Tuesday, 2 October 2012

गिद्धों का तांडव




आह   कोई   ऐसा    भाव   नहीं    जो   दुख   मेरा   सहलाए 
दुविधा   बाँट   मेरे   मन   की   जो   सुकून  थोड़ा   दे   जाए.
वर्णों    की   माला   के   आंखर  शब्दों   में   ना  ढलने  पायें 
मन - संताप  जो  हर  लें  मेरा,  पीड़ा  कुछ  तो कम हो जाए.


चार   लाल  हैं   एक   मात  के,  जिन्हें पेट  काट  कभी पाला 
रोज  सुबह  अब  वो  छोड़  चौराहे, माँ की उदर  पूर्ती हैं करते
नग्न नृत्य करे बेटों की बर्बरता, माँ से भीख  मंगवाया  करते
देख   दुष्टता   मानव   मन   की,   नयन  आज  मेरे   हैं  रोते.


उधर    देखो     नित    ही    एक    दुल्हन    जलाई     जाती
हाड़ - मांस  का  पुतला  हो  मानो, यूँ  जिन्दा  दफनाई जाती.
नारी  पूजी  जाती  जहाँ  वो  सभ्यता  आज  है   रौंदी  जाती.
ये   पीडायें  रोती  रात  रात   भर,  न   मुझको   सोने   देती.


तीन   साल   की   नादान  नंदिनी  पिशाचों  की हवस मिटायें.
पशुओं सा जीवन जीती मानवता, तुच्छ कीटों सी मसली जाए.
घोटाले  करें   कितने  चाहे   मुहं   कोयले   से   काले  हो  जाएँ 
बापू    के    सब    बने    हैं    बंदर ,  ये     न    आवाज़   उठायें.


डीजल - पेट्रोल और गैस  को पीकर  करोड़ों की  सैर कर आयें  
अनशन  करें   या  बनें  हजारे  लोक  बिल  तो  ना  लाने  पायें  
महंगाई  बढती  जाए  सुरा  सी,  सोनिया  पर  ना  काबू  आये 
गिद्धों  का  चतुर्दिक  तांडव  देख, मन मेरा खून के आंसू बहाए.


Corruption in India


30 comments:

रश्मि प्रभा... said...

कहीं कुछ भी सम नहीं

ANULATA RAJ NAIR said...

सच्ची....
सब कुछ उल्टा पुल्टा...
:-(

सादर
अनु

Kailash Sharma said...

आज का कटु सत्य...बहुत मर्मस्पर्शी..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आज का कटु सत्य उजागर करती रचना,,,

RECECNT POST: हम देख न सके,,,

ऋता शेखर 'मधु' said...

कटु मगर सत्य...मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

समाज का आईना.. मर्म को झकझोर देती है यह कविता..

मनोज कुमार said...

बहुत ही सशक्त रचना के लिए बधाई।
आज की सच्चाई को आप्ने जिस तरीके से इस कविता में दर्शाया है वह बहुत कुछ सोचने को मज़बूर करता है। हमारे चारो ओर हो रहे कटु यथार्थ का यह बेबाक चित्रण है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मन को उद्वेलित करती पंक्तियाँ ....

प्रतिभा सक्सेना said...

हम सब संकल्प लें कि इस स्थिति को बदल कर ही रहेंगे -तभी रचना सार्थक होगी !

वाणी गीत said...

गिद्धों का तांडव ....
वर्तमान समय की अकुलाहट भर देने वाली परिस्थितियों को सार्थक शब्द मिले !

somali said...

samaj or desh ke katu satya ko prastut karti marmsparshi rachna.....

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

समाज को आइना दिखाती सार्थक रचना
बहुत सुंदर

अरुन अनन्त said...

बेहद सुन्दर और सटीक रचना

Sadhana Vaid said...
This comment has been removed by the author.
Sadhana Vaid said...

अपनी कविता के माध्यम से देश की दुर्दशा और आज के युग के लोगों की विकृत मानसिकता का सशक्त चित्रण किया है ! मन को विचलित कर गयी आपकी यह रचना !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज के हालात की अलग अलग छवि अंकित की है .... यथार्थ को कहती सार्थक प्रस्तुति

प्रवीण पाण्डेय said...

मचा हुआ है ताण्डव भू पर..

kshama said...

Aah!

ओंकारनाथ मिश्र said...

बहुत अच्छी कविता. बेहद मार्मिक.

सदा said...

बहुत सही कहा ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

kshama said...

Bas sirf ek aah!

समय चक्र said...

sargarbhit abhivyakti ...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूब! वाह!

कृपया इसे भी देखें-

नाहक़ ही प्यार आया

रचना दीक्षित said...

सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक रहना हम सभी का कर्त्तव्य बनता है. आपने ऐसे ही मुद्दों को अपनी कविता में उठाया है और ज़माने भर की दुर्दशा का सजीव और मार्मिक चित्रण किया है. यदि यही अकुलाहट सभी में जागे तो ऐसी स्थितियां बनेगी ही नहीं.

सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई.

अरुण चन्द्र रॉय said...

marmik kavita...

कालीपद "प्रसाद" said...

आस पास हो रहे अमानविक घटनायों का जिवंत चित्रण. दिल को छू गया .बधाई

कालीपद "प्रसाद" said...

आस पास हो रहे अमानविक घटनायों का जिवंत चित्रण. दिल को छू गया .बधाई

इमरान अंसारी said...

ज़बरदस्त......बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।

Anupama Tripathi said...

समाज का ये आईना देख कर मन उद्वेलित हो गया .....!!
बहुत ही अच्छी रचना ....

Satish Saxena said...

कष्टदायक मगर राक्षसों की सच्चाई...