टूटी-फूटी
अस्तव्यस्त सी
अपनी नींद की चादर से
शरीर को छुड़ा,
अपने मस्तिष्क के कुछ
खोये और जगे,
कुछ जीवित और मृत प्रायः
कुलबुलाते कीड़ों का
भार वहन करता सा मैं ...
खुद को सूत्रधार की
कठपुतली महसूस
करता हुआ,
उसकी ठोकरों की पीड़ा
सहने को विवश
भावनाओं के अंगारों
पर झुलसता, छटपटाता ...
विश्वास मार्ग की
भूलों भरी वेदनाओं में
तिरस्कृत होता मैं और
मेरा यह अपमानित दर्द
असमंजस में हैं
कि क्या ऐसा भी कभी
हो सकता है कि
जिसे दिल की गहराइयों में बसा,
उसके साथ को
अपना सौभाग्य बना
' कोई मेरा भी है ' के
अहसाह को
विश्वास के हिम पर बिठा
अपने प्यार को
सुरक्षित मानता रहा ....
वही प्यार, जीवन संघर्षों के
घात-प्रतिघात की
पीडाओं को सहते हुए
अवहेलना,अविश्वास,
दुत्कार और
परायेपन की आंधी में
यूँ उजड़ जाएगा.
प्रतीत होता है
जैसे आज
ये भावनाएं,
ये राग, अनुराग,
प्रीती, अनुरक्ति,विश्वास
सब मानो चौपड़ पर
सजाये हुए प्यादे हैं
जिन्हें मैं जूऐ में हार गया हूँ,
और
इस अट्टहास भरे जीवन के
मसखरे पन से बचता-बचाता सा
एकदम तनहा, लडखडाता,
लहूलुहान साँसों के तार
जोड़ने का
असफल प्रयास करता हुआ
स्वयं के लिए
एक हंसी का पात्र बन कर
रह गया हूँ मैं.