मंगलवार, 23 अगस्त 2011

इन उदास चिलमनों में..





इन उदास चिलमनों में

तूफ़ान गुजरने के बाद के
उजड़े शहर की बर्बाद इमारतें हैं.


इन उदास चिलमनों में 
बाढ़ के बाद बचे चिथड़ों के नज़ारों से 
उठती दर्दनाक  सीलन है.




  वो नज़ारे जो कभी हीर- रांझा के                
                                                                वो किस्से जो शीरी-फ़रहाद के थे,
                                                                वो सब दफ़न हैं इन उदास आँखों में.




कभी चमक उठती हैं ये आँखे 
 उन खाबों की दुनियां में डूबकर 
  तो कभी बरसता है सावन भादो
इन गहरी पलकों की कुंजों से.

गुमां होता है  कभी  यूँ  कि 
देता है सदायें वो फ़कीर कहीं दूर से  
कभी सहमीं सी देखती हैं ये पनीली आँखे
डोली में सिमटी दुल्हन के घूंघट से.



रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं 
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह 
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से .

35 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

सुन्दर...बधाई

विभूति" ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से .बहुत ही खुबसूरत पंक्तिया....

सागर ने कहा…

khubsurat rachna aur sundar prstuti....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से .

गहन उदासी को समेटे ..अच्छी प्रस्तुति

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

वो नज़ारे जो कभी हीर- रांझा के
वो किस्से जो शीरी-फ़रहाद के थे,
वो सब दफ़न हैं इन उदास आँखों में.

भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरी उदासी लिए ...शब्द चित्रण कर दिया है इस रचना में ...

vandana gupta ने कहा…

उदासी और उदास आंखो के जज़्बात बखूबी उकेर दिये हैं…………बहुत सुन्दर अन्दाज़्।

संजय भास्‍कर ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
गहन उदासी.....अच्छी प्रस्तुति

Unknown ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से

उदासी में भे कुछ बात है , बधाई

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

वाह बहुत खूब

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गुमां होता है कभी यूँ कि
देता है सदायें वो फ़कीर कहीं दूर से
कभी सहमीं सी देखती हैं ये पनीली आँखे
डोली में सिमटी दुल्हन के घूंघट से.
... बहुत ही गहरे एहसास

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आँखों से अयान होती उदासी और उसकी सीलन महसूस होती है इस नज़्म में!! बेपनाह दर्द का सैलाब मानो सबकुछ बहाकर ले जाने को तैयार है!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आजकल तो चिल्मन की ओट में नहीं,
सरे आम इमारतें और इबारते बर्बाद दिखाई दे रहीं हैं।

मनोज कुमार ने कहा…

कभी-कभी उदासी भी अच्छी लगती है अग़र नज़्म अच्छे शब्दों में पिरोई गई हों।
यहां आकर एक अच्छी उदासी मिली ....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं.....

Sadhana Vaid ने कहा…

उदासी की चादर लपेटे छलछलाई आँखों की वेदना को बड़ी खूबसूरती के साथ अभिव्यक्त किया है ! ऐसा महसूस हुआ जैसे हर शब्द हृदय की गहराई से निकल कर पन्नों पर उतर आया है ! बहुत सुन्दर !

वाणी गीत ने कहा…

गुमां होता है कभी यूँ कि
देता है सदायें वो फ़कीर कहीं दूर से
कभी सहमीं सी देखती हैं ये पनीली आँखे
डोली में सिमटी दुल्हन के घूंघट से...
कैसे रच लेती हो ये ताने बाने, जो दूसरों को भी उदास कर जाते हैं !
अब इससे बाहर भी आओ !

virendra sharma ने कहा…

एक चिलमन ,हज़ार चितवन ,हज़ार हज़ार भाव भर दियें हैं ,भाव अनुभाव सभी तो ,इन उदास पलकों से रिश्ते शून्य से ...... ,इस दौर में आपका संग साथ ही अन्ना जी की ताकत है .ऊर्जा और आंच दीजिए इस मूक क्रान्ति को .बेहतरीन जानकारी दी है आपने बहुत अच्छी पोस्ट . जय ,जय अन्ना जी ,जय भारत .
सद-उद्देश्यों के लिए, लड़ा रहे वे जान |
कद - काठी से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
बापू जैसी सादगी, दृढ़ता सत्य समेत ||

ram ram bhai

सोमवार, २२ अगस्त २०११
अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
http://veerubhai1947.blogspot.com/
.
.आभार .....इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार ./ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com

vidhya ने कहा…

bahut hi sundar keya baat hai

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ना होते जो ये .... हीर- रांझा
तो कहाँ आज होते ..उनके
किस्से कहानियां .......

(डोली में सिमटी दुल्हन के घूंघट से....)
ये सब अगर पहले वक़्त में ना होता तो हम आज ऐसे पलो को कैसे जीते
खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकार करे ........आभार

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से

waaaaaaaah!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

खुबसूरत चित्रावली के साथ सुन्दर रचना...
सादर बधाइयां...

ज्योति सिंह ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से .
bahut hi gahrai hai ,behad pasand aai rachna .

Maheshwari kaneri ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन..खूबसूरत पंक्तियां .सुन्दर भाव...

रचना दीक्षित ने कहा…

रफ्ता रफ्ता फांसले बढ़ते हैं
ज्यों रेगिस्तान के वीराने की तरह
और भर जाता है मन
इस चिलमन की उदास नमीं से .

बहुत ही खूबसूरत रचना. भावनात्मक निरूपण. बधाई.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन के गहरे भाव समेटे हुये पंक्तियाँ।

संध्या शर्मा ने कहा…

कभी चमक उठती हैं ये आँखे
उन खाबों की दुनियां में डूबकर
तो कभी बरसता है
सावन भादोइन गहरी पलकों की कुंजों से.
गहन उदासी समेटे बहुत खुबसूरत पंक्तिया....

monali ने कहा…

Sundar kavita aur tasveerein bhi ek se ek laajawab :)

बेनामी ने कहा…

कहते हैं की आँखे दिल का आईना होती हैं......इस तर्ज़ पर शानदार पोस्ट|

Ankit pandey ने कहा…

बहुत खूब..सुन्दर रचना, प्रभावशाली पंक्तियाँ।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही सुंदर लगा । धन्यवाद ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bahut sundar..antim panktiyan kamaal ki lagi...

रजनीश तिवारी ने कहा…

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ चित्रों के साथ ।

Kailash Sharma ने कहा…

गुमां होता है कभी यूँ कि
देता है सदायें वो फ़कीर कहीं दूर से
कभी सहमीं सी देखती हैं ये पनीली आँखे
डोली में सिमटी दुल्हन के घूंघट से.

...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति...

निर्झर'नीर ने कहा…

exceelent creation