नम हर पोर है सीने में..
दग्ध भाव है..
सज़ल नयन है..
चित भाव विभोर है..
मर मर कर इस जीने में..!!
ना अरमानो की छाव कही..
ना ख्वाबो के है पाँव कही..
ना सुख की भोर है नयनों में..
ना प्रेमालाप का राग कही..!!
असहाए, दरिद्र सी उत्कंठाये.. ..
उजास नहीं है किसी पथ में..
नैराश्य की घन-घोर घटा..
छाई जीवन के उपवन में..!!
कोई उम्मीदों की बदली छा जाये..
कर-बध्ध हू, कामना फल पाए ..
मुझ भटके पथिक को कोई राह मिले..
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..!!
14 टिप्पणियां:
अनामिका जी,
अजब खलिश है सीने में......
.................................
ना अरमानो की छांव कही..
ना ख्वाबो के है पांव कही..
ना सुख की भोर है नयनों में..
रचना की ये पंक्तियां
काव्य विधा की अनमोल निधि हैं..
बस ऐसे ही लिखते रहियेगा...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
क़ाबिले-तारीफ़ है।
hame to poori rachna bhali lagi hai ,ye saari baate dil ko chhukar gujar gayi hai ,
aapki tippani bhi is man ko chhoo gayi ,apni rachna se behtar aapki baat thi kahi ,shukriyaan ,
अजब खलिश है सीने में..
नम हर पोर है सीने में..
दग्ध भाव है..
सज़ल नयन है..
चित भाव विभोर है..
मर मर कर इस जीने में..!!
har baat hai bahut sahi
ना अरमानो की छाव कही..
ना ख्वाबो के है पाँव कही..
ना सुख की भोर है नयनों में..
kya baat hai
bahut sundar bhaav
aabhaar / shubh kamnayen
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ना अरमानो की छाव कही..
ना ख्वाबो के है पाँव कही..
ना सुख की भोर है नयनों में..
ना प्रेमालाप का राग कही..
गहरे भाव और दर्द का एहसास लिए रचना है ........... दर्द की इंतेहा होने पर इंसान बस उस प्रसबु का सहारा ही चाहता है ....... अच्छा लिखा है बहुत .......
अजब खलिश है सीने में..
नम हर पोर है सीने में..
दग्ध भाव है..
सज़ल नयन है..
चित भाव विभोर है..
मर मर कर इस जीने में..!!
जब भाव दग्ध होते हैं तो आँखें स्वयं ही नम हो जाती हैं...लेकिन मर मर कर जीने में भी चित्त भाव विभोर है..ये गज़ब बात है.... :)
ना अरमानो की छाव कही..
ना ख्वाबो के है पाँव कही..
ना सुख की भोर है नयनों में..
ना प्रेमालाप का राग कही..!!
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं....ख़्वाबों के पाँव ना होना....बहुत खूब
असहाए, दरिद्र सी उत्कंठाये.. ..
उजास नहीं है किसी पथ में..
नैराश्य की घन-घोर घटा..
छाई जीवन के उपवन में..!!
इतना निराश ना हों.... आखिर जीवन उपवन है ..कभी तो पुष्प खिलेंगे ...मन में विश्वास बनायें रखें
कोई उम्मीदों की बदली छा जाये..
कर-बध्ध हू, कामना फल पाए ..
मुझ भटके पथिक को कोई राह मिले..
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..!!
अब प्रभु की शरण में आ ही गयीं हैं तो चिंत्ता की कोई बात नहीं....राह आसान हो जाएगी पथिक को रह मिल जाएगी कामना भी फल पायेगी ..
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है...
नव वर्ष की शुभकामनायें
ना अरमानो की छाव कही..
ना ख्वाबो के है पाँव कही..
ना सुख की भोर है नयनों में..
ना प्रेमालाप का राग कही..!!
कोई उम्मीदों की बदली छा जाये..
कर-बध्ध हू, कामना फल पाए ..
मुझ भटके पथिक को कोई राह मिले..
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..!!
हर पँक्ति दिल को छूती है।पहली बार ब्लाग देखा यहीं अटक गयी हूँ । मन की व्यथा और जीवन की कामना बहुत सुन्दर ।शुभकामनायें नया साल मुबारक हो।
... बेहतरीन !!!
प्रभु तेरे दर की अब राह मिले..!
--जब सर्वत्र निराशा व्याप्त हो तब प्रभु का आसरा ही बचता है।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है...
अनामिकाजी, राह मिले, ऐसी आकांक्षा पैदा होते ही प्रकृति मदद करनी आरम्भ कर देती है. यह आकर्षण का नियम प्रकृति का नियम है. आप निश्चित ही प्रकाश का अनुभव करेंगी, नये शब्द, नयी रचनाओं के रूप मे. बधाई.
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