बुधवार, 25 अप्रैल 2012

हे मेघदेव



हे मेघदेव विचरण करते हो
नभ में आवारा मद-मस्त हो 
उष्णता में भर लेते हो 
जल, सिन्धु देव का अतृप्त हो.
त्राहि त्राहि करता हर प्राणी 
देखा करता है व्यथित हो .

भारी बेडोल सी काया ले, फिर 
उमड़-घुमड़ गरजा करते हो 
कभी बाढ़ रूप धर कुपित हो
जल-जल करते हो धरती को.

उस किसान की जरा सोच करो
हर दिन-रैन में जो ये आस भरे 
कब फसल कटे,कब मेहनत रंग चढ़े..
कब दो जून की रोटी मिले.

ज्यूँ मेह गिरे कटी फसल पे 
आस भी ढार-ढार बहे,
खून पसीना सब बर्बाद हुए  
घर की दहलीज़ वीरान रहे.

उस झोपड़ पर भी दृष्टि करो
हालत उस गरीब की मनन करो 
त्रिपाल ढके जिसके सर को 
खोये जो जान,जल निकसन को.

धरा सोने को बची नहीं..
मजदूरी भी जिसको मिली नहीं,
सूखी लकड़ी का भी जुगाड़ नहीं..
दो रोटी जो पेट दुलारे कहीं.

सोने का आसन गीला है,
ढकने का वस्त्र भी गीला है,
तन की पैरहन गीली है,
बच्चों का मन भी गीला-गीला है.

जन-जीवन अस्थिरता में डूब गया 
हर जीव अती से कराह रहा.
तुम अब भी मद-मस्त चापें भरते हो.
इस सृष्टि पर तांडव करते हो.

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

ख़ुशी का त्यौहार -बैसाखी

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13 अप्रेल को हम ख़ुशी के त्यौहार के रूप में मनाते हैं. इस दिन को लेकर हमारे देश में बहुत सी किवंद्तियाँ हैं. वैशाख सक्रांति होने के कारण धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन स्नान दान का महत्त्व तो है ही, सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के कारण इसे सौर वर्ष की शुरुआत भी मना जाता है.   हमारा देश कृषि प्रधान देश है  इसलिए 13 अप्रेल का यह दिन बैसाखी के पर्व के रूप में फसल पकने की ख़ुशी में उल्लास से मनाया जाता है . पंजाब में ढोल की थाप और भंगडे-गिद्दे के रंग इस दौरान दिलों को इन्द्रधनुषी उमंग से भर देते हैं.

Baisakhi

13 अप्रेल 1875 में इसी दिन स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की थी.  बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी ये भी मानते हैं कि महात्मा बुद्ध को इसी दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. अतः यह दिन कई प्रकार से विशेष महत्त्व रखता है.

 खुशहाली और समृद्धि के इस पर्व के साथ ही त्याग और बलिदान का महत्त्व भी जुड़ा है .  इसी दिन गुरु गोविन्द सिंह ने त्याग की परीक्षा लेकर  खालसा की नींव रखी थी.

13 अप्रेल 1699 को गुरु गोविन्द राय जी ने आनंदपुर साहिब के श्रीकेसगढ़ साहिब में खालसा की स्थापना की. खालसा का अर्थ है 'खालिस' (शुद्ध) . इस पथ के माध्यम से गुरूजी ने जाति-पाति से ऊपर उठकर समानता, एकता, राष्ट्रीयता एवं त्याग का उपदेश दिया था.


बैसाखी के दिन गुरुवाणी के पाठ के दौरान गुरु साहिब जी ने सिक्खों से कहा कि मुझे धर्म और मानवता की रक्षा के लिए पांच शीश चाहिए. श्रीसाहिब (कृपाण) लहराते हुए गुरूजी ने पूछा - कौन मुझे अपना सिर भेंट करने के लिए तैयार है ? लोग घबरा गए. लाहौर का दयाराम साहस करके उठा और बोला - धर्म और मानवता की रक्षा के लिए मेरा तुच्छ शीश अर्पित है, स्वीकार करें. गुरूजी उसे एक तम्बू में ले गए. जब गुरूजी तम्बू से बाहर आये, तो उनकी श्रीसाहिब से लहू टपक रहा था. इस तरह क्रम से दिल्ली के धरम दास, द्वारिका के मोहकम चंद, जगन्नाथ पुरी के  हिम्मत राय और बिदर के साहिब चंद ने शीश देने को हाँ कही. कुछ समय बाद वे पाँचों सुंदर पोशाक पहने तम्बू में से बाहर आये. गुरूजी ने इन पांचों को  'पंज प्यारे' नाम दिया और अमृत छका (चखा) कर सिख के रूप में सजा दिया. उसी समय गुरूजी ने सिंहों के लिए पञ्च ककार (केश, कंघा, कड़ा, कच्छ एवं कृपाण ) धारण करने का विधान बनाया.

इसके बाद पंज प्यारों से अमृत छककर गोविन्द राय गुरु गोविन्द सिंह बन गए. उस दिन हजारों प्राणियों ने अमृतपान कर शोषित मानवता की रक्षा के लिए अकाल पुरुष की फौज बायी. गुरूजी ने 'खालसा' का सृजन कर शक्तिशाली सेना तैयार की. 'चिड़ियन ते मैं बाज तुडाऊँ - सवा लाख से एक लडाऊं'  का उद्घोष करके गुरूजी ने जनता की शक्ति को जगा दिया. उन्होंने 'इनहिंते  राजे उपजाऊं'  कहकर शक्तिहीन जनता को राजनीतिक शक्ति हासिल करने लायक भी बनाया.
Baisakhi


(साभार जागरण )

रविवार, 8 अप्रैल 2012

मैं अकेला भला था ....


दोस्तों दर्द-ए-दिल का पैमाना जब छलकता है तो जज्बातों की बरात कुछ यूँ शोर करती है...
ज़रा गौर फरमाइयेगा ....

प्यार के बदले में खरीदा उसने
और मुझे हासिल समझ लिया..

पलकों पे चले आये है अश्क मुसाफिर बन कर..
कि मेरे दिल  को उसने मेरा बदन  समझ लिया...!!



अब एक नज़्म...

मुझे यूं उदास रहने की आदत न थी
खुदा ये  मुहोब्बत के गम क्यूँ दे दिए..
मैं  अकेला भला था  इस  संसार  में
तूने  तन्हाइयों  के सागर क्यूँ दे दिए...

मैं   तो   हँसता  था  फाके  मस्ती   में   भी..
बे-रब्त  उम्मीदों  के  सैलाब  क्यूं  दे  दिए..
आरज़ू  ना  की  जिसने शब्-ए-महताब की,
 उसे खुद पे रोने के  सिलसिले  क्यूं दे दिए..

ज़ुफ्त्जू  ना  थी,  फिर   भी  वो  आ  ही  गया तो
उसके आने ने  जिन्दगी को शिकन  क्यूं दे दिए..

मेरी   आँखों   में  खुशियों  के  मेले  ना  सही..
उसे   अपना  बना  मुझे ये  आंसू क्यूं दे दिए...!!