Friday, 6 March 2009

आज सब कह दो..

मेरी सोचो को थोड़ा आराम दे दो..

मुझ पर एक अपना एहसान दे दो..

बहुत झुलसाती है सोचे..

जब हालात तुम्हे सोचते है..

चीखती है रगे ...,

जद्दो-जहद भी बदन तोड़ते है..

मुझे मेरी सोचो से

ज़रा से फासले दे दो..

जो दिल में है वो कह दो..

मेरे सीने पे अपना सर रख के..

अपने सारे दर्द कह दो..


आज वो सब कह दो

जो रह रह कर दर्द देते है तुमको

भिगोते है पलके..

स्याह राते जो जलाती है तुमको..

हर उस लम्हे को आज जल जाने दो..

मेरी बाहों में वो अंगारे गिर जाने दो..

आओ मेरे पास, दिल की जिरह खोल दो ..

लरजते लबो की ठंडी आहो को

अब बस गर्म सांसो में घोल दो..

आ जाओ, आ जाओ, इन बाहों में सो लो..

आज मुझ पर अपना एक एहसान दे दो..

मेरी सोचो को भी अब विश्राम दे दो..

मेरे सीने पे अपना सर रख के..

अपने सारे दर्द कह दो..

8 comments:

अनामिका की सदायें ...... said...

nice

Anupama Tripathi said...

बहुत झुलसाती है सोचे..

जब हालात तुम्हे सोचते है..

चीखती है रगे ...,
zindagi se roo-ba-roo karate ehsaas .

prerna argal said...

bahut hi sunder shabdon main likhi anoothi,dil ko choone waali rachanaa.badhaai sweekaren.




please visit my blog.thanks.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

समर्पण पूर्ण रचना

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही खूबसूरत शब्द.

सादर

shalini rastogi said...

किसी के दर्द को अपने दिल में समेत लेने को बेक़रार रचना... बहुत खूब!

dinesh gautam said...

आ जाओ, आ जाओ, इन बाहों में सो लो..
आज मुझ पर अपना एक एहसान दे दो..
कहुत भावुक लेखन। एक अच्छी रचना । समर्पण और त्याग की भावनाओं से भरी। दूसरों का दुख बाँटकर सुख देनेकी कामना। बधाई अच्छे भावों के लिए।

मेरा मन पंछी सा said...

गहरे भाव लिए बेहतरीन रचना:-)
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.....