शनिवार, 30 नवंबर 2024

संतान

Share










चेहरे पर झुर्रियाँ

हिलते हुए दाँत 

आँखों पर चश्मा 

सर पर गिने-चुनें 

सफेद बाल ,

ख़ुद की पहचान खोकर 

जो तुम्हें पहचान दी है 

आज तुम्ही उन्ही माँ-बाप से 

उनकी पहचान पूछते हो। .

किचन की गर्मी, पसीना 

हाथ पर गर्म तेल के 

छींटे, कटने के निशान,

माथे पे बाम लगाये,

पैरों में दर्द सहती 

हाथों में करछी, बेलन लिये 

आज भी वही कर रही है 

जो पिछले 25-30 सालों से 

करती आ रही है 

फिर भी पूछती है

बेटा कुछ चाहिये….  !!

तुम ही उसकी जमा पूंजी हो

और तुम उस से  

उसकी जमा पूंजी पूछते हो  !

ख़ुद को मिटा कर 

जिसने तुमे बनाया

तुम उन से उनकी 

औक़ात पूछते हो ???

दो पैसे कमा, 

अपने कर्तव्यों से विमुख 

माता पिता को उनके कर्तव्यों का 

ज्ञान देते हो …..

उनके सुख दुख से अनजान

जरूरतों को दरकिनार कर

घर के चौकीदार बना

स्वयं के आनंद में डूबे 

अपनी संगिनी की 

भावनाओं से आद्रित 

मान-मनुहार करते

अपने माता - पिता के मान को 

खंडित करते हो

कैसी संतान हो ???

शनिवार, 10 जून 2023

शब्दों का सफर

















मै नहीं लिखती अब 
क्यूंकि, लिखने के लिए 
शब्दों को जीना पड़ता ह है । 

शब्दों को जीने के लिए
मनोभावों में कहीं गहरे तक 
उतरना पड़ता है। 

गहरे उतरने की क्रिया में 
तन्हाई से अटूट बंधन बनाते हुए 
जख्मों को उघाड़ उघाड़ कर 
कुरेदना पड़ता है । 

चीत्कार करते हुए 
एहसासो की वेदनाओं को 
शब्दों के वस्त्रों से सजा 
दर्द के मंच पर 
उतारना पड़ता है ........
तब कहीं जाकर जज़्बात 
कविता का रूप लेते हैं 
और इन शब्दों से 
कविता बनने तक का सफर 
बहुत रुलाता है मुझे 
इसलिए मैं अब नहीं लिखती  । 

क्यूंकि नहीं है पसंद मुझे 
जिंदगी को रुदन की पहरन में देखना 

क्यूंकि चाहे झूठी हंसी हंस कर ही 
पा लेती हूँ मैं विजय 
कुछ हद तक 
अपने अंदर के फैले नैराश्य से ,

भटका लेती हूँ 
अपनी व्याकुलता को 
अपनी मस्त चाल से 

पी जाती हूँ कड़वाहट 
अपने भीतर की ..........
गीतों की गुनगुनाहट से । 

संवार लेती हूँ 
विषाद  में डूबे मन को 
औरों को गले लगा कर ,,,,,
मुस्कुरा लेती हूँ 
खुद भी 
दूसरों को हंसा कर । 

इसलिए नहीं लिखती अब
क्यूंकि लिखने के लिए 
शब्दों को जीना पड़ता है  ।। 


मंगलवार, 20 सितंबर 2016

ओ रे पाकिस्तान

 pics of attacks on army के लिए चित्र परिणाम


सोते शेरों को मारने वाले
पीठ में छुरा घोंपने वाले
अब तू भी चैन से न सो पायेगा
तेरे घर में ही घुस के तुझे मारा जायेगा !!

तेरे लिए तो हमारी सेना बहुत
तोपों की गर्जन तेरे बस की नहीं
कायरता तेरी  इसी में दिखे
कि शहीदों को अपनाने का
तुझमे दम  भी नहीं !!

सब्र दिखाया अब तक हमने बहुत

पडोसी धर्म अब तक निभाया बहुत
17 के बदले 70 न मारें तो देखना
तुझे घुटनों पे ना लाये तो देखना !!
तू  जिस जुबां में समझता है
उसी जुबां में अब बात होगी
ना दोस्ती ना कोई फ़रियाद होगी
नेस्तनाबूत  अब तेरा वज़ूद होगा
और तेरी रूह कब्र की मोहताज़ होगी.

