ना जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया
दिखावटी हँसी के पैबन्दों को गमों ने फ़िर हटा दिया ..
गमों पे हसने वाला सागर आज फ़िर कराह उठा..
ढेरो आंसू लिए दामन में.. दिल को फ़िर छलका गया..
न जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया..
पैबंद हँसी के लगाये फिरता था सागर ख़ुद पर..
तार तार कर गमों ने आज फ़िर मुझे रुसवा किया..
बे-रहम जख्मों के नासूर उभर ही आए है
जब की खामोशियों में सागर ने ख़ुद को डुबो दिया..
न जाने क्यों आज गमों ने फ़िर रुला दिया..
मरने भी नही देती ये दुनिया-दारी मुझको..
कर्तव्व्यो का बोझ जो मेरे संग डोली में आ गया..
लुटा लिया अपना वजूद गैरो की खुशियों के लिए ...
फ़िर भी अपना दिल आज बरबाद-ऐ-शहर सा हो गया..
न जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया..
18 comments:
पैबंद हँसी के लगाये फिरता था सागर ख़ुद पर..
तार तार कर गमों ने आज फ़िर मुझे रुसवा किया..
सुंदर !
आपकी अच्छी कोशिश अनामिका जी। लेकिन मुझे लगता है इस रचना में और कुछ करने की जरूरत है। हो सके तो बुरा नहीं मानते हुए एक बार विचार कर लें। शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
दर्द के एहसासों से लबरेज़ रचना...
भावों को खूबसूरती से लिखा है...बधाई
shri shyamal suman ke kathan se sahmati vyakt karta hoon. bhawna ke star par bahut acchi rachna hai. par isey vyarth se mukt krein to bat baney
अनामिका जी
खूबसूरती से लिखा है...बधाई
मेरी शुभकामनाएं.
बहूत खूब ....स्वागत है
यह रचना अभी मानसिक मेहनत मांग रही है
अभी अधपकी सी है
सलाह अच्छी न लगे तो क्षमा करें
http://chokhat.blogspot.com/
बहुत सुन्दर रचना
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
bhaut sunder paryas hai
bahut acchi rachana anamika ji ,bhaavnao ko aapne bakhubi shbdo me pesh kiya hai
meri badhayi sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
मनभावन. नारायण,नारायण
Shayad apko kuch aur emotion ki depth mein doob kar likhna hoga.Please bura na mane .Ahsas ke kacche raten ko tarsh kar nagina banayen.Yeh jan na zaroori hai ap ghazal likhna chah rahe hai ya geet. Mein apki koshish ka ahtram karta hoom.
shaffkat
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
बे-रहम जख्मों के नासूर उभर ही आए है
जब की खामोशियों में सागर ने ख़ुद को डुबो दिया..
अच्छी ग़ज़ल!
सादर
पुरानी रचनाओं को पढ़ने का ख़याल दिला देती है नयी पुरानी हलचल..
बहुत सुन्दर अनामिका जी..
dard me doobe shabd kuch to kahenge
sundar rachna.
ना जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया
दिखावटी हँसी के पैबन्दों को गमों ने फ़िर हटा दिया ..कितना सही कहा है…………दर्दभरी रहना दिल को छू गयी।
बहूत हि सुंदर,,
भाव विभोर कर देनेवाली रचना है,,
अनुपम भाव संयोजन ...
बेहतरीन प्रस्तुती...
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