अन्यथा न लेना दोस्त
मेरी फितरत है
जिसके लिए जैसा भाव है
उसे उसका सौंप दूँ
बिना लाग -लपेट के
कह देना मेरी आदत है।
नहीं, दोषारोपित नहीं कर रही
यह कह कर तुम्हे कि
अधूरापन है दोस्त
तुम्हारी मित्रता में।
समय की, समाज की
असह्य बेड़ियां हैं
हमारे लिए दोस्त
इसलिए विचलित मन
बार बार तुमसे ही
उलझ जाता है !
बहुत कुछ बांटना चाहती हूँ
तुम्हारे साथ ,
परन्तु हमारी व्यस्तताये
इस मैत्री को
अल्पायु किये देने पर
आमादा हैं !
अस्त -व्यस्त होते हुए
मेरे यही मनोभाव
व्याकुल किये रखते हैं मुझे
और मैं स्वयं को
हर संभव प्रयास करते हुए भी
असमर्थ महसूस करती हूँ !!