साथियो आज बहुत दिनों बाद अपनी तबीयत के कोप से बच कर आप की दुनियां में लौटना हो पाया और कैसे ना लौटती आखिर आप सब की टिप्पणियां प्यार स्वरुप ही तो हैं जो मुझे यहाँ खींच लाती हैं, तो बताइए फिर भला मैं आप सब से कैसे दूर रह सकती हूँ ..
तो चलिए आज फिर से अंतरजाल की दौड़ में शामिल हो जाती हूँ ....और अपना काम आरम्भ करते हुए, आप सब के ब्लोग्स तक पहुँचते हुए, राजभाषा हिंदी पर भी अपने लेख को क्रमबद्ध करते हुए महादेवी जी के जीवन रुपी आभामंडल को विस्तार देते हुए आपके साथ अपनी यह नयी रचना साँझा करती हूँ ...
अमरप्रेम का दीपक
तू भावों की थाली सजा
आस दीप में
कम्पायमान अरमानों की
लौ को प्रखर कर
जिन्दगी को उजास देती है.
तेरी आशाओं के रेशे
तमन्नाओं को दुलराते हुए
तेरे मुख-मंडल पर
जीने की ममता को
जीवित रखते हैं.
किन्तु मैं अपने जीवन की
चिलचिलाती धूप से क्लांत
तेरे सामीप्य की
कल्पना में लिपटा
अपने ही अश्रु कणों को
तेरी उँगलियों के
स्पर्शमात्र से
हिमकण बना
थोड़ी सी ठंडक
पा लेने की
चाह लिए
चुपचाप तुझ में लीन
तेरी सोचें बुनता हूँ.
मैं अपने व्यथित
आलोल मन को
उग्रता से दौड़ाता हुआ
एकाकीपन की
कोठरी में पड़ा,
अरमानों की अस्थिरता
में डूबा
तेरे आस दीप की
प्रखर लौ संग
इस प्यार की
अमरता को आँका करता हूँ.
देख इन अंधेरों को,
एकाकीपन को ,
क्षीण होती इस वय को,
मेरी सांसों के
वेग में छुपे
जीवन-मरण के
चिन्हों को...
कि कैसे
यह अमरप्रेम का दीपक
नश्वरता को
पाथेय बना
समाधिस्थ होने को है.
"आप सब को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं"