तुम्हारे घर की
चौखटें तोबहुत संकीर्ण थी...
चुगली भी करती थी
एक दूसरे की...
फिर तुम कैसे
अपने मन की
कर लेते थे...?
शायद तुम्हारी चाहते
घर की चौखटों
से ज्यादा बुलंद थी तब.
आज ....
लेकिन आज
हालात जुदा हैं..
चौखटें तो वहीँ हैं
मगर चाहतों की चौखटों में
दीमक लग गयी है...इसीलिए
मजबूरियों ने भी
पाँव पसार लिए हैं.
कितना परिवर्तन-पसंद
है ना इंसान ....
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!
31 टिप्पणियां:
बेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने..... सार्थक अभिवयक्ति......
जब चाहतों की चौखट में ही दीमक लग गयी हो तो चौखट बदलनी ज़रुरी है ...नहीं तो पूरे मकाँ में दीमक घर कर जायेगी ....भावप्रवण रचना
मन की चौखटों को तो बदल ही सकता है न अपनी इच्छानुसार,
बहतरीन भाव रचना अच्छी लगी,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
तभी ना सर टकराने लगा है उन चौखटों में.....
सुंदर भाव अनामिका जी.
अनु
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!
....बहुत खूब! सुन्दर भावमयी रचना....
बहुत खूब ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सब खबरों के बीच एक खुशखबरी – ब्लॉग बुलेटिन
पसन्द नापसन्द मन की ही चौखटों के कारण ही होते हैं।
मन को जहाँ मौका मिला ,चौखटों के घेरे से बाहर निकल जायेगा - कभी-कभी तो पता भी नहीं चलता कि है कहाँ !
आज लोग अपने-अपने चौखटों में फिट हैं।
इसलिए आदमी आदमी न रहा, बस सब गिरगिट हैं।
सच कहा है मन की चौखट का आकार मनुष्य अपनी इच्छानुरूप बदल सकता है बहुत अच्छी रचना
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!
सच है , मन की उड़ान को कोई भी दिशा दी जा सकती है !
उम्दा !!
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!
Likha to behad sundar hai,lekin kash ye mere jaise bhee kar pate!
कितना परिवर्तन-पसंद
है ना इंसान ....
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!
बिल्कुल सही कहा आप ने !
बस दीमक के घर में घुसने की देर है चौखट बदलने का बहाना मिल जाता है मनुष्य को
बढ़िया प्रस्तुति
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!
कितनी गहरी बात कह दी।
सुंदर उपमा अनामिका जी..
आभार!!
बहुत ही सुन्दर मन की चौखटें तो बदल ही जाती हैं....वाह।
आज तो मन की चौखट बड़ा करने के