Friday, 10 September 2010

हर पल होंठों पे बसते हो ....


















हर पल होंठों  पे  बसते हो 
मेरे मौन को तोड़ा करते हो
धूप - छाँव दे मोह -माया की 
अपनी महता तोला करते हो.


अश्रु गगरी  नीर भरे जब 
वेदना-विह्व्हल हो जाती है 
मोहिनी सूरत ला ख्यालों में 
तब अंतस को बहलाया करते हो.


क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था 
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो 


यादों के गलियारों में फिरती 
तुमको ही ढूँढा करती हूँ 
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले 
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.

56 comments:

कुमार संतोष said...
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहन अनामिका,
जीवन के उन मृदु भावों से सुसज्जित जो किसी के अंतस में स्थित एकांतवास का सुख अनुभव करने से वंचित रहकर प्रवंचना का जीवन बिताने को गहन अंधकर की कंदरा में तिरोहित कर दिए जाते हैं, ऐसे अश्रु कणों को जो गरिमा आपने प्रदान की है, वह सर्वथा अतुलनीय है!! सधुवाद!!

कुमार संतोष said...

क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो


बहुत ही खूबसूरत भाव, आपके शब्दों में सम्मोहन है !

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
ख्वाबो-ख्यालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
अच्छी रचना है...बधाई.

सूबेदार said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ब्यक्ति जीवन क़े करीब
बहुत-बहुत बधाई

निर्मला कपिला said...

यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
ख्वाबो-ख्यालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
ये यादें ऐसी ही होती हैं बहुत सुन्दर रचना। बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन ही तो है जो धोखा दे जाता है ....

जब यादों के गलियारे में हो तो फिर ढूँढती क्यों हो ? वो तो यादों में ही होना चाहिए :):)

खैर मजाक एक तरफ ....

बहुत खूबसूरत और प्रेम पगी रचना ...

मनोज कुमार said...

आंतरिक करूणा से भरी यह रचना हृदय फलक पर गहरी छाप छोड़ती है। संवेदना के कई स्‍तरों का संस्‍पर्श करती यह रचना मन की छटपटाहट को पूरे आवेश के साथ व्‍यक्त करती है।

अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!

mai... ratnakar said...

यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.

अनामिका जी आपकी एक और खूबसूरत सदा के लिए बधाई और धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
बहुत सुंदर रचना,धन्यवाद

Anamikaghatak said...

bahut sundar prastuti............shabda-shabda manobhaavo ko darshaataa hai.........yahii aapkii khoobi hai

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम की मौन अभिव्यक्ति।

Vandana Singh said...

bahut sunder anamika ji :)

राम त्यागी said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !!

कडुवासच said...

...behatreen !!!

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत सुन्दर रचना....एकाकीपन में भी किसी अपने के होने का सुन्दर चित्र खींचती हैं यह पंक्तियाँ|

Sunil Kumar said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !!

अजित गुप्ता का कोना said...

अनामिका, अपना तो कोई ऐसा अनुभव है नहीं अब क्‍या बताएं? बस इतना कह रही हूँ कि ऐसा कोई सताए तो हमें याद कर लिया करो, पीड़ा कम हो जाएगी। हा हा हा हा।

ताऊ रामपुरिया said...

सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति, गणेश चतुर्थी एवम ईद की हार्दिक शुभकामनाएं.

रामराम.

Sadhana Vaid said...

बहुत पारदर्शी रचना ! मन के हर कोने को उजागर कर गयी ! बहुत सुन्दर !

ASHOK BAJAJ said...

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।

निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

अजय कुमार said...

सम्मोहित करने वाले भाव ।

vandana gupta said...

ये रचना दो तरफ़ इशारा करती है एक तो प्रेयसी का इन्तज़ार और दूसरा अपने अन्दर जो बैठा है उसके लिये विकलता और दो होते हुये भी एकाकार का भाव है।

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर रचना दिलको छु गयी .......आभार

Udan Tashtari said...

खूबसूरत भाव--अच्छी लगी रचना.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

अनामिका जी मन तो चंचल होता है और जो चंचल होता है वो इस्थिर कहाँ ?कभी अपने पास तो कभी जिसके लिए भटकता है उसके पास . बड़े उहापोह की भावना प्रेम भरी दर्शा रही रचना बहुत अच्छी है .......

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
बहुत सुन्दर!

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर -
मन की गहरी भावनाओं का
सजीव वर्णन -निश्छल प्रेम में डूबी -
बहुत सुंदर कविता -

Khare A said...

क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो

bahut khoobsurat bhav diye hain

badhai

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............

मेरे भाव said...

प्रेम की कसक लिए सुंदर भाव

RAJWANT RAJ said...

mukhar chup ko bya krti shandar kvita ke liye kya bat ! kya bat ! kya bat! .

रचना दीक्षित said...

यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ
खाबो-खयालो में हर पल रहने वाले
आँखों में भी तो तुम ही समाये हो.
बहुत गहरी प्रेमानुभूति.सुंदर भाव, सुन्दर अभिव्यक्ति

Unknown said...

क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था....

बहुत अच्छा लिखा है... सुन्दर भाव

Pawan Rajput said...

BHUT KHOOB, ACHA LAGA

Apanatva said...

Bahut sunder abhivykti.

Shabad shabad said...

अच्छी लगी रचना.....
दिलको छु गयी !!!!

आपका अख्तर खान अकेला said...

बहन जी आदाब ईद मुबारक हो गणेश चतुर्थी की बधाई हो आप्म्की रचना अगर में नहीं पढ़ पता तो यकीन maaniye आज साहित्यिक रूप से में भूखा प्यासा रह जाता बहन जी भुत भुत बधाई. अख्तर खान अकेला कोटा राजथान

गजेन्द्र सिंह said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.......

मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

Aruna Kapoor said...

क्या रूठूँ, क्या स्वांग धरूँ
मन से ही धोका खायी हूँ
ये ही तो मेरा अपना था
इस बैरी के तुम ही तो छलिया हो
अति सुंदर शब्दों की माला....अर्थात कविता!

दिगम्बर नासवा said...

यादों के गलियारों में फिरती
तुमको ही ढूँढा करती हूँ ....

प्रेम नें उन्मादी मीरा की याद करा दी आपने ... सुंदर पंक्तियाँ हैं .... लाजवाब ....

वीरेंद्र सिंह said...

बहुत ही सुंदर और मनभावन रचना .
पढ़कर बहुत अच्छा लगा .
आभार .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

अरुणेश मिश्र said...

उत्कट प्रेमाभिव्यक्ति प्रशंसनीय ।

ओशो रजनीश said...

क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....

एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html

ASHOK BAJAJ said...

बहुत ही सुंदर रचना .

ज्योति सिंह said...

अश्रु गगरी नीर भरे जब
वेदना-विह्व्हल हो जाती है
मोहिनी सूरत ला ख्यालों में
तब अंतस को बहलाया करते हो
bahut sundar rachna aur saath hi ganesh chaturathi ki badhai .

Madhu chaurasia, journalist said...

भावों की अभिव्यक्ति बेहद सराहनीय

KK Yadav said...

बड़ी खूबसूरती से शब्द दिए...सुन्दर भाव..बधाई.

उपेन्द्र नाथ said...

bhao ki sunder abhivayakti...........

upendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )

'साहिल' said...

बहुत सुन्दर कविता है........बधाई !

Parul kanani said...

aapki rachnayen prem pradhaan hoti hai aur shbdon mein maadhury hota hai..!

Nityanand Gayen said...

आप की रचना पढ़ी अच्छी लगी।

कुमार राधारमण said...

दुख तो इसमें भी है-मगर आशा की किरण लिए हुए।