मन की ज्वाला रोक सखी
अश्रु की धारा रोक सखी
क्यों शोक भार से चूर्ण सखी ?
धैर्य की डोर ना छोड़ सखी !
कटु बोल सब भूल सखी
मरहम की कोई ले ओट सखी
विकार न जला डालें तुझको
तम-वर्षा को बस झेल सखी !
आस के तार न तोड़ सखी
कोई श्रम कर इनको जोड़ सखी
टूटा जो तारा इस रात सखी
ना जाने क्या हो उत्पात सखी !
प्रियतम तुझे इक दिन समझेंगे
अनुराग विराग सब छोड़ सखी
माना अरुणोदय हुआ नहीं
निशी का जाना निश्चय सखी !
अब कैसा ये कोप सखी
पावन धारा को मोड़ सखी
मुख से दृगजल पोंछ सखी
प्रेम सागर से मोती खोज सखी !