बुधवार, 18 मार्च 2009

दोस्ती की अंतिम सांसे..

अंतिम सांसे ले रही थी

उनकी दोस्ती..

फिर भी एक आस...

एक उम्मीद

कि , लौट आयेंगे

फिर से वो दिन..

कि, फिर... शायद फिर..

इतना वक़्त दे पाएंगे..

फिर से नए रिश्तो को..

मज़बूत बनायेंगे..


फिर से लम्बी बाते होंगी..

वो गमो को भेद..

जिंदगी को जी लेने वाली

वो मुस्कुराह्ते होंगी..

फिर से धड़कने

एक-दूजे को छुएंगी ..

एक-दुसरे को सुनेंगी..


फिर से डर की

सरहद पार कर जायेंगे..

और इस बार

इस पवित्र रिश्ते को..

पाकीज़गी दे पाएंगे..!!


आह..

कैसे मोहपाश है, ये,,

उमीदो के दामन

छूटते नहीं है...

ये भ्रम जाल

टूटते नहीं है..!!


अंतिम सांसे ले रही थी

उनकी दोस्ती..

फिर भी एक आस...

एक उम्मीद.....!!


सोमवार, 9 मार्च 2009

मेरी छोडो..अपनी कहो..

मेरी छोडो ना तुम अपनी कहो

ना मेरी सुनो, कुछ अपनी कहो..

क्या बीती तुम पर,

जब ये दिल टूटा,

क्या हुआ असर..

जब प्यार तुम्हारा लुटा ..


क्या हुआ था तब,

तुम पर जब ऊँगली उठी..

क्या बीती तुम पर...

जब कहर की रात ढली..

कैसे शब् पर रोई तुम..

कैसे मद्धम सांसे टूटी,

मेरी छोडो ना ,

तुम अपनी कहो...

कैसे दर्द सहा...

कैसे आहे फूटी..

क्या बीती तुम पर

जब अरमानो की ख़ाक उडी..

तुम तो बहुत नाज़ुक हो,

कैसे ये गम सह पाई,

कैसे तुमने आंसू पिए..

कैसे जख्म-इ -जिगर सिये

कैसे सारे जुल्म सहे..

कैसे तुम बेहाल हुई..


मेरी छोडो न..

तुम अपनी कहो..

मत पूछो मुझसे..

क्या बीती मुझपे..

मैं तो बर्बाद था पहले भी..

थोडा सा बस और हुआ..

तुम्हे पाकर मैं..

सब गम भूल गया था..

पर अब तो मैं नासूर हुआ..

न झांको इन बेनूर सी आँखों में..

न मुझसे कोई सवाल करो..

उजड़ चुका सा शहर हु मैं..

और चलती फिरती लाश हु में..

मेरी छोडो न..

तुम अपनी कहो..

ना मेरी सुनो..

बस अपनी कहो...!!


शुक्रवार, 6 मार्च 2009

आज सब कह दो..

मेरी सोचो को थोड़ा आराम दे दो..

मुझ पर एक अपना एहसान दे दो..

बहुत झुलसाती है सोचे..

जब हालात तुम्हे सोचते है..

चीखती है रगे ...,

जद्दो-जहद भी बदन तोड़ते है..

मुझे मेरी सोचो से

ज़रा से फासले दे दो..

जो दिल में है वो कह दो..

मेरे सीने पे अपना सर रख के..

अपने सारे दर्द कह दो..


आज वो सब कह दो

जो रह रह कर दर्द देते है तुमको

भिगोते है पलके..

स्याह राते जो जलाती है तुमको..

हर उस लम्हे को आज जल जाने दो..

मेरी बाहों में वो अंगारे गिर जाने दो..

आओ मेरे पास, दिल की जिरह खोल दो ..

लरजते लबो की ठंडी आहो को

अब बस गर्म सांसो में घोल दो..

आ जाओ, आ जाओ, इन बाहों में सो लो..

आज मुझ पर अपना एक एहसान दे दो..

मेरी सोचो को भी अब विश्राम दे दो..

मेरे सीने पे अपना सर रख के..

अपने सारे दर्द कह दो..