शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

गरीब विधवा













जानते हैं 
सरहद होती नहीं 
कोई ईमान की..
ये भी सच है कि
हद होती नहीं
कोई फ़र्ज़ की .

तब क्या करे
वो गरीब विधवा 
जो निस्सहाय 
और निरीह हो ?

क्या करे वो 
जब छोटे बच्चों की 
जिंदगी की
सूत्रधार हो ?

इस दुनियां के 
मकड़जाल में,
जब रूप की धूप
तन पे हो 
और इंसानी 
भूखी आँखों का 
ना कोई 
दीन ईमान हो.

कैसी कठिन डगर है उसकी 
जिसका ना 
सरमायेदार हो ?
चल दिया जो छोड़ 
उसे जूतों में लगी 
धूल सा,
चल दिया जो 
पोंछ कर 
कुर्बानियां उसकी 
काँटों के पापोश पर.

क्या करे वो जब 
आत्मा से बड़े 
पेट का संताप हो ?

तब न क्या  
रात के अंधेरों में 
चिल्लर सी 
खर्च हो जायेगी वो ?

या जिंदगी की 
शतरंज  पर 
हर मोहरे  से 
पिट जायेगी वो ?

हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है 
हाय रे विधवा 
गरीबी ही तेरा 
श्राप है ...!!

51 टिप्‍पणियां:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अनामिका बहन! एकदम रेखाचित्र खींच दिया है आपने विधवा स्त्री का और उसकी व्यथा का..ऐसी मजबूरियाँ तोड़ देती हैं, सहारा देने वाले कम और अस्मत लूटने वाले कई होते हैं...सिर झुकाए हूँ!

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

सुज्ञ ने कहा…

हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!

गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती रचना!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सभी ही अच्छे शब्दों का चयन
और
अपनी सवेदनाओ को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो...
अनामिका जी...इस भावपूर्ण रचना में
ये पंक्तियां ही आपके सवालों का जवाब बनकर उभर रही हैं.

Neeta Jha ने कहा…

aapke bhavon ne dil ko chhu liya .
es bhavuk rachna ke liye dhanyvad

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक भावनात्मक सहारा आवश्यक है, वह कोई भी हो।

Sunil Kumar ने कहा…

uttarvihin prashn vah kya bat hai dil ko chhu gayi

निर्मला कपिला ने कहा…

हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
मार्मिक अभिवयक्ति है। अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें

M VERMA ने कहा…

मार्मिक भावाभिव्यक्ति ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती रचना!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

फर्ज़ के सामने एक गरीब नि:सहाय स्त्री की मर्मान्तक पीड़ा को बहुत सटीक शब्दों में उकेरा है ...
बहुत संवेदनशील रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही मार्मिक रचना को जन्म दिया है आपने!
--
बधाई!

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी कविता ।अगर थोड़ी सी बात इसमे उस गरीब विधवा के समाज से विद्रोह की जुड़ जाती तो इसके सामाजिक सरोकार स्पष्ट हो जाते ।

रचना दीक्षित ने कहा…

गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती बेहतरीन प्रस्‍तुति

कुमार संतोष ने कहा…

अनामिका जी हर बार की तरह इस बार भी बहुत ही संवेदात्मक कविता की रचना की है आपने !
मार्मिक अभिवयक्ति है।
बहुत ही अच्छी लगी आपकी कविता !

Satish Saxena ने कहा…

मार्मिक स्थिति है समाज में हर अकेली लड़की की ...इस बेचारी का फायदा उठाते समय हर इंसान मानवीयता और इंसानियत जैसे शब्द भुला देता है ! अकेला होना अभिशाप ही है ..

ज्योति सिंह ने कहा…

या जिंदगी की
शतरंज पर
हर मोहरे से
पिट जायेगी वो ?

हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
marmik rachna jo rula de padhte huye ,main samaj ke aese niymo se dukhi ho jaati hoon jo abla ki madd karne ki vajaye use ulahana se kuchal deta hai .bahut sundar likha hai .

Girish Kumar Billore ने कहा…

राजा राम मोहन राय जिस देश को न समझा पाए उसे सुधारना कटिन तो होगा

कुमार राधारमण ने कहा…

गरीबी स्वयं किसी कोढ़ से कम न थी। उस पर से यह वैधव्य! ओह!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

अत्यंत भावपूर्ण .............

राज भाटिय़ा ने कहा…

अगर यही विधबा ओर नि:सहाय स्त्री हिम्मत ना हारे तो, बहुत कुछ कर सकती है, नारी मै बहुत ताकत है, ओर दुनिया भी उसे नि:सहाय ओर कमजोर ना समझे, हमारे घर के पास एक बुढिया थी जिसे सब माता जी कहते थे, जवानी मै ही विधबा हो गई, पांच बच्चे थे छोटे छोटे दुसरो क्र कपडे सी कर मेहनत कर के बच्चो को डा०, इंजिनियर बनाया, ओर अपने जेसी महिलाओ को हमेशा उपदेश देती थी कि कभी भी अपने आप को कमजोर मत समझो, कभी हाथ मत पसारो, किसी का एहसान कभी मत लो, हिम्मत से सब कर हो सकता है कभी हार कर इज्जत मत बेचो.... इसी लिये सभि उन्हे माता जी कहते थे, उन का कहना एक हुक्म की तरह से होता था, जबकि वो सब से प्यार से बोलती थी, आप की रचना बहुत अच्छी लगी लेकिन आप की रचना पढ कर माता जी की बाते याद आ गई

बेनामी ने कहा…

hiiiiiiiiiii
kaisi ho.... :)

bohot hi gehri kavita hai...aur katu satya bhi. bohot khoob...

