रहमत करने वाला
थोड़ा रुसवा क्या हुआ
इंसा भी अपना
धर्म भूल गया
इसमें जन्म लेने
वाले का क्या दोष
फिर भी उसने ना
अपनों को
शर्मिंदा किया.
रहा वो सदा
मस्त
अपनी अलग
दुनियां में
हमसे तो कोई
गिला न किया.
कहते हैं
ख़ुशी बांटने से
बढती है...
बस इसी
लीग पर वो
चलता रहा.
हमारी हर
ख़ुशी हम से
सांझा करता चला
गली, मुहोल्ले में
ढोलक की थाप पर
नाचता औ नचाता गया .
क्या ले जाते हैं
हमारा तुम्हारा
ये लोग ..
होठों पे हंसी दे
दुआएं ढेरो
दे जाया करते हैं
ये लोग .
आज इन्हें भी
बस कुछ दुआ चाहिए
मौत के चुंगल में
आ चुके हैं जो
उन बन्दों को बन्दों की
बस थोड़ी सी
रहमत चाहिए.
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