प्रेम पुष्प महक में खोया था
मखमली चांदनी सी चादर ओढ़े
कितनी यादों से अंतस भिगोया था.
वो हर पल मेरे साथ रहे
ज्यूँ निशि संग तारों की बरात रहे
हो विकल गगन में जब खो जाता
वो चांदनी बन सौगात मिले.
कब ये नसीबा रूठ गए ?
कब शब्दों से दिल टूट गए ?
कब उम्मीदें पथ का कांटा बनी ?
जो घायल हो ये अलगाव हुए ?
विश्वास की डोरी टूट गयी
करुण हृदय से विरक्ति फूट गयी
कल-कल करती जो प्यासी नदिया थी
ना जाने कब कैसे सूख गयी ?
हृदय की विकल रागिनी आज
हा-हा-कार सी गूंजा करती है
क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं
करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं .
उपालंभो के आंसू भर भर
आज खुद को यूँ समझाता हूँ
हे चन्द्रामृत पिलाने वाले
क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?
सुख की बातें सब स्वप्न हुई
क्यूँ सुप्त व्यथा को जगाते हो
हे करुणे, रो - रो कर क्यों
प्रेम विभूति खोते हो .