शनिवार, 12 जुलाई 2014

वक्ते - नाजुक के दौर में है चमन ....














गिले -शिकवे करने आते बहुत 
कर्मठ बनना किसी को गवारा नहीं 
सुधार हो देश का, सबकी मंशा यही 
व्यवस्था सुधारें किसी में ये दम तो नहीं 

स्वार्थ सिद्दी को जेबें गरम करते बहुत 
बाबू बन जेब से हाथ बाहर आते नहीं 
पंच दिवसीय दफ्तर जाना भला सा लगे 
हाय ! ओफ़िस कार्यकाल बढे न कहीं !!

दूसरों  पर  ऊँगली उठाना आसान 
अपना गिरेबान तो कोई झांके सही 
रोना भ्रष्टाचार का दिन रात रोते रहें 
नैतिकता पे चल कोई उद्योग करते नही  !!

ललचौहो की सत्ता के  गुण है बड़े 
दादागिरी से श्वेत सब काला करें 
नंग नेता, अधिकारी से कोई लड़ता नहीं  
असहाय जनता नारे बाजी करती नहीं !!

हाय हाय का रुदन मत करो  
धीर धर, इस घडी को संयम रखो  
बेसब्री की सुरा में न मतवाले बनो 
नयी नीतियां गतिशील होने तो दो !!

वक्ते - नाजुक के दौर में है चमन 
साथी मुल्कों से उठती हैं लपटें बड़ी 
खरे,श्रमि  नेता भी कम है बहुत 
इनको भी आजमाइश करने तो दो !!