Tuesday 20 April 2010

शब्दो का कलरव

मेरा क्षुब्ध मन
कई बार मुझसे
बगावत करता है
मुझसे अनुरोध भी
करता है..
बार बार मचलता
और रूठ्ता है .
मुझे उत्तेजित भी करता है
कि इस के भीतर के
अंतर्द्वंद को
शब्दो से
बिखेर दू..

आंखे प्रणय-कलह
उत्पन्न करती हैं
बुद्धी
कुछ सुनना नही चाहती
मैं इस झगडालू कुटुंब को
समझाती हुं . .
इन्हे शांत कर
स्वस्थ मन होकर
बैठती हुं .

अब ....

अब शब्दो का कलरव
शांत हो गया है
हृदय के कोमल एहसास
कातर मन से
मेरा कहना मान गये हैं .

अब मैं आंसू बहा कर
अपनी वेदनाओ पर
नियंत्रण पा लेती हुं
और अपने खिन्न मन को
समझाती हुं, कि
यही क्षण भर का रुदन
ये शब्दो का मौन
ये कलम की बद-रंगत ही
अनेक कुंठाओ और ...
विरोधो को
जन्म देने से
रोक सकेंगे .
और तब...
एक
अनंत शांति का
सर्जन होगा. !

39 comments:

kunwarji's said...

एक बेहद संवेदनशील रचना!मन के द्वंध को बखूबी प्रस्तुत किया आपने!

कुंवर जी,

Kulwant Happy said...

अद्भुत रचना।

स्वप्न मञ्जूषा said...

वाह क्या शब्दों का दंगल है...
बहुत सुन्दर लिखा है...मज़ा आगया ...और मुझे कुछ याद आ गया...
कभी मैंने भी कुछ लिखने की कोशिश की थी....

शब्द हैं हास शब्द परिहास
शब्द अनुभूति शब्द विश्वास
शब्द हैं कातर शब्द करुण
शब्द मयंक हैं शब्द अरुण
शब्द हैं संबल शब्द अभिमान
शब्द की ताकत को पहचान

डॉ. जेन्नी शबनम said...

anamika ji,
aapke blog par aane ka suawsar indu ji ki wajah se mila. bahut bhaawpurn abhivyakti hai aapki, likhti rahen, shubhkaamnaayen.

M VERMA said...

अंतर्द्वन्द जब शब्दों से विखेरा जायेगा तो नए शब्दो का जन्म होगा.
सुन्दर रचना के लिये साधुवाद

Shekhar Kumawat said...

man ye bahut kuch chahta he

sahi he



bahut sundar rachana


shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

दिलीप said...

vednaon ko kya roop diya ...samvedna bhari rachna....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

विनोद कुमार पांडेय said...

मन एक विशालकाय सागर के समान है जो अनेक प्रकार के विचार और भावनाओं से भरा है....और जब ये भावनाएँ सामने आती है तो एक नई रचना बन जाती है...सुंदर भाव..बधाई

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत सुन्दर लिखा आपने आंटी जी !

________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

भई वाह ! बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है.
सच बात है आंसू से कुछ पल को आँखें धुंधला जाती हैं पर बहुत कुछ साफ़ हो जाता है. :)
शुभकामनाएं अच्छे लेखन के लिए.

ज्योति सिंह said...

आंखे प्रणय-कलह
उत्पन्न करती हैं
बुद्धी
कुछ सुनना नही चाहती
मैं इस झगडालू कुटुंब को
समझाती हुं . .
इन्हे शांत कर
स्वस्थ मन होकर
बैठती हुं
kya baat hai ,behad khoobsurat likha hai ,shukriya badhai ke liye ,tumahari baat se hansi aa gayi bloger bandhuo ki charcha me tum bhi shamil ho .

शरद कोकास said...

विरोध की शुरुआत ऐसे ही होती है ।

rashmi ravija said...

अब शब्दो का कलरव
शांत हो गया है
हृदय के कोमल एहसास
कातर मन से
मेरा कहना मान गये हैं .
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति

संजय भास्‍कर said...

मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
didi ki tareef ke liyeee

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काफी द्वन्द के बाद अनत शांति हो और शांत सृजन हो तो क्या बात है....अनात्र्द्वाद को अभिव्यक्त करती अच्छी रचना....बधाई

Satish Saxena said...

कभी कभी इंसान अपने आपको बहुत अकेला महसूस करता है उन कष्टों को भुलाने का एक ही तरीका है कि याद ही न करो ...मगर अकेलापन का अहसास कभी कभी फूट पड़ता है ...आप बहुत संवेदनशील हैं !

वाणी गीत said...

शब्दों का यह कलरव दिल दिमाग की रस्साकसी बन कर कई बार उतरता है संवेदनशील रचनाओं में ...
बहुत सुन्दर रचना ...!!

Prem Farukhabadi said...

अनामिका जी,
आपकी रचना सचमुच सराहनीय है.बधाई !

अजित गुप्ता का कोना said...

अनामिका जी लेखन ही एक माध्‍यम है जिससे मन हल्‍का रहता है। आपकी कविता सशक्‍त है।

kshama said...

और तब...
एक
अनंत शांति का
सर्जन होगा. !
Bahut khoob!

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi bhavparak aur gahre chintan koprastut karti hai aapki yah rachna.
poonam

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Ek baar padhne mein samjh nahin aayee!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यही क्षण भर का रुदन
ये शब्दो का मौन
ये कलम की बद-रंगत ही
अनेक कुंठाओ और ...
विरोधो को
जन्म देने से
रोक सकेंगे .
और तब...
एक
अनंत शांति का
सर्जन होगा. !
----वाह!
कहा भी गया है कि जब रोने का मन करे तो जी भर कर रो लेना चाहिए. शायद रूदाली की स्वीकृत परंपरा भी इसी सोंच की देन हैं।

रचना दीक्षित said...

अब मैं आंसू बहा कर
अपनी वेदनाओ पर
नियंत्रण पा लेती हुं
और अपने खिन्न मन को
समझाती हुं, कि
यही क्षण भर का रुदन
ये शब्दो का मौन
बहुत खूब हर पंक्ति कुछ न कुछ खास कह रही है
अच्छी लगी ये पोस्ट थोड़े में बहुत कुछ समेटे

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

हरकीरत ' हीर' said...

अंतर्द्वंदमें शब्दों का कलरव ....
निष्कर्ष ....
बगावत ....रूठना ...मचलना ....और मान जाना ......!!

रंजू भाटिया said...

बेहतरीन कहा शब्द बिखरे तो वही कविता है वही कहानी है ...शुक्रिया

दिगम्बर नासवा said...

अब मैं आंसू बहा कर
अपनी वेदनाओ पर
नियंत्रण पा लेती हुं
और अपने खिन्न मन को
समझाती हुं, कि
यही क्षण भर का रुदन
ये शब्दो का मौन
ये कलम की बद-रंगत ही
अनेक कुंठाओ और ...
विरोधो को
जन्म देने से
रोक सकेंगे .
और तब...
एक
अनंत शांति का
सर्जन होगा
वेदनाओं को तपा कर नयी रचना, नयी श्रीष्टि का स्राजन होता है ... सोना भी तो तप कर गहना बनता है ...

Harshvardhan said...

bahut sundar rachna haim . aapke blog par pahli baar aakar achcha laga.....

अरुणेश मिश्र said...

आँखे प्रणय कलह - विलक्षण प्रयोग । रचना नैत्यिक का निरूपण ।
उत्कृष्ट ।

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sundar rachana

Padm Singh said...

बेहतर प्रस्तुति ...... बधाई

Avinash Chandra said...

bahut khubsurat dwand ukera aapne...as usual :)

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन।

सादर

vandana gupta said...

एक बेहद अनूठी और शानदार रचना………बहुत पसन्द आई।

vidya said...

वाह..
बेहतरीन संवेदनशील रचना...
बधाई.

Jeevan Pushp said...

gahri soch...! behtarin rachna...!

Pallavi saxena said...

अरे अनामिका जी आपने तो सबके मन कि बात कहदी बहुत खूब ...संगीता आंटी कि बात से सहमत हूँ

Unknown said...

बेहद ही संवेदनशील ...अंतर्मन को स्पर्श करती अभिव्यक्ति ...