दोस्तो, कभी कभी अपना बचपन कितना याद आता है...वैसे मेरा बचपन कुच्छ खास अच्छा नही बीता लेकिन बचपन तो बचपन है..कुच्छ ना कुच्छ तो चंचलता, भोलापन, ठिठोलिया लेकेर ही चलता है अपने साथ और हम कितने भी बड़े हो जाए वो यादे कभी दिल को हंसा जाती है..और ठंडी ठंडी हवाओ के साथ ठंडी फुहारो से भी आलिंगन करवा देती है..ऐसा ही कुच्छ लिख रही हू..जो मुझे याद आता है..
यू परियों की तरह तितली बन घूमना
खेतो की मुंडेरो पर
टेढ़े-मेढ़े कदमो से
फ्रौक के कोने पकड़ पकड़
तितली बन कच्ची मिट्टी में नंगे पैर घूमना
वो सब याद आता है..
दो चोटियाँ कस कस के गूथना..
माँ की लिपीसटिक मूह पे पोतना
मोटी सी बिंदी माथे प सज़ा के..
साड़ी को लपेटे लपेटे..
मोटी सी काजल की धार लगा के
पल्लू को सिर पे ओढ़ कर.
मटक मटक के माँ के सामने यू आना
वो सब याद आता है..
और....
माँ का वो गीत.....
सुन मेरी लाडो..
सास बेगानी..ननद..जिठानी..
ससुरा कंठ लगाना है..
सासू के घर जाना है..
यू ही रूठना..और खिलखिला के हंस देना..
वो सब याद आता है. .
सखियो संग ठिठोली, वो चुटकी..
वो गुदगुदी..वो शरारत और वो भाग जाना..
लकड़ी के पटले नीचे तार घुमा कर
फर्श पे घुमाना..
दादी के चरखे को खाली चलाना..
वो सब याद आता है..
वो पापा का गोद मे उठाना
रसगुल्लो भरा दोना थमाना
रूसी अपनी बिटिया को प्यार से चूमना,,,,मनांना
बहना की शिकायत ....
वो स्कूल मे कमीज़ो पर स्याही छिटकाना ...
वो सब बहुत बहुत याद आता है...
मुझे मेरा बचपन आज भी मेरे बच्चो
मे लौटता नज़र आता है..
वो सब याद आता है..!