्हा said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि

uff. bahut behtareen.. shart:)
dil ko chhoone wali:)

कविता रावत said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि
अब लौट के ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे

.बहुत सुन्दर ...

रचना दीक्षित said...

प्यार और दोस्ती में शर्तों और ऊँच नीच के लिये कोई स्थान नहीं होता है. जिंदगी के विभिन्न आयामों को समझने की कोशिश एक खूबसूरत रंग लेकर आई है इस कविता के माध्यम में.

बधाई सुंदर कविता के लिये.

mridula pradhan said...

ekdam kammal ka......

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

usi raah par rahiye ...usi mod par mulakat hogi..itne saare sawal..itni saari beete lamhon kee dastaan, ye laut aane kee khwaish..itni bechaini ake sath...main jarur kah sakta hoon kee kavita kaa nayak sharton ke sath jarur lautega..filhaal ke liye ye kah sakte hain..jayiye aap kahan jaayenge ye najar laut ke phir aayege...jaise ud jahaj ka panchhi phir jahaj pa aawe..man ko shanti dene ke liye hain hee

Unknown said...

मगर पलटना तभी तुम जब
खुद से वादा करो कि
अब लौट क ना जाओगे
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे..
बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति...
सादर !!!

प्रेम सरोवर said...

अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे
हाँ बहुत सी शर्ते हैं
इस दोस्ती की
ये शर्तें तो तुमको
निभानी पड़ेंगी
वर्ना ये दोस्ती दिल से
छुडानी पड़ेगी।

भाव बहुत ही अच्छे लगे. धन्यवाद।

Satish Saxena said...

सही है ...