Monday 8 November 2010
क्या ऐसे होगा देश निर्माण ???
चाहते नीव हो देश की
सुदृढ और परिपक्व
बने भविष्य देश का
उज्जवल और कर्मठ .
बताते अभिभावक खुद को
देकर गलत संस्कार और प्यार
निभाते हैं फ़र्ज़ ये, देकर
देश को अविकसित बाढ़.
जहाँ दंड दिया तनिक छात्र को
आलोचनाओ से किया शिकार,
सम्मान नहीं दिया शिक्षक को
अतिक्रमण ने भी किया लाचार.
कर्तव्य निष्ठा पर उठे सवाल
मीडिया ने भी दिया उछाल ,
अनुशासित करते ही शिक्षक को
कोर्ट - कचहरी के दिखा दिए द्वार.
माता-पिता को समय नहीं
कि बच्चों का करें उद्धार
कुछ अनपढ़ अभिभावक भी
शिक्षक का ही मुहं रहे ताक .
विश्वकर्मा बन शिक्षक ने भी
गुरु मन्त्र देना चाहा फूंक
मगर जहाँ चोट दी कच्चे घड़े को
अभिभावक ने लिया कुपित स्वरुप.
भय बिनु होत ना प्रीत भी
स्वः अनुशासन भी जानें नहीं
कैसे नीव रखोगे सुदृढ
कैसे देश का बढ़ेगा मान ?
विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ??
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41 comments:
वाह क्या बात है!
हर स्कूल में यह बात है!
और फिर यह भी तो आम ही है
मगर जहाँ चोट दी कच्चे घड़े को
अभिभावक ने लिया कुपित स्वरुप.
कर्तव्य निष्ठा पर उठे सवाल
मीडिया ने भी दिया उछाल ,
ज़बर्द्स
प्रवाह, समसामयिक और किसी घटना से प्रेरित यह रचना बहुत पसंद आई। खास कर इसका अंत तो लाजवाब है
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ??
आभार।
विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ??
जिस देश में गुरु को सबसे ऊँचा दर्जा दिया जाता है वहां के हालात को सही शब्दों में अभिव्यक्त किये हैं आपने, पूरी रचना एक प्रतिबिम्ब हमारे सामने प्रस्तुत करती है ...सही कहा आपने कि देश का निर्माण ऐसे तो नहीं होगा .....धन्यवाद
बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठती हुई -
गंभीर समस्या पर प्रकाश डालती हुई -
सुंदर सोच वाली कविता -
शुभकामनाएं -
सच्चाई को वयां करती रचना , बधाई
aaj ka sach
sundar rachna
विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ??
Shikshak kaa maan din-b-din kam hota jaa raha hai. Shikshak ko chhatron kaa pagaardaaree naukar ke roop me ab dekha jane laga hai.Bada sahee sawaal uthaya hai aapne!
विश्वकर्मा बन शिक्षक ने भी
गुरु मन्त्र देना चाहा फूंक
मगर जहाँ चोट दी कच्चे घड़े को
अभिभावक ने लिया कुपित स्वरुप.
यथार्थ रख दिया आपने तो ..
यही होता है
यह काफ़ी दुखद बात है कि शिक्षकगण, जो समाज के भावी कर्णधारों की जिंदगियों में आधारशिला की भूमिका निभाते हैं, पर अक्सर उनके योगदान को कमतर ही आंका जाता है. यथार्थपरक, सामयिक और विचारोत्तेजक प्रस्तुति. आभार
सादर,
डोरोथी.
anamika ji ,
sarvpratham deep parv -v-bhai duuj ki hardik shubh kamna.
bahut hi samyik lekh prastut kiya hai aapne aaj guru shishhy v abhibhavak ke beechjo bhi ghatit ho raha hai vah sahi nahi hai.
abto kahi kahi ye udaharan milte hain jahan shixhak v- shishhy ke madhya purani parampara kayam hai varna aajtobadi hi vikat samasya paida ho gai hai.aapka lekh vastutah vicharniy hai.
विश्वकर्मा बन शिक्षक ने भी
गुरु मन्त्र देना चाहा फूंक
मगर जहाँ चोट दी कच्चे घड़े को
अभिभावक ने लिया कुपित स्वरुप.
bahut hi yatharth----------
poonam
विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ?
--
आपने सही फटकार लगाई है!
तभी तो देश का भविष्य अन्धकारमय प्रतीत हो रहा है!
अनामिका जी, आपकी रचना में एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा उठाया गया है...बधाई.
वैसे इस पर लंबी चर्चा हो सकती है और अभिभावकों के साथ साथ शिक्षक वर्ग में आए परिवर्तन पर भी चिंतन होना चाहिए.
सच ही कह रही हो अनामिका इन सब बातों से शिक्षकों का भी मनोबल घटता है. बच्चों पर तो माता पिता का बस चलता नहीं सो शिक्षकों को ही दोष दे लो. जिसको नौकरी करनी होगी सुनता रहेगा
जो प्रश्न आपने उठाये हैं बिलकुल सही हैं ... बहुत गहराई लिए है रचना ... आभार
वाह वाह .....एक एक बात सही है ........
