Tuesday 7 December 2010

वक्त तो लगता है...

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पुराने रिश्तों के घाव गहरे हों तो 
नए रिश्ते बनाने में वक्त तो लगता है.

डूबे ही गहरे हों दरिया-ए-इश्क़ में तो
उससे निकल आने में वक़्त तो लगता है.

बांधे जो बंधन प्यार में, बेरुखी से हों चटके तो 
दौर -ए-मातम गुजरने में वक़्त तो लगता है.

गांठे उलझी तो क्या रिश्ताक्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.

हम तो दर्द की दवा ढूँढते ही रह गए जानम
ज़ख़्म-ए-नासूर सीने में वक़्त तो लगता है.

मुहब्बत की राहों में कांटे होने तो लाज़मी हैं
जब रूह ही बेवफा हो सँभलने में वक़्त तो लगता है

30 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

तभी तो कहते हैं कि रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चिटकाय, टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ पड़ जाए। अच्‍छी अभिव्‍यक्ति, बधाई।

kshama said...

बांधे जो बंधन प्यार में, बेरुखी से हों चटके तो
दौर -ए-मातम गुजरने में वक़्त तो लगता है.
Wah!
Ham bhee aapko hamare blog pe sadayen dete hain!Chali aao!:)

Majaal said...

कलात्मक पक्ष से रचना बहुत दाएँ बाएँ लगी, बाकी वक़्त लगने से तो पूरी तरह सहमत है, लिखते रहिये ....

Kailash Sharma said...

मुहब्बत की राहों में कांटे होने तो लाज़मी हैं
जब रूह ही बेवफा हो सँभलने में वक़्त तो लगता है

बहुत सुन्दर अहसास..सुन्दर अभिव्यक्ति..

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
अभिव्यक्ति में सच्चाई के तारे टांक कर आपने इसे और सुन्दर बना दिया है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

प्रवीण पाण्डेय said...

सम्बन्धों की गहराई समय के साथ ही आती है।

Yashwant R. B. Mathur said...

"...गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है....."

आपके द्वारा व्यक्त एक एक बात से सहमत.
मेरे ब्लॉग पर आकर आशीर्वाद देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.

सादर

कविता रावत said...

गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन,
क्या प्रीतलाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.

हम तो दर्द की दवा ढूँढते ही रह गए जानम
ज़ख़्म-ए-नासूर सीने में वक़्त तो लगता है.

.....

कविता रावत said...

जितनी बड़ी उलझन उतना ज्यादा वक़्त ...
सच में कई रिश्ते इस तरह उलझ जाते हैं की वे ताउम्र नहीं सुलझ पाते .....
बहुत भावपूर्ण रचना ...आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत रचना ....मन के भावों को कहती हुई ...


चंद पंक्तियाँ पेश ए नज़र हैं ...


घाव खा कर भी रिश्ते बनाने की ललक नहीं जाती ..
नए रिश्तों के लिए भी तो हौसला बुलंद चाहिए


.
डूब ही गए दरिया ए इश्क में तो फिर सोचना क्या
डूब कर भी बाहर निकल आने का हुनर चाहिए


प्यार के बंधन में लग जाती है ज़रा सी बात भी बेरूखी सी
मातम के दौर में ज़रा बंधन ढीला छोड़ना चाहिए


उलझन के दौर में गर न रहे रिश्ता , न बंधन , न प्रीत
तो उलझी हुयी गांठ को कुछ देर यूँ ही छोड़ देना चाहिए


दर्द की दवा नहीं मिलती किसी को भी सरे राह यूँ ही
ज़ख्म नासूर न बने ,ज़रा थोड़ा खुला छोड़ना चाहिए



काँटों से जब डर नहीं है कोई इन राहों में
बेवफा कहने से पहले थोड़ा सा वक्त लेना चाहिए ..

संजय भास्‍कर said...

..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

अनुपमा पाठक said...

sach hai , waqt to lagta hai!
sundar abhivyakti!

monali said...

Waqt jitna bhi lage..dua h k aap ubar aayein kyuki zyadatar to ubar hi nahi paate..

स्वप्निल तिवारी said...

Achhi hai di..jagjeet singh ki gayi ek ghazal
'pyar ka pahla khat likhne men waqt to lagta hai' se inspire lagti hai..

रचना दीक्षित said...

हम तो दर्द की दवा ढूँढते ही रह गए जानम
ज़ख़्म-ए-नासूर सीने में वक़्त तो लगता है.

मुहब्बत की राहों में कांटे होने तो लाज़मी हैं
जब रूह ही बेवफा हो सँभलने में वक़्त तो लगता है
वाह !!!वाह !!! वाह!!!!इतने दिनों बाद दर्शन दिए वो भी लाजवाब नगीने के साथ कितनी सही बात कही है आपने अनामिका. बहुत भावपूर्ण रचना

मनोज कुमार said...

गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
सुंदर भावपूर्ण रचना।

vandana gupta said...

बेहद खूबसूरत गज़ल्…………शानदार प्रस्तुति।

amar jeet said...

खुबसूरत रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .

http://charchamanch.uchcharan.com/

RAJWANT RAJ said...

anamika
vkt ki kdr me bhi vkt lgta hai jiska nirvah kvita me bhut khoobsoorti se hua hai . bhut se bikhre bhavo ko ek moti me piro kr jo mala bnai hai vo bhut sundr lgi .
bhut bhut shubhkamnayen .

Er. सत्यम शिवम said...

bhut hi sundar .....dil ko chu gayi ye rachna....aapki lekhni me ek jaadu hai,samohaan hai......behad sundar....badhai ho

प्रेम सरोवर said...

मन के किसी कोने में भावुक पल एवं कोमलता आपना स्थायी रूप सुरक्षित रखता है। भाव तरंगे अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

http://anusamvedna.blogspot.com said...

बांधे जो बंधन प्यार में, बेरुखी से हों चटके तो
दौर -ए-मातम गुजरने में वक़्त तो लगता है.


बहुत ही गहरे भाव .....

बाल भवन जबलपुर said...

बहुत उम्दा कविता
वाह
क्लिक कीजिये कमाईये !!

Manav Mehta 'मन' said...

wah wah anamika ji....bahut khoob...

M VERMA said...

गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
बहुत सुन्दर ...
रिश्तों मे उलझी हुई सी

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सुंदर रचना । काश किसि को कोई बेवफ़ा रूह न मिले ।

दिगम्बर नासवा said...

गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है....

सच है रिश्ते संभाल कर रखने चाहियें .... टूट गए तो वक़्त लगता है ....

अरुणेश मिश्र said...

रचना पढ़कर ढेर सारी यादें जीवन्त हो गयीँ ; जिन्हे भूलने मे वक्त तो लगता है ।
प्रशंसनीय ।

Sadhana Vaid said...

गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.

दिल को गहराई तक छू गयी आपकी यह रचना ! बहुत डूब कर लिखा है आपने ! मन सीला सीला सा हो गया ! बहुत ही सुन्दर ! आभार एवं शुभकामनाएं !