कठोर जिन्दगी की
विषम परिस्थितियों से
टकराता, गिरता पड़ता
चोटिल होता मेरा मन.
शिव की जटा-जूट सा
सूखा, नीरस
शिवालिक बना
ये मेरा मन.
सूखा, नीरस
शिवालिक बना
ये मेरा मन.
कुटज तरु की भांति
फिर भी सदैव
मुस्कराने को तैयार
ये मेरा मन.
फिर भी सदैव
मुस्कराने को तैयार
ये मेरा मन.
अलमस्त, अटखेलियाँ करता
अंतस में फैले अवसाद पर
कफ़न चढ़ाता ..
आगे बढ़ता..
मंद समीर सा बहता
भ्रमर गुंजन में
खुद को खोता
ये मेरा मन.
अंतस में फैले अवसाद पर
कफ़न चढ़ाता ..
आगे बढ़ता..
मंद समीर सा बहता
भ्रमर गुंजन में
खुद को खोता
ये मेरा मन.
कृत्रिम आवरणों के
रेशे करता
कुछ कह जाता
नए रूप में
सजता- संवरता
अंततः ह्रदय विषाद को
मुक्ति देता
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन.
रेशे करता
कुछ कह जाता
नए रूप में
सजता- संवरता
अंततः ह्रदय विषाद को
मुक्ति देता
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन.
33 comments:
कुटज तरु की तरह
यूँ ही मन की
हर पंखुरी
पल्लवित होती रहे
और विषाद
को भी सजा
एक नयी कविता
बहती रहे .....
:):)
बहुत खूबसूरत कविता....वाह वाह वाह.......
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन.
मन कविता में ढल जाये
तब शायद विषाद टल जाये
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
बहुत सुन्दर
bahut khoob anamika ji dil khol ke rakh diya...
विपरीत परिथितियों में भी मुस्कराता रहे ये मन --यही सार्थक सोच है।
अच्छी लगी ये कविता ।
ब्लॉग पर पधारने के लिए दिल से आभार।
कृत्रिम आवरणों के
रेशे करता
कुछ कह जाता
नए रूप में
सजता- संवरता
अंततः ह्रदय विषाद को
मुक्ति देता
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन.
Bahut,bahut sundar1
कुटज तरु सा........
और शिवालिक का प्रयोग मन की पावनता . सरसता और अदम्य जीवनी शक्ति की प्रतीति है ।
रचना की उदात्तता प्रणम्य है ।
अभिव्यक्ति पर विद्वानों के विचार पढ़ता रहता था आज इत्तेफाक से यह ब्लॉग खोल कर देखा अत्यंत प्रसन्नता हुई ।कुटज तरु पहली बार नाम सुना शायद केक्टस को कहते होंगे परिस्तिथि से टकराता ,गिरता,सूखा नीरस मन फिर भी मुस्कराने को तैयार "बात रोने की लगे फिर भी हंसा जाता है यूं भी हालात से समझौता किया जाता है " की मानिन्द।अवसाद ,हताशा ,निराशा को कफ़न उड़ाने की अभिव्यक्ति अति सुन्दर रही ,ऐसा न किया तो मरुभूमि में जीना ,श्वास लेना मुश्कल हो जाता है अवसाद ,हताशा ,निराशा को कफ़न उड़ाने की अभिव्यक्ति अति सुन्दर रही ,ऐसा न किया तो मरुभूमि में जीना ,श्वास लेना मुश्कल हो जाता है ।विषाद को मुक्ति देकर ही प्रक्रति की सुन्दरता का वर्णन किया जा सकता ।वैसे तो विषाद और निराशा मे भी लिखा जा सकता है मगर फ़िर सुनने वाला यही कहता है "जब दिल की ।बात कह तो सभी दर्द मत उन्डेल /वरना कहेंगे लोग गज़ल है या मर्सिया ।जीवन को सही तरीके से जीने की प्रेरणा देती रचना बहुत अच्छीलगी
जीवंत सम्वेदनाएँ...एक पूरी यात्रा का वर्णन कर दिया आपने जिनसे होकर एक कविता जन्म लेती है...
अति सुन्दर ...........बहुत खूब ...
http://athaah.blogspot.com/2010/04/blog-post_29.html
अलमस्त, अटखेलियाँ करता
अंतस में फैले अवसाद पर
कफ़न चढ़ाता ..
आगे बढ़ता..
मंद समीर सा बहता
भ्रमर गुंजन में
खुद को खोता
ये मेरा मन.
bahut hi sundar bhav. Badhai!!
dhanyawad anamika ji... aapne meri kavita ko chhotigali.blogspot.com par saraha.
maafi chahunga but, sorry mai aapke orkut profile me nahin hu
सुन्दर भाव जगाती मन को निर्मल करती कविता के लिए बधाई.
कृत्रिम आवरणों के
रेशे करता
कुछ कह जाता
नए रूप में
सजता- संवरता
अंततः ह्रदय विषाद को
मुक्ति देता
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन
kootaj taru...naya naam suna ..
bahut hi sundar panktiyaan ...
aaj kal thodi vyast hun...
lekin padh liya hai..aur bahut pasand aaya...
bahut badhiya..
अरे, मेरा प्यारा सा कमेंट कहाँ चला गया...बह्हू :(
BAHUT KHUB
BADHAI AAP KO IS KE LIYE
चोटिल मन अवसाद पर मुस्कान की परत चढ़ा कविता रचता ...
जीना इसी का ही तो नाम है ...
बहुत सुन्दर गीत ...
o ri didi ... achha hai yah mann. man to aisa hi hota hai .. :)
वाह!
कही से कुछ भी सोचे कवी-मन,
वहीँ से भाव बहने लगेंगे शब्द बन,
सही में,कविता ही भावो का श्रेष्ठ रूप है!यही जाना यहाँ आज इसे पढ़ कर.....बहुत बढ़िया जी,
कुंवर जी,
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति, सकारात्मक बात
bahut hi sundar abhivyakti....man ki paraten kholti khubsoorat rachna
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन.....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
क्या करें मन बावरा है
हर साँस पर बोझिल ये मन
सावन में भी प्यासा ये मन
लफ़्जों को ढूँढता ये मन
खाली पन्नों पर सिमटता ये मन
मन को छूने वाली मनभावन कविता
ये मेरा मन.
मन की बात कह दी.
narayan narayan
अंततः ह्रदय विषाद को
मुक्ति देता
और तब एक
कविता में ढल जाता
ये मेरा मन.
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति .....!!
सच है मन तो उन्मुक्त पवन है ... बाँधना और एक दिशा निश्चित करना बहुत मुश्किल है .... सुंदर रचना ...
शिव की जटा-जूट सा
सूखा, नीरस
शिवालिक बना
ये मेरा मन.
कुटज तरु की भांति
फिर भी सदैव
मुस्कराने को तैयार
ये मेरा मन.
bahut khoobsurat bhav avam shabd ,ati uttam .
कुटज तरु की भांति
फिर भी सदैव
मुस्कराने को तैयार
ये मेरा मन.
mujhe itni dder ho gayi aane me :(
maaf karein...
Bahut hi pyari aur manbhavan kavita
बहुत सुन्दर कविता है ... मन के कितने ही भाव को परिभाषित किये हैं आप ... बधाई !
अद्भुत.."
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