दिल में चुभन हुई
तो मैं हंसने लगा
मानो हंस के
चुभन को भुलाने चला ..
चुभन जख्म करने लगी
तो मैं खामोशी से
लब सी गया
क्यूंकि आंसू दिखाने से
डरता रहा ..
रक्त रंजित किया ..
जख्मों ने छलनी किया
अश्क रुक न सके
आँख छलक ही गयी
आखिर तो हाड-मांस का
पुतला हूँ मैं.
भावों के स्पंदन से
जलता बुझता हूँ मैं !!