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती रचना!!
अत्यंत भावपूर्ण !

Sadhana Vaid ने कहा…

मन को गहराई तक भिगो गयी आपकी रचना ! गरीब विधवा के विमर्श को बहुत काव्यात्मक और कलात्मक अभिव्यक्ति दी है आपने ! हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
सत्य ही गरीबी किसीके भी जीवन का जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है ! इतनी संवेदनशील रचना के लिये बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !

वाणी गीत ने कहा…

क्या लिखूं ...
एक गरीब विधवा की व्यथा को बहुत ही संवेदनशील शब्दों से व्यक्त किया है आपने ...
निःशब्द ...!

Shabad shabad ने कहा…

बहुत संवेदनशील ....
मार्मिक अभिवयक्ति !!!

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बेहद सुन्दर पोस्ट बधाई .

Arvind Mishra ने कहा…

अत्यंत मार्मिक -

अजय कुमार ने कहा…

बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना । समाज को आइना ।

vandana gupta ने कहा…

बेहद मार्मिक और संवेदनशील अभिव्यक्ति।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत ही सही जगह कलम रखी है ....ये भी विडंबना है एक विधवा और लाचार स्त्री की ....वह मजबूरन उस राह पर चलने को मजबूर हो जाती है .....!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ..


बहुत ही मार्मिक ... गहरी रचना है .... संवेदनशील ... विधवा नारी के मन को जिया है आपने ....

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
Bahut hi gahan chintan ko majboora karane vali ek yatharthaparak rachna.
Poonam

Kailash Sharma ने कहा…

क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो ?


तब न क्या
रात के अंधेरों में
चिल्लर सी
खर्च हो जायेगी वो ?
.....बहुत ही मार्मिक रचना....दिल को अन्दर तक छू लेती है...आभार...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

संवेदनशील और मार्मिक ....
एक विधवा की व्यथा और कथा को सही रेखांकित किया ....

मनोज कुमार ने कहा…

बेहद मार्मिक। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

हाँ, यही त्रासदी हैं एक गरीब विधवा की, विधवा ही क्यों? गरीबी वो अभिशाप है की जिसके बीच में कभी जवान बेटी , बहू और पत्नी सुरक्षित नहीं है. कितनी भूखी आँखें उनकी गरीबी के तबे पर अपनी हवस की रोटियां सेक कर उन्हें ही परोसने का अहसान दिखाना चाहते हैं. वे खुद मेहनत करके भी पेट भरना चाहें तो ये दुनियाँ उन्हें बहुत बार खींचती है दलदल में और वे हर बार बच कर ईश्वर को धन्यवाद देती हैं और कोसती भी है कि ये गरीबी दी तो फिर सुन्दरता और जवानी क्यों दी?

अरुण अवध ने कहा…

तब न क्या
रात के अंधेरों में
चिल्लर सी
खर्च हो जायेगी वो ?

एक बेरहम सच को शब्द दिए है आपने !
कमाल का कलाम !

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

मार्मिक चित्रण!
आशीष
--
प्रायश्चित

दीपक बाबा ने कहा…

बढिया.........
सवेदनशीलता कि हद तक कविता के माध्यम से पहुंचा जा सकता है......... आपके ये कविता ये बताती है.

साधुवाद.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

समाज की दुखती रग को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ टटोल कर आपने शब्दों का मरहम लगाया है...आपकी संवेदना को नमन।

Vidushi ने कहा…

Hmmmm garibi abhishaap to h aur gareeb vidhwa? maano kodh me khaaj.. behad samvedansheel aur hridayasparshi rachna..

kshama ने कहा…

Ye rachana padhke to antarme jaane kitni khalbali mach gay...aankh bhar aayi..

Udan Tashtari ने कहा…

गहन अभिव्यक्ति!

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो ?


संवेदनशील रचना

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ग़ज़लरचना ! मर्मस्पर्शी चित्र बनाये हैं आपने !

पंकज कुमार झा. ने कहा…

मार्मिक...वास्तव में शब्द चित्र खीच डाला आपने.
-पंकज झा.

Deepak Saini ने कहा…

गरीब विधवा की मार्मिक चित्र बनाया आपने

Hitaishi NGO ने कहा…

जब वो गुज़र गयी
सब ने कहा-
घर बसा ले
दुनिया चलती रहती है
आखिर दो रोटी बनाने
वाला कोई चाहिए
लेकिन जब वो विधवा हुई
तो सुब्ने ये क्यों नहीं कहा?
घर बसा ले फिर
दो मुट्ठी आटा
लाने वाला तुझे भी
कोई चाहिए............