चेहरे की झुर्रिया..
अपने निशाँ
छोड़ने लगी है..!!
मौत भी धीरे धीरे ..
अपनी चादर
फैलाने लगी है...!!
क्षणिक सुखो की
भावभरी शाखाये भी..
दारुड दुःख में..
सूख चली है..!!
मगर..., आह....
ये प्रारब्ध..
हां....
ये निर्दयी प्रारब्ध
पैशाचिक नृत्य
करता हुआ..
क्षण - क्षण..
जिंदगी को
लीले जाता है..!!
फिर भी...
फिर भी..
अवसाद यू, की
वो अंतिम क्षण
आने ही नहीं पाता ..
इस संतप्त जिंदगी का ..!!
आह ...
ये निर्दयी प्रारब्ध...!
13 टिप्पणियां:
अनामिका जी
रचना काफी भावपूर्ण रही
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
क्षणिक सुखो की
भावभरी शाखाये भी..
दारुड दुःख में..
सूख चली है..!!
dard se labrez rachna.....bass yahi hota hai prarabdh ...jo chaahte hain milta kahan hai? mann ke bhavon ko bakhoobi bayan kiya hai...badhai
ये निर्दयी प्रारब्ध
पैशाचिक नृत्य
करता हुआ..
क्षण - क्षण..
जिंदगी को
लीले जाता है..!!
अनामिका जी सुंदर भावअभिव्यक्ति ......!!
ये दीं रात न हों तो जीवन भी निराश हो जायेगा ....संघष ही जीवन है ......!!
गहरे एहसास सिमेटे लजवाब रचना .......... सच है नयी शुरुआत करनी ही पढ़ती है .......... बहुत खूब .........
कई कविताओं से गुज़रा.हर एक का अपना कथ्य है.अंदाज़ है. विशेषता पहली है, इनकी सादगी और सहजता.खूब लिखिए, खूब पढ़िए.यही दुआ है, जोर-कलम और ज्यादा!
फिर भी..
अवसाद यू, की
वो अंतिम क्षण
आने ही नहीं पाता ..
---बहुत खूब..
bahut sunder likha hai Anamika!
tumhara ye blog kese follow kar sakte hain? yahan koi option nahi deekh raha.
अनामिका जी
रचना काफी भावपूर्ण रही
बहुत-बहुत सुन्दर रचना.
अनामिका जी,
पहली बात आई हूँ आपके ब्लॉग पर...और हर्ष हुआ आपको पढ़ कर...
अपने भावों को सुन्दर शब्द देने में समर्थ हुई हैं आप...
बहुत बहुत बधाई...
mujhe bhi aapki rachna bahut pasand aai
प्रारब्ध निर्दयी ही होता है और हम विवश..
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
एक टिप्पणी भेजें