बुधवार, 18 जुलाई 2012

जीवन प्रश्न




मैं जीवन और मृत्यु के 
संयोग में हूँ.
अपने जीवन की साँसों के 
कोमल धागों में 
बंधा अवश्य हूँ, लेकिन 
विश्वास की काल्पनिक भित्ति पर
अपने जीवन को थाम रखा है.
किसी की दुत्कारों में हूँ
या दुलार में.
किसी के रोष में हूँ
या स्नेह में.
प्रतीक्षा में हूँ
अथवा नैराश्य में.
राग में हूँ
या वैराग्य में.
विश्वास में हूँ
या विडम्बना में.
मैं इन विचारों के 
उतार-चढ़ाव में 
उलझा पड़ा हूँ,
और प्रयाण की 
अंतिम उच्छवासों में 
लटका हुआ हूँ.
मैं किस ओर हूँ,
किस ओर नहीं,
मैं स्वयं नहीं जानता 
जीवन का यही 
सनातन प्रश्न है.

वास्तविकता में तो 
मैं स्वयं में 
कुछ नहीं हूँ,
माया और साथ का 
ये  मोह.....
आह  ! विश्वास और संदेह का 
ये मोहक मिलन !! 
कैसी विडंबना है ये   
मैं जीवन के हर क्षण में 
भयभीत हूँ  !!



बुधवार, 11 जुलाई 2012

ये दोस्ती



जब नासूर तुम्हारे भरने लगें 
जब दिल की जलन ठंडी होने लगे
जब अश्क आँखों से सूख चलें
जब विकार  राहें भटकने लगें.
जब अविश्वास पर विश्वास आने लगे
जब रिश्तों की गर्माहट याद आने लगे
जब दोस्ती की चाह फिर से जगे
जब प्यार की हूक दिल में उठे 

तब पलट के एक बार देखना मुझे
मैं वहीँ हूँ जहाँ थी पहले  खड़ी
जहाँ से भटके थे राह तुम अपनी
जहाँ मेरी बाते तुम्हें तंज देने लगी थी
जहाँ सवाल मेरे तुम्हें अखरने लगे थे
जहाँ मेरी शिकायतें तुम्हें दर्द देने लगी थी
जहाँ तुम्हारी "मैं' तुम्हारे संग हो चली थी
जहाँ तुम्हारे वर्चस्व भाव में मैं दबने लगी थी
जहाँ तुम्हारे अहम् ने मुझको बोना किया था
जहाँ तुम 'श्रेष्ठ' और मैं 'निम्न' होने लगी थी
जहाँ गैरों के बोल तुम्हें लुभाने लगे थे
जहाँ तुम्हारे झूठे बोलों ने तुम्हें झकझोरा नहीं था
जहाँ मजबूरियां बहाना बन गयी थी

जहाँ मेरी यादों से तुम नाता तोड़ने लगे थे 
हाँ मैं आज भी वहीँ उसी मोड़ पर खड़ी हूँ.
मगर पलटना तभी तुम जब 
खुद से वादा करो कि  
अब लौट के  ना जाओगे 
अपने विकारों पर विजय पाओगे
मुझ पर विश्वास कर पाओगे
मैं को तोड़ हम हो जाओगे
हाँ बहुत सी शर्ते हैं
इस दोस्ती की
ये शर्तें तो तुमको
निभानी पड़ेंगी
वर्ना ये दोस्ती दिल से 
छुडानी पड़ेगी।