कुटिल नीतिज्ञों के
हृदय कितने मलिन हैं
स्वयं हैं षड्यंत्र रचते
फांसते निरी नार हैं.
शोणित बहाते अपनों के
आश्वस्त करते राज हैं,
मरवा निर्दोष रणभूमि में
समझते बच गयी अब लाज है.
प्रेम हृदयों को तोड़ते
शायद पत्थरों के बने
इर्ष्या की अनल में दहकता
जिनका निज स्वार्थ है.
प्रतिशोध लेने के लिए सदा
उपभोग करते नारी का
सहिष्णुता कैसे बसे जहाँ
विष-वासना करती राज है.
वासना में अंध रावण
शक्तिरूपा से शक्ति तोलता
हुंकार भर अभिमान से
अपने अंत को ललकारता.
अपहरण कर मिथिलेश का
निर्लज्ज, रण-भेरी में नाचता
अग्नि परीक्षा ले कर भी सिया को
अधिकार हीना वन में भेजा गया.
याज्ञसैनी भी बच ना पाई
विभाजित हो पुरुषों के वर्चस्व से
केशों से घसीटे, कोई वस्त्र खींचता
बाहों में लिपटी देह,विद्रूप है टटोलता.
भगिनी का बदला लेने कुरों से
मामा पासों का खेल खेलता .
कुरुक्षेत्र पर महाभारत लिख कर
इतिहास द्रौपदी पर बिसूरता.
सब सहे ये नारी, फिर भी कहें
नारी नरक का द्वार है
माध्यम बनी क्या आज नारी
सामर्थ्य दिखाने के लिए ?