सुनो आज तुम्हें मैं
एक स्वप्न की बात बताती हूँ
नारद जी ने जो पूछा मुझसे
वो मैं तुम्हें सुनाती हूँ.
बोले नारद जी मुस्का कर
सुनो चंचला, ज़रा ध्यान धरो..
सृष्टिकर्ता का बेटा हूँ,
सो पूज्य पिता से
तुम्हारी सिफारिश कर
तुमको ये सौभाग्य देता हूँ .
आज बताओ, किस धातु में
तुमको परिणत कर डालूं
स्वर्ण, लौह या मिटटी, बोलो ..
कौन से रंग में रंग डालूं ?
मैंने सुना जब ये मुनि मुख से
रुक कर तनिक विचार किया ..
फिर बोली, हे नारद जी..
स्वर्ण नहीं मुझको बनना
है कीमत उसकी बहुत अधिक
चोरी का डर भी बना रहे
हवा लगे शीतल हो जाये,
अग्नि देख झुलसता जाये..!
रक्षा का बोझ भी इसका
अपने सिर पे बढ़ता जाये.
वर्ना एक धातु और बनायें
जो रक्षा इसकी कर पाए.
लौह रूप में उसको जानें
लोहे का अवलंबन करना पड़े.
प्रश्न किया नारद ने ..
तो क्या लौह रूप तुम्हें भाया है ?
हंस कर टाला मैंने प्रश्न को
और ये संवाद किया..
लौह रूप ना चाहिए मुझको
ये तो होता बहुत कड़ा..
लोहे को लोहा काटे है
रूप भी इसका दबा दबा.
इससे तो है माटी भली
जिसका किसीको लोभ नहीं
माटी से जन्मे सारे धातु
माटी से किसी को बैर नहीं.
लड़ते, जलते, टूटते, कटते
करबद्ध हो जाते समक्ष खड़े..
अंततः सब मिट्टी बन जाते
पंचतत्व भी मिलें माटी में.
हे देव ऋषि यही उत्तम है
मुझको दे दो माटी रूप.
मंद मंद मुस्काते नारद
तथास्तु कह, कर गए गमन.
स्वप्न सच हो गया मेरा
अंत मिलन है माटी रूप
43 comments:
बहुत सुंदर प्रस्तुति!
जीवन का सार किस चीज़ में है उसे आप ने बहुत सुंदरता से अभिव्यक्त किया है ,
अर्थपूर्ण शब्दों का प्रयोग कविता की सार्थकता को सिद्ध करता है
बधाई
कविता का कथ्य अतिप्रशंसनीय । दार्शनिक अभिव्यक्ति ।
अनामिका जी . रचना को दो तीन बार पढें तो और प्रवाह आ जाएगा ।
एक जीवन दर्शन!! उम्दा अभिव्यक्ति!!
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
शांत ह्रदय भाव -
अति सुंदर प्रस्तुति -
बधाई
Wah...kitni anoothi ichha hai!Sabne ant me matime hi mil jana hai...
बहुत सुंदर विचार अनामिका जी .....!!
माटी कहे कुम्हार से
तू क्या रौंदे मोहे
इक दिन ऐसा होइगा
मैं रौंदूंगी तोहे ....
मिटटी से बने हम इक दिन इसी मिटटी में मिल जायेंगे ....
फिर भी इसी मिटटी के लिए लड़ते भी हैं ....
किस घर में जमीन के लिए भाइयों में विरोध नहीं होता ....?
गहरे विचारों से परिपूर्ण इस कविता में आपने जीवन दर्शन समेट लिया है।
चित्र अद्भुत है!
सुंदर प्रस्तुति ... माटी से जन्म लेना और उसमें मिल जाना ही सार्थक जीवन है ... अच्छी प्रस्तुति है ...
bahut gahri baat kahi hai...
maati se bana shareer maati mein hi mil jaana hai..
sundar bhavbhivyakti..
बहुत बढिया प्रस्तुति... जिस मिट्टी से बना सरीर है, उससे तो कीमती दुनिया का कोई धातु या द्र्व्य नहीं हो सकता..बहुत महान विचार !!!
सुन्दर भावों से रची रचना.....प्रारंभ में सम्वादात्मकता में और निखार लाने से इसके काव्य की लय और गति और सुन्दर हो जाती ....
जीवन दर्शन को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करती हुई एक अच्छी रचना ..
इस मिथक मे ही सही लेकिन यही सच है ।
वाह! वाह! वाह!
तो आपने रूहानियत को अपना ही लिया!
साधारण शब्दों में गूढ़ बात!
और मैं तो दाल-चावल के चक्कर में ही लगा हूँ....
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इट्स टफ टू बी ए बैचलर!
"माटी ही ओढन, माटी बिछावन, माटी का तन बन जाएगा
जब माटी में तू मिल जायेगा !" दार्शनिकता के रंग में रंगी एक बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
अच्छे विचार-अच्छी रचना
आपने की सुंदर रचना
माटी का रूप माटी की काया मिल जाना है एक दिन माटी में ही
यथार्थपरक कविता !
आज तो जीवन का यथार्थ माटी का रूप ले आया है बेमिसाल. समझ ये नहीं आता कि माँ या माटी या दोनों.एक प्रारंभ दूसरा अंत या दोनों ही प्रारंभ ?????????
सच्ची अच्छी रचना पसंद आई
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
दार्शनिक भावों से भरी यह कविता शैलीगत - कसौटी पर भी खरी उतरती दिखती है .
एक सुंदर रचना के आपको हार्दिक बधाई.
इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल
माटी का सम्मान किया आपने.
माटी की महिमा अपार है.
माटी से जन्मे सारे धातु
माटी से किसी को बैर नहीं.
लड़ते, जलते, टूटते, कटते
करबद्ध हो जाते समक्ष खड़े..
अंततः सब मिट्टी बन जाते
पंचतत्व भी मिलें माटी में.
जीवन दर्शन का इस से अच्छा रूप क्या होगा। बहुत सुन्दर लगी रचना बधाई
सुन्दर भावों अच्छी रचना
Hi..
Wah kya baat hai..
Maati ka na mol bhale par..
Fir bhi maati ka hai mol..
Koyala, heera, sona, loha..
Maati main hote anmol..
Sundar kavita..
Deepak
बेहद सुंदर रचना। ह्रदय तक पहुंचती है।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,खूबसूरत रचना.......
आध्यातमिक भाव भूमि पर लिखतीं हैं आप वाह क्या बात है
बेहतरीन रचना है...माटी से जन्में और माटी में मिलन की अनूठी दास्तान...
नीरज
wah ji badi baat
narad ji ke saath
kah diya bana do mitti
par hai chahat kitti
sujha ek majaak hai mujhko
maf karna pahli baar me hi hai jo
kahi kavita apni thati ki
aap kab na thi maati ki
duniya saari banti maati se
charan raj tabhi to pujate
bahut sundar rchna bbeer ki vani ko sarthk kar diya .
सुन्दर लेखन।
bahut sundar rachana ..maati ko maati mila diya apne ..ati sundar . badhaayi .
बहुत ही उम्दा रचना
अंततः सब मिट्टी बन जाते
पंचतत्व भी मिलें माटी में.
हे देव ऋषि यही उत्तम है
मुझको दे दो माटी रूप.
मंद मंद मुस्काते नारद
तथास्तु कह, कर गए गमन.
स्वप्न सच हो गया मेरा
अंत मिलन है माटी रूप
.......ये कविता दिल को छू गई
वाक़ई....इंसान की हक़ीक़त यही है.
http://kuhaasemenkhotinsubahen.blogspot.com स्त्री- देह का सच isako padhkar apani amulya tippani den
दार्शनिकता पूर्ण रचना ।
jo manga shi manga
sch khu to himmt se manga .
excellent!
अति सुंदर रचना!...माटी का देह ही ईश्वर की तरफ से,मनुष्य के लिए श्रेष्ठ वरदान है!...
बेहद खूबसूरत! बहुत खूब!
सुंदर !
अनामिका जी ..सुंदर भावपूर्ण रचना नारद संवाद बहुत अच्छा लगा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई
अद्भुत ! अति सुन्दर ! जितनी तारीफ़ की जाये कम है !
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