एक चीनी के पीछे
जो दो-दो बेटे गँवाए
ऐसी दोस्ती का भिखारी है तू
आतंकी के  मदारी का खिलौना बना 
ऐसा गर्त में गिरता अनाड़ी  है तू  !!
मत भूल  रे ए बुड़बक वतन 
युद्ध हुआ तो पिछड़ेंगे दोनों वतन
तब बाकी दुनियां हमारी बाप होगी
यही सोच सदा सभ्य रहे हम
प्रगति पथ पर चले, शांत रहे हम
मगर ओ अक्ल के सौदागर
अब तेरी ना कोई चाल कामयाब होगी !!

 

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

Earn upto Rs. 9,000 monthly with MoneyMail.in!
Hi ,
I have found a good website where you can easily earn regular income online via MoneyMail!
It’s really interesting ! You get paid just to read the emails on moneymail.in. You also get chance to buy products on special discount.
Join now and start earning good income daily. What more, as a special bonus you get paid upto Rs 100 for inviting your friends also!.
Just open the link below and register now.
http://www.moneymail.in/?sponsor=273624
MoneyMail - Get Paid to read emails
Sunita Khurana 
 
 

सोमवार, 29 जून 2015

माँ

Image result for pics of mother and boy 



 छोटे थे तो
माँ के आँचल में
सिमटे रहते थे हम

ऑफिस जाती थी तो
पल पल घडी के कांटो को
निहारा करते थे हम
आके सीने से लगा लोगी माँ
उसी पल की चाहत में
उदास होते थे हम.

जवानी मस्तानी आई
हम मद मस्त होने लगे
आजादी की चाह लिए
दोस्तों में वक्त देने लगे.
हम बदल गए,
माँ बदली नहीं,
ऑफिस से लौट 
इंतज़ार करती रही 
पूछना, टोकना भी
कहाँ  भाता था माँ .
बेरुखी से कहना
क्यों बार बार पूछती हो माँ,
सोचते थे कि रात आये नहीं
दोस्तों से बिछड़ कर न जाएँ कहीं
ये आजादी यूँ ही चलती रहे
पापा घर बुलाने की जिद न करें।
आज माँ तुमसे दूर हूँ
नौकरशाही में माँ मजबूर हूँ ,
आज न तुम्हारी रोक टोक है
दिन रात दोस्त ही दोस्त हैं
आजादी भी माँ भरपूर है
घर भी है माँ
साजो-सामान भी है
पर माँ तू नहीं है
न तेरी आवाज़ है
इंतज़ार करती
वो तेरी न आँख है.

आज कोई कहने वाला नहीं
बेटा, तू कब आएगा,
कोई  पूछता नहीं  कि
बेटा, तू क्या खायेगा।
मैं भूखा रहूँ या
बीमार रहूँ
माथा चूम ले
गोद में भर के मुझे
मेरा दुख छीन ले
दूर तक भी कहीं
माँ वो तेरा साया नहीं .
आज तडफता हूँ
माँ तेरे साथ को
आज रोता हूँ
माँ मैं तेरे प्यार को
चंद पैसों की खातिर
माँ तुझसे दूर हूँ
आजादी है महंगी
माँ बहुत मजबूर हूँ !!
 

शनिवार, 14 मार्च 2015

आखिर तो इंसान हूँ ....

Image result for pics of sad feelings



दिल में चुभन हुई
तो मैं हंसने लगा
मानो  हंस के
चुभन को भुलाने चला ..

चुभन जख्म करने लगी
तो मैं खामोशी से
लब  सी गया
क्यूंकि आंसू दिखाने से
डरता रहा ..

रक्त रंजित किया ..
जख्मों ने छलनी किया
अश्क रुक न सके
आँख छलक ही गयी 

आखिर तो हाड-मांस का
पुतला हूँ मैं.
भावों के स्पंदन से
जलता बुझता हूँ मैं  !!

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

एकाकीपन.......

Image result for tanhai pics


एकाकीपन के 
झंझावतों से 
स्वयं को मुक्त करने,
अंतस की खलिश 
को कम करने हेतु 
बड़ी बहिन समान
भाभी, माँ सी छाया
देने वाली सासु माँ
मन को अलोलित करने वाले
मासूम बच्चो से ,
और उन बाकी रिश्तों …
जो इस तिश्नगी पर
फोहे बनने को काफी थे ……
उस सब से मिल तो ली थी
मगर उफ्फ ये
दिल की आग से
तपा आँखों का पानी,
कुछ अनचाही तल्खियाँ,
और जिद्दी मनहूसियत
मेरे वजूद को काबिज किये रहे
और ये रूह जो
सिर्फ और सिर्फ
तेरे आगोश की, तेरे साथ की,
तेरे जज्बातों की, स्पर्श की
तपिश पाने के लिए
तड़फती ही  रही .....!!



