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तेरी दूरियाँ मुझसे इतनी क्यों हैं ?
इन दूरियों का दर्द इतना बे-दर्द क्यों है?
हर अरमान पर जल उठती हूँ कि ...
तेरी जुदाई भी सलाखों सी लगती क्यों हैं ?
न चाह कर भी साँसे आती-जाती हैं ?
इन सांसों पर तेरा नाम है फ़िर तुझ बिन ये चलती क्यों हैं ?
तेरी यादों का आना -जाना मार ही तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??
भर जाता है इतना दर्द क्यों सीने में ..
रूह भी ज़ार - ज़ार होती क्यों है ??
जब हम तुझ बिन जी ही नहीं सकते तो
खुद को जीने का ये भरम क्यूँ है ?