बुधवार, 27 जुलाई 2011

कम्प्लीट मैन

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कैसे कम्प्लीट मैन हो ?



1.
दिन रात
भ्रष्टाचार को
कोसते हो
क्या कभी
अपने कॉलर में
झांकते हो ?
सरकारी दफ्तर के
मुलाजिम हो ...
सुबह से शाम तक
अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह
ऐसे करते हो
कि जेब से
पैन तक
निकालने की
जहमत तक
नही उठाते हो.
बस अपने निजी कार्यो को
अंजाम देकर चले आते हो
और घर लौट कर
सरकार के निकम्मे पन पर
गालियां देते हो !!

2.


बागबान फिल्म देखकर
बूढे माता पिता के
बच्चो पर आश्रित होने पर,
आपस में जुदा हो जाने पर
आंखो में
अश्रु ले आते हो ...
लेकिन
जहां अपने माता पिता को
आश्रय देना पडा...
तो उपाय सोचते हो
उनसे पीछा छुडाने को !!

3.


हलके से बुखार में भी
पिता जी साईकल
पर बिठा ले जाते थे
तुम्हे डाक्टर के पास
वैसे पिता सी
तुमसे उम्मीद करना
आज तुम्हें
बेमानी लगता है।




4.

अपनी सहकर्मी स्त्री की
कथा-व्यथा सुन
द्रवित हो जाते हो
उसके पति के
घर के कामो में
सहयोग ना देने पर
बुरा-भला कहते हो
और अपनी
काम काजी पत्नी के
कुछ भी
अव्यवस्थित होने पर.
सुबह सुबह
अखबार की
हैड लाईंस
पढते हुये
कैसे
पुरुषोचित दंभ
में तिरस्कृत करते हो !!


ऐसे कम्प्लीट मैन हो तुम !!

45 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

छ्द्म भावनाओं के आवरण की चिंदियाँ निकालती अभिव्यक्ति!!

कम्पलीट मैन का भंड़ाफोड!! गहन चिंतन के लिए साधुवाद!!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aapne aaina to nahi dikhaya:)

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

baaton me kuchh nahi bahut dumm hai!! sachai kuchh aisee hi hai....

kshama ने कहा…

Hmmm...kya gazab teekha vyang hai....complete man...my foot!

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति। शायद आइना दिखाना ही कहूंगा। व्यंग्य धारदार है। बातों में सच्चाई और उदाहरण बेमिसाल।

Anita ने कहा…

बहुत प्रभावशाली और यथार्थवादी रचना!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

excellent

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

चारो कविताएं यथार्थपरक और सटीक हैं...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सही कहा है...
सभी अच्छी...

सागर ने कहा…

bhaut hi bhaavpur rachna...

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

पुरुषों को आइना दिखाती बढ़िया कविता... समय के बदलने के साथ कुछ कविता नई स्त्रियों को आइना दिखाने के लिए भी लिखिए...

बेनामी ने कहा…

सच को उजाकर करती दमदार पोस्ट.......बहुत सुन्दर|

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut prernadayak rachna hai.vaah.bahut achche.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अपने अनुभवों को बखूबी लिखा है ..

वैसे आज कल के पिता बच्चों के प्रति ज्यादा संवेदनशील दिखते हैं मुझे ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चारों शब्दचित्र बहुत अच्छे हैं!

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , यथार्थ चित्रण , बधाई

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अनामिका जी! जबसे आपने अभिव्यक्ति बदली है तब से आपकी कविताओं में एक अलग फ्लेवर दिखाई देने लगा है!! मैं कहता था न कि अनंत संभावनाएं हैं, अब दिखने लगी हैं!!
यह चारों शब्द चित्र सजीव हैं, जीवंत हैं और हमारे आस-पास बिखरे पड़े हैं.. ये कवितायेँ वास्तव में आईना है..