शनिवार, 24 जनवरी 2015

ए दोस्त ........





मेरे वक्तव्य को 
अन्यथा न लेना दोस्त 
मेरी फितरत है 
जिसके लिए जैसा भाव है 
उसे उसका सौंप दूँ  
बिना लाग -लपेट के
कह देना मेरी आदत है। 


नहीं, दोषारोपित नहीं कर रही 
यह कह कर तुम्हे कि 
अधूरापन है दोस्त 
तुम्हारी मित्रता में।  

समय की, समाज की 
असह्य बेड़ियां हैं 
हमारे लिए दोस्त 
इसलिए विचलित मन 
बार बार तुमसे ही 
उलझ जाता है  !

बहुत कुछ बांटना चाहती हूँ 
तुम्हारे साथ ,
परन्तु हमारी  व्यस्तताये  
इस मैत्री को 
अल्पायु किये देने पर 
आमादा हैं !

अस्त -व्यस्त होते हुए 
मेरे यही मनोभाव 
व्याकुल किये रखते हैं मुझे  
और मैं स्वयं को 
हर संभव प्रयास करते हुए भी 
असमर्थ महसूस करती हूँ !!




शनिवार, 13 सितंबर 2014

ये कैसी परिणति




नाज़ों से पाला 
दर्दों को झेला
देह को कटते
खुली आँखों से देखा
तब तुझे पाया था !

खून से लथपथ
अचेत, अधमरी सी
निर्बल सी काया को
अपने आगोश में
समेटा था
तब तेरी साँसों को
सम्बल मिल पाया था !

अपने पयोधरों से
तेरा रोम रोम सींचते
रातें आखों में काटते
तेरे लिए दुआएं मांगते
तेरे काँटों को चुनते 
तेरी इस माँ ने
तेरी ही खुशियों के लिए
रब की हर चौखट को
टेरा था !

लेकिन तूने
नव-यौवना बनते ही
घात-प्रतिघात कर
विश्वास की ड्योढ़ी को
तिरस्कृत कर
ममत्व का
निर्ममता से
प्रतिदान करते हुए
तनिक भी विचारा नहीं 

और 

अनजान युवान की मलिन,
लिस-लिसी, अशुचि पूर्ण
मिथ्या बातों में आ
देह की श्वेत चुनर को 
तार तार कर,जश्न मना
स्वयं तो उच्छिष्ट (अपवित्र) कर
अपनी ही धरती को
बंजर बना डाला !

आह ! ममता को सुवासित करने
की ये कैसी परिणति
कि  तेरी जननी
अपने ही अनुताप में
सुलगती, आज स्वयं के
अग्निस्नान को बाध्य है !!



शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

चाँद पिघल रहा है

Image result for pics of moon & baby



चाँद की तासीर 
ठंडक लिए होती है 
तो क्यों आज 
पिघल रहे हो 
चाँद तुम … ?

जानती हूँ 
इस पिघलन में 
कितनी व्याकुलता है 
कितनी अपने ही टुकड़ो में 
टूटने की विवशता है     

कितनी वेदना को 
आत्मसात किया  होगा 
चाँद तुमने 
तब कहीं जा कर 
पिघलने पर 
मजबूर हुए होंगे. 

देखती हूँ 
तुमसे ही अवभासित  
तुम्हारी आँखों के तारे 
तुम्हारे ये तारे 
इतरा रहे हैं  
अपने रूप पर 

तुमसे अस्तित्व पाकर 
तुम में ही दाग दिखाते हैं  
तुम पर प्रहार कर  
तुमसे अपृक्त (विलग ) हो 
तुम्हे ही नगन्य बताते हैं  !!

आज के युग के ये तारे 
पूर्वाग्रहों में डूबे 
छद्य समाज से परिष्कृत 
कठुराघात करते 
टमकाते, मटकाते  
ओ चाँद, 
तुझे ही 
खंड खंड करते 
तेरी शीतलता को 
उच्छिन्न कर तुझे 

गर्माते ही जाते हैं !!