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भ्रष्टाचार को
कोसते हो
क्या कभी
अपने कॉलर में
झांकते हो ?
सरकारी दफ्तर के
मुलाजिम हो ...
सुबह से शाम तक
अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह
ऐसे करते हो
निकालने की
बस अपने निजी कार्यो को
अंजाम देकर चले आते हो
और घर लौट कर
सरकार के निकम्मे पन पर
गालियां देते हो !!
बागबान फिल्म देखकर
बूढे माता पिता के
बच्चो पर आश्रित होने पर,
आपस में जुदा हो जाने पर
आंखो में
अश्रु ले आते हो ...
आश्रय देना पडा...
तो उपाय सोचते हो
उनसे पीछा छुडाने को !!
हलके से बुखार में भी
पिता जी साईकल
पर बिठा ले जाते थे
तुमसे उम्मीद करना
आज तुम्हें
बेमानी लगता है।
द्रवित हो जाते हो
उसके पति के
घर के कामो में
सहयोग ना देने पर
काम काजी पत्नी के
कुछ भी
अव्यवस्थित होने पर.
सुबह सुबह
अखबार की
में तिरस्कृत करते हो !!
ऐसे कम्प्लीट मैन हो तुम !!
कैसे कम्प्लीट मैन हो ?
1.
दिन रात भ्रष्टाचार को
कोसते हो
क्या कभी
अपने कॉलर में
झांकते हो ?
सरकारी दफ्तर के
मुलाजिम हो ...
सुबह से शाम तक
अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह
ऐसे करते हो
कि जेब से
पैन तक निकालने की
जहमत तक
नही उठाते हो.बस अपने निजी कार्यो को
अंजाम देकर चले आते हो
और घर लौट कर
सरकार के निकम्मे पन पर
गालियां देते हो !!
2.
बागबान फिल्म देखकर
बूढे माता पिता के
बच्चो पर आश्रित होने पर,
आपस में जुदा हो जाने पर
आंखो में
अश्रु ले आते हो ...
लेकिन
जहां अपने माता पिता कोआश्रय देना पडा...
तो उपाय सोचते हो
उनसे पीछा छुडाने को !!
3.
हलके से बुखार में भी
पिता जी साईकल
पर बिठा ले जाते थे
तुम्हे डाक्टर के पास
वैसे पिता सी तुमसे उम्मीद करना
आज तुम्हें
बेमानी लगता है।
4.
अपनी सहकर्मी स्त्री की
कथा-व्यथा सुन द्रवित हो जाते हो
उसके पति के
घर के कामो में
सहयोग ना देने पर
बुरा-भला कहते हो
और अपनी काम काजी पत्नी के
कुछ भी
अव्यवस्थित होने पर.
सुबह सुबह
अखबार की
हैड लाईंस
पढते हुये कैसे
पुरुषोचित दंभ में तिरस्कृत करते हो !!
ऐसे कम्प्लीट मैन हो तुम !!