Amit Chandra ने कहा…

कुछ नही कहना। मेरे ख्याल से जब से स्त्री और पुरूष की उत्पत्ति हुई है तब से ये बहस जारी है और शायद खत्म भी नही होगी।

Dorothy ने कहा…

यथार्थ को प्रतिबिंबित करती सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

रजनीश तिवारी ने कहा…

क्या सारे ऐसे ही हैं ? वैसे आपकी बात भी सही है । पुरुष व्यक्तित्व के आंतरिक विरोधाभास को उभारा है आपने इस सुंदर रचना में ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सटीक उतारा कम्पलीट मैन को कविता के कैनवास पर....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सीधे सरल शब्दों में व्यक्त सन्नाट व्यंग।

Unknown ने कहा…

अच्छे शब्द ,बेहतरीन कविता , बधाई

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अच्छी लताड़... जो आवश्यक है...
बेहतरीन क्षणिकाएं....
सादर...

Manish Khedawat ने कहा…

bahut sunder
hats off u mam :)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कम्प्लीट मैन ... आज तो धज्जियां उदा दीं इस आदमी की ... बहुत सत्य लिखा है ... सटीक, करार सत्य ... जैसे करीब से देखा हो ...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

अरुण चन्द्र राय जी मैने दिसम्बर में समय के बदलने के साथ एक लेख नई स्त्रियों को आइना दिखाते हुए भी लिखा था...उसका लिंक दे रही हूँ.....


http://anamika7577.blogspot.com/2010/12/blog-post_07.html

आभार.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति
आभार

Sadhana Vaid ने कहा…

पुरुषों की दोहरी मानसिकता और चहरे पर लगे कम्प्लीट मैन के छद्म मास्क को बड़ी कुशलता से आपने शब्दों में उतारा है ! सारी रचनाएं सशक्त हैं और ऐसे दोहरे चरित्र वाले पुरुषों की सफाई से कलई खोलने में सक्षम हैं ! बहुत सुन्दर !

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

कम्प्लीट मैन की अच्छी खबर ली है आपने।
बहुत तीखा व्यंग्य है।
कविता के तेवर अच्छे लगे।

सुजाता ने कहा…

ये है आज की नारी की उन्नत सोच... बहुत धारदार और गंभीर व्यंग्य........

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सशक्त अभिव्यक्ति..... सभी रचनाएँ प्रभावित करती हैं....

संध्या शर्मा ने कहा…

आपकी बातों में सच्चाई है, व्यक्ति जो अपेक्षा दूसरों से रखता है यदि खुद ही उस पर अमल करने लगे तो सभी "MAN COMPLETE MAN " हो जाएगें...
दमदार पोस्ट....

ज्योति सिंह ने कहा…

hansi nahi rok saki is adhoorepan par, laazwaab vyang ,aesa hi hota hai priya ,haathi ke daant khane aur dikhane ke alag alag hote hai .sabko majboor kar diya sochne par kya likha hai .

ASHOK BAJAJ ने कहा…

आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .

कुमार राधारमण ने कहा…

हम सब ऐसा ही दोहरा जीवन जी रहे हैं। अपनी जड़ों से दूर,आधुनिकता के दिखावे में अपने स्व को खोते हुए।

P.N. Subramanian ने कहा…

बड़े प्रभावी ढंग से आपने तथाकथित कम्प्लीट मैन को चित्रित किया है. आभार.

Asha Lata Saxena ने कहा…

कम्प्लीट मैन कविता बहुत सुन्दर बन पडी है |बधाई |
आशा

रचना दीक्षित ने कहा…

कम्प्लीट मैन का भांडाफोड़ धारदार व्यंग से. अत्यंत गहन और प्रभावपूर्ण. बधाईयां.

Suresh Kumar ने कहा…

Mam...aapki is rachana ne dil ko choo liya..bahut hi saMdeshatmak rachanaa..aabhar..
mere blog par aapakaa swaagata hai...

Dr Varsha Singh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति... सुन्दर विचार...सुन्दर कविता.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

अनामिका जी, इसे कहते हैं 'कम्प्लीट' सोच....वाह..बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

धारदार व्यंग्य
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..... बहुत सुन्दर

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

इसे कहते हैं क़लम को तलवार बनाना …

आदरणीया अनामिका जी
सादर अभिवादन !

आपकी कविता का कम्प्लीट मैन बहुत आहत करने वाला है … ऐसे दोहरे चरित्र के पुरुष समाज में न हों तो अच्छा ! … लेकिन यत्र तत्र मिल ही जाते हैं ऐसे पात्र … … …

लेखनी चलती रहे बस , अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार