Monday 21 September 2009

आवाज क्यों नही आती..

दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती..
आँख रोती है तो बरसात क्यों नही आती..
आ जाते है ज़लज़ले...जिंदगी के चमन में..
डूब जाती है जिंदगिया..मगर....
महबूब के दिल तक आवाज़ भी नही जाती..

रहमो करम पे ही क्यों जिन्दा है मोहोब्बत दुसरो के..
तड़फ तड़फ कर भी उजालो की शुरुआत नही आती.
महबूब ही करे जब कोई चोट तो..
दिल को मर कर भी मौत क्यों नही आती..

जिंदगी है की उजडती जाती है पत्ता-पत्ता तमाम उमर
जख्म-ऐ-लहू रिसने पर भी धड़कने मौत नही लाती...
गमो की काली रातो से कब्रिस्तान-ऐ-जिंदगी बन ही जाती है..
रोती है कायनात भी मुझ पर..मगर साँस ही नही जाती..
मांगती हू मौत, मगर मौत भी तो नही आती...

दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती..
आँख रोती है तो बरसात क्यों नही आती..

मुह फेर लिया उसने, मोहोब्बत जताने को बाद..
दिल तोड़ दिया उसने, दिल में बसाने के बाद..
'छोड़ दिया तुम्हे' ये सुन भी साँस क्यों नही जाती..
बैठी हू किस उम्मीद पर..ये जान क्यों नही जाती..

लहूलुहान सी जिंदगी में अब बाकि क्या बचा है..??
ख़तम हो गया सब कुछ तो अब मैं मर क्यों नही जाती..

दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती..

11 comments:

Vidushi said...

Sundar kavita...badhai...ishq ka dard sehne ko mile to khud ko kismat wala samajhiyega...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

"मुह फेर लिया उसने, मोहोब्बत जताने को बाद..
दिल तोड़ दिया उसने, दिल में बसाने के बाद..
'छोड़ दिया तुम्हे' ये सुन भी साँस क्यों नही जाती..
बैठी हू किस उम्मीद पर..ये जान क्यों नही जाती.."

क्या कहूँ?...हर टूटे दिल के अफसाने बहुत हैं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 24-- 11 - 2011 को यहाँ भी है

...नयी पुरानी हलचल में आज ..बिहारी समझ बैठा है क्या ?

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

|| कुछ निराशा रंग जीवन में सुकूं बनकर
कहीं फैले, कहीं सिमटे, कहीं पे मुस्कुराते हैं ||


सुन्दर रचना...
सादर...

Yashwant R. B. Mathur said...

"दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती.."

आवाज़ तो आती है पर वो उसे ही सुनाई देती है जिसका दिल टूटता है। बाकी लोग सुन नहीं पाते।

सादर

Rakesh Kumar said...

सुन्दर मार्मिक हृदयस्पर्शी प्रस्तुति.
आपका आभार.
संगीता जी की हलचल का आभार.

मेरे ब्लॉग पर आप क्यों नही आ रहीं हैं.
आपका इंतजार है जी.

प्रतिभा सक्सेना said...

आवाज़ की ही परिणति हैं ये शब्द !

मन के - मनके said...

अनामिका जी,कभी-कभी जिंदगी,फ़िसल जाती है
बे-आवाज़,सही कहा,दिल टूटता है तो आवाज़
क्योम नहीं आती.

मन के - मनके said...

अनामिका जी,कभी-कभी जिंदगी,फ़िसल जाती है
बे-आवाज़,सही कहा,दिल टूटता है तो आवाज़
क्योम नहीं आती.

मन के - मनके said...

अनामिका जी,कभी-कभी जिंदगी,फ़िसल जाती है
बे-आवाज़,सही कहा,दिल टूटता है तो आवाज़
क्योम नहीं आती.

मेरा मन पंछी सा said...

हृदयस्पर्शी और बहुत ही सुन्दर रचना है...
टूटे दिल की दास्ता को बहुत ही खूबसुरती से शब्दों में पिरोया है आपने...
बेहतरीन प्रस्तुति है...