एकदम असहमत। भय बिनु होहिं न प्रीति का कथन अनुभव की चूक प्रतीत होता है। भय से उपजा प्रेम दिखावा ही हो सकता है। दंड से किसी को अनुशासित करने की कल्पना कोई मनोरोगी ही कर सकता है। जो ज्ञानी हैं वे किसी को दंड नहीं देते और जो अज्ञानी हैं उन्हें केवल स्वयं को दंडित करने का अधिकार है।
बहुत बढ़िया:
प्रेमरस.कॉम
आपने बिलकुल सही नब्ज़ पकड़ी है ! आजकल अनुशासनहीनता का वातावरण ही इसलिए बन गया है कि शिक्षक और छात्रों के बीच सम्मान और संकोच का पर्दा हट गया है ! बच्चे ना तो अपने गुरु से डरते हैं ना ही गुरू का आदर करते हैं ! शायद इसीलिये शिक्षक वर्ग भी तटस्थ और निस्पृह हो गया है जिसका खामियाजा देश निर्माण के महत्वपूर्ण कार्य के प्रभावित होने की कीमत चुका कर भरना पड़ रहा है ! बहुत ही सार्थक और विचारपूर्ण रचना !
सुन्दर पोस्ट .बधाई !
विचारणीय मुद्दा उठया है अच्छी पोस्ट. पर अब गुरु भी कहाँ वैसे गुरु रह गए हैं.
मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
वाह! क्या बात है!! बहुत उम्दा!
जरा -जरा सी बात पर अभिभावकों का शिक्षकों पर दोषारोपण विद्यार्थियों को उद्दंड बनाता जा रहा है ...अब उनके मन में अपने गुरुओं के प्रति वो सम्मान नहीं रहा है ...
बहुत सही प्रश्न उठाया है आपने ...!
आज की सच्चाई बयान कर दी …………यही सब तो हो रहा है ……………पता नही कहाँ गये वो दिन जब कहा जाता था--------गुरु बिन ज्ञान कहाँ पाऊँ? आज तो गुरु को ही ज्ञान दे देते हैं…………बेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत गम्भीर सवाल है अनामिका जी, पर काश इसका जवाब भी हमारे पास होता।
इस समस्या को यदि गद्य में कहा जाता तो अधिक प्रभाव पडता और चर्चा की भी सम्भावनाएं बनती।
sochniy...wajib prashn...achhi kavita...aabhaar
आपकी रचना में एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा उठाया गया है...बधाई.
विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ...
ज्वलंत विषय पर लिखा है आपने .. आज मान्यताएं बदल रही हैं ... छात्र उद्दंड हों तो भी दंड नहीं दिया जा सकता ....
bahut sateek vishay par likha hai!
vicharpoorna kavita!!!
@कुमार राधारमण जी
मेरे दोस्त संतुलित भय तो जीवन का आधार है जीवन से भय शब्द निकल जाय तो जीवन असंतुलित होकर वातावरण को भी असंतुलित बना देता है जिससे पूरी मानवता खतरे में हो जाती है ...आज हमारे देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पदों पर बैठे लोगों को इस देश की जनता का कोई भय नहीं नहीं रह गया है, तभी तो देश में चारो तरफ अराजकता,कुव्यवस्था तथा नकली विकाश का बोलबाला है ...वैसे आप खुद ज्ञानी हो दुबारा सोचना जरा.......मेरे ख्याल से भय भी जीवन के लिए जरूरी तत्व है प्रेम की तरह ....
आज के शिक्षक की निरीहता को बहुत अच्छे शब्दों में ढाला है .....आज के शिक्षक और विद्यार्थियों पर बहुत चर्चा हो सकती है ...और साथ ही साथ अभिभावकों पर भी ...मैं बहुत समय तो अध्यापन कार्य से नहीं जुडी रही पर जितने वर्ष भी रही बहुत से अनुभव हुए ...आज के बच्चे बहुत निरंकुश से हैं ...थोड़ा भय होना चाहिए ...लेकिन कभी कभी अप्रत्याशित घटनाएँ जो नहीं होनी चाहियें उनके चलते अब क़ानून बन गया है की शिक्षक विद्यार्थी को कुछ भी नहीं कह सकता ...तो फिर भय की तो बात ही नहीं रही ....
ज्वलंत समस्या पर लेखनी चलाई है ..बधाई
गुरु शिष्य का यह व्यवहार देश का दुर्भाग्य है।
बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठती हुई सुंदर कविता
आज के दौर में गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वहन कठिन हो गया है। ज्वलंत मुद्दे पर लिखी सार्थक कविता।
में स्वयं शिक्षक हूँ। समझ सकती हूँ आपकी व्यथा। बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति। बधाई। साथ ही मेरे ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक आभार।
अपनी संस्कृति और सभ्यता का चीर हरण हम स्वयं कर रहे हैं ! आपने ऐसे मुद्दों को उठाकर भारतीय मूल्यों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक अच्छा प्रयास किया है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
जहाँ दंड दिया तनिक छात्र को
आलोचनाओ से किया शिकार,
सम्मान नहीं दिया शिक्षक को
अतिक्रमण ने भी किया लाचार....
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आजकल शिक्षक का सम्मान करना भी गुनाह समझते हैं विद्यार्थी। थ्री इडियट्स जैसी फिल्मों से सीखिए, शिक्षकों का मखौल बनाना।
बढ़िया प्रस्तुति !
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विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ?
bahut uchit swal ,aajkal shishya hi guru ban gaya hai ,abhi hamare bachcho ke school me kuchh aesi hi baaton ko lekar hangama hua raha jo akhbaar me bhi chhapne me nahi chuki .
सुन्दर रचना
http://www.facebook.com/home.php?#!/pages/India-Ke-Tukde-Mat-Karo/140427075995811
india ke tukde mat karo
]
ekdam theek likhi hain aap.
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