Wednesday 24 February 2010

लम्हा-दर-लम्हा मुझे तड्पाते क्यू हो,
















लम्हा-दर-लम्हा मुझे तड्पाते क्यू हो,

हर पळ मुझे याद तुम आते क्यू हो ..!

लो मैने रख तो दिया तुम्हारा हाथ अपने सीने पर

तिनका तिनका अब मुझे और जलाते क्यू हो ??



मुहोब्बत की है हमने, तो ये अधूरी सी क्यू है ,

जुदाई की सजा है हर पळ, मिलन को दूरी क्यू है !

जला के खुद को मैने तो वफा का दस्तूर निभाया है ,

बे-वफा तुम भी नही तो फिर ये मजबूरी क्यू है ?



बहा - बहा के अशक मैने तो मुहोब्बत को पूजा है,

हर अरमान जला कर इस बेल को सींचा है !

हर मजबूरी भी हमने हंस के निकाली है ..

बंदिशो के कांटे फिर तुमने ही बोये क्यू है ?



आने वाले वक़्त की आहट मुझे हर पळ डराती क्यू है ,

फासलो के बाद यू ना चाहोगे, मुझे ये दहशत सी क्यू है ?

मै इस सोच में हर पळ गमगीन हुई सी जाती हू ..

जिंदगी अलाव सी हर पळ जळती नजर आती क्यू है ????

19 comments:

संजय भास्‍कर said...

मुहोब्बत की है हमने, तो ये अधूरी सी क्यू है ,
जुदाई की सजा है हर पळ, मिलन को दूरी क्यू है !
जला के खुद को मैने तो वफा का दस्तूर निभाया है ,
बे-वफा तुम भी नही तो फिर ये मजबूरी क्यू है ?

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

दिगम्बर नासवा said...

जिंदगी अलाव सी हर पळ जळती नजर आती क्यू है ?

किसी की याद में पहले जलना पढ़ता है पभित तो मोहब्बत में रंग आता है ..... बहुत अच्छा लिखा है आपने ...

समयचक्र said...

बहुत ही मनमोहक रचना ....

रानीविशाल said...

Behatreen peshkash...Badhai swikaar kare!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

अमिताभ श्रीवास्तव said...

mohabbat aour usaki peeda dono shbdo me nazar aati he...achhi rachna

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अनामिका जी, आदाब
बहा-बहा के अश्क मैने तो मुहब्बत को पूजा है,
हर अरमान जला कर इस बेल को सींचा है !
हर मजबूरी भी हमने हंस के निकाली है ..
बंदिशो के कांटे फिर तुमने ही बोये क्यूं है.....
...........
खूबसूरत अंदाज में बेहतरीन रचना.

स्वप्न मञ्जूषा said...

मुहोब्बत की है हमने, तो ये अधूरी सी क्यू है ,

जुदाई की सजा है हर पळ, मिलन को दूरी क्यू है !

जला के खुद को मैने तो वफा का दस्तूर निभाया है ,

बे-वफा तुम भी नही तो फिर ये मजबूरी क्यू है ?

bahut khoob Anamika ji,
is baar to baat hi kuch aur hai...
bahut bahut badhai..

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत अंदाज में बेहतरीन रचना.

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

madam, bahut khubsurat rachna hai
बे-वफा तुम भी नही तो फिर ये मजबूरी क्यू है ?...waah!!

kisi ne khoob kaha hai...."kya khoob wafaa ki tune meri bewafaai ki"!!!!!!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मुहब्बत में जो इतनी पीड़ा होती है उसे इस रचना में पढ़ कर ना जाने क्यों अपना लिखा ही एक शेर याद आ गया ...

परवाने की मौत पर शमा रोती है
हर अश्क की बूँद परवाने के लिए होती है
परवाना शमा का दीवाना होता है
और उसकी मौत शमा से ही होती है....

Pawan Nishant said...

khoobsoorat prayas. holi ki shubhkamnayen.

अलीम आज़मी said...

Anamika bahut sunder likhi hai aapne .... jitni tareef ki jaaye kam hai ...
holi ki shubh kaamnaayein aapko..bahut bahut...

रचना दीक्षित said...

मै इस सोच में हर पळ गमगीन हुई सी जाती हू ..

जिंदगी अलाव सी हर पळ जळती नजर आती क्यू है ????

आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा said...

आपको और आपके परिवार को होली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएँ ...

Anonymous said...

sundar rachna....holi ki shubhkamanaayen

Dr. Rama Dwivedi

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 15/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

ANULATA RAJ NAIR said...

सुंदर रचना.......................

हलचल ने पढवाई ये पुरानी रचना....

बहुत भावभीनी रचना.....

अनु

***Punam*** said...

खूबसूरत अंदाज.................

विभूति" said...

वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......