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मैं रीढ़ विहीन हो गया हूँ ,
मैं रीढ़ विहीन हो गया हूँ ,
मेरे वज़ूद में भी
बहुत से छेद हो गये हैं
मेरा खून चूस चूस कर
कहीं और चढ़ा दिया जाता है
मेरे अंगों की
कार्यकुशलता से,
मेरे बौद्धिक स्तर की
मनीषिता को
निचोड़ निचोड़ कर,
मेरे बच्चों को
अपने पास बुला
मुझे कमजोर कर,
अपना घर
समृद्ध कर लिया है.
मैं पहले ही अपने विकारों
से व्यथित हूँ
भृष्टाचार, घूंस खोरी,
गरीबी, अशिक्षा,
बेरोज़गारी, नशाखोरी,
जलन, भेदभाव.....
जैसे रोगों से ग्रसित हूँ.
मेरे बच्चे भीरु और
बिकाऊ प्रकृति के हैं
स्वार्थी- पन इनकी
सबसे बडी पह्चान है.
पडोसियों के निशाने पर हूँ
वो ताक में हैं कि कब
मेरे बच्चे पूर्ण रूप से
नपुंसक हो जाये
और वो तान्डव करनें
पहुंच जायें.
क्या कोई सपूत
मेरी रीढ़ की
हड्डी को
मज़बूती प्रदान नहीं कर सकता ?
कोई मेरे बलिष्ठ बाहु-बल को
मुझमे लौटा कर,
मुझे समृद्ध नहीं कर सकता ?
मेरे बच्चे क्या
मेरे पास आ कर
मुझे रोग रहित नहीं कर सकते?
बदलो, जरा खुद को
नपुंसकता के इस चोले
को उतार फेंको..
जरा खून में उबाळ लाओ
मेरी आन, बान और
शान को वापिस लाओ.
41 comments:
बदलो, जरा खुद को नपुंसकता के इस चोलेको उतार फेंको..जरा खून में उबाळ लाओ मेरी आन, बान और शान को वापिस लाओ.
ओजस्वी कविता....हार्दिक शुभकामनाएं !
देश की बेबसी को कहती विचारोत्तेजक रचना ..अच्छी प्रस्तुति
मेरे बच्चे भीरु औरबिकाऊ प्रकृति के हैं स्वार्थी- पन इनकी सबसे बडी पह्चान है.
देश की पीड़ा , देश के दर्द को अभिव्यक्ति देते शब्द, बहुत संयत और खूबसूरत चित्रण , आभार
मन को उद्वेलित करते भाव..... गहन अभिव्यक्ति
रोग समझ में आ जाये तो निदान भी सम्भव है। बहुत सुन्दर राष्ट्रव्यापी विकृतियों को उकेरा गया है...बधाई
देश बोल सकता तो यही सब कहता ...
रगों में खून की जगह नशा भरा जा रहा हो तो खुलेगा कहाँ ...
विचारोत्तेजक कविता ...
आभार !
उत्साह जगाती पंक्तियाँ, पुकार करुण है, वीरों को बढ़ना होगा।
पडोसियों के निशाने पर हूँ
वो ताक में हैं कि कब
मेरे बच्चे पूर्ण रूप से
नपुंसक हो जाये
और वो तान्डव करनें
पहुंच जायें.
..... tab bhi yahi haal tha jab gulam tha , swatantra hoker bhi nishane per !
ओजस्वी कविता....अच्छी प्रस्तुति...
आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बहुत आक्रोश है।
ज़रूरत भी है इसकी। कुछ खास अवसर पर ही सही हमें हमने क्या खोया है क्या पाया है सोच-विचार करना ही चाहिए। जिस तरह से व्यवस्था का पतन हुआ है, तंत्रों का क्षरण हुआ है, व्यवस्था पर से हमारी आस्था ही उठती चली जा रही है।
इस देश की बेबसी और लाचारी की वजह यहाँ की जनता ही है......एक ललकार और पुकार उठा रही है ये पोस्ट.........बहत सुन्दर|
अच्छी अभिवयक्ति....
bahut hi sundar prstuti
prerak rachna...
अनामिका जी सोते हुए को जगा सकती है पर मरे हुए को नहीं , कोशिश करने में क्या बुराई है .....
देश के करुण क्रंदन को सार्थक अभिव्यक्ति देती हुई आपकी रचना.....अति प्रशंसनीय
kash hr hgar me is vichardhara wali shkhsiyat ho to kya mjal jo koi bahr wala aakh bhi utha kr dekhe shrt ye hai ki hm apni charpai ke neeche se buhar kr sara kchra bahr nikal kr jla de .
anamika aahvahan deti shandar post ke liye dil se bdhai
जरा खून में उबाळ लाओ
मेरी आन, बान और
शान को वापिस लाओ.
देश की दयनीय स्थिति पर करुण क्रंदन और आक्रोश की सार्थक अभिव्यक्ति .... एक अच्छी कोशिश.... शुभकामना
बदलो, जरा खुद को नपुंसकता के इस चोलेको उतार फेंको..जरा खून में उबाळ लाओ मेरी आन, बान और शान को वापिस लाओ.
देश के क्रंदन को बखूबी उजागर किया है………बेहतरीन प्रस्तुति।
क्या कोई सपूत
मेरी रीढ़ की
हड्डी को
मज़बूती प्रदान नहीं कर सकता ?
कोई मेरे बलिष्ठ बाहु-बल को
मुझमे लौटा कर,
मुझे समृद्ध नहीं कर सकता ?
मेरे बच्चे क्या
मेरे पास आ कर
मुझे रोग रहित नहीं कर सकते?
कोइ क्यों?????????????? क्या हम इतने गए गुज़रे हो गए हैं कि अपनी समस्याओं से लड़ने के लिए हमें किसी "कोइ" का इंतज़ार करना पड़े??? अपनी नपुंसकता का इलाज़ बाहर वाले से???
अपनी शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है!!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -
bahut hi sarthak ,prerna deti rachna......
बहुत ही प्रेरणाप्रद एवं सारगर्भित रचना ! पढ़ कर जी खुश हो गया ! मेरी बधाई एवं अभिनन्दन स्वीकार करें !
कोई मेरे बलिष्ठ बाहु-बल को
मुझमे लौटा कर,
मुझे समृद्ध नहीं कर सकता ?
मेरे बच्चे क्या
मेरे पास आ कर
मुझे रोग रहित नहीं कर सकते?
Kya zordaar aakrosh hai!
अंतर्मन को उद्वेलित करती सारगर्भित रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
देश की दयनीय स्थिति पर सार्थक अभिव्यक्ति .... अनामिका जी
behtareen !
dedicated to the service of nation !!
behad achchi lagi....ye bhi aur pahlewali bhi.
आज तो अलग ही बात है. देश का दुःख दर्द बखूबी उकेरा है.
बहुत बढ़िया रचना...
बहुत ही प्रेरणाप्रद एवं सारगर्भित रचना ....हार्दिक शुभकामनाएं !
अनामिका जी
बहुत ही सच्ची रचना .. आज के युग को दर्शाती हुई .. शब्दों के संयोजन बहुत ही अच्छा है ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
anamika ji ...kalam ne kmal kar diya ..bahut khoob
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
आपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
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☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
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!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
देश के लिए सम सामायिक चिन्तन...बहुत अच्छी रचना है अनामिका जी.
ओजस्वी कविता..
Bajuwe fadfada gai...
bahut hi sunder....
ek sachhi ghatna padhiye mere blogg par.
Abhar
Aaj ke ghatnakram ko dekhakar khun me ubal to aa hi raha hai . prabhavi rachana
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