दो दिलों के
मनोभाव
टकराने लगे हैं.
एक दूसरे के
सारे सहयोग द्वार
बंद होने लगे हैं.
दो परिपक्व सोचों में
द्वन्द खड़ा हो गया है .
विकारों का जहर
भरने लगा है .
संवाद भी अब
दम तोड़ चुके हैं.
खामोशियों का
पटाक्षेप हो चला है .
बिसूरती चाहतें
मनोबल खोती सी
अपनी ही जमीन में
गढती जा रही हैं.
अंधेरों को
अग्रसर होती
जीवन अभिलाषा
खुद को कोसती
अपने ही खोल में
घुस जाने को
मजबूर,
नैराश्य की
चरम सीमा पर है .
कैसे उजास की किरण
फूटेगी ?
कैसे विकारों के
बाण शांत होंगे ?
कैसे मन से
एक बार फिर
प्यार के सेतु
टूटेंगे ?
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं !!