Sunday 8 November 2009

तुम ना समझ पाओगे,

घाव बहुत गहरे है
तुम ना समझ पाओगे,
हंसी में ही मेरी
तुम भ्रमित हो जाओगे..!

ऊपर ऊपर ही रहो..
गहराई में ना उतरो जानम,
सोचो ना कुछ भी
इन होठो पे हंसी यू ही पाओगे..!

रेला है अश्को का..
उमड़ा तो डूब जाओगे,
फिर कह दोगे बंदिशे इनको..
और खुद को फंसा पाओगे..!

छोडो ना, रहने भी दो
आँखों से ना एक्सरे करो मेरा
जख्मो की सूरत ना देखा करो
वर्ना डर जाओगे..!

भाव - भ्रमित रहने दो खुद को..
और शब्दों पे ना जाया करो
अर्थ ढूँढने निकलोगे तो
खुद से ही ना जीत पाओगे..!

घाव बहुत गहरे है
तुम ना समझ पाओगे,

13 comments:

के सी said...

खूबसूरत, मन को छू जाने वाली कविता.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दर्द की अभिव्यक्ति मन को छू गयी...
सुन्दर रचना.

Amit said...

bahut acchi rachna hai

Dr. Amarjeet Kaunke said...

bahut hi dardmai kavita

M VERMA said...

भाव - भ्रमित रहने दो खुद को..
और शब्दों पे ना जाया करो
अर्थ ढूँढने निकलोगे तो
खुद से ही ना जीत पाओगे..!
बेहतरीन भाव और रचना

जोगी said...

beautifully written ...

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत, मन को छू जाने वाली कविता.

Rakesh Kumar said...

उफ़!

इतने गहरे घाव!

वाकई में समझना मुश्किल लगता है.

पर जो समझा उससे कहना पड़ता है

बेहतरीन, लाजबाब प्रस्तुति.

के लिए हार्दिक आभार.

मेरे ब्लॉग पर आप आयीं ,इसके लिए
भी आभार.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बहुत ही कोमल.

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढि़या ।

vandana gupta said...

दर्दभरे भावो की मन को छूने वाली अभिव्यक्ति।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

घाव बहुत गहरे है
तुम ना समझ पाओगे,
हंसी में ही मेरी
तुम भ्रमित हो जाओगे..!

वाह! बहुत बढ़िया....
सादर...

रंजना said...

पीड़ा सहज ही पाठक के मन में उतर जाती हैं इन शब्द युग्मो में बंध...

बहुत ही भावपूर्ण...सुन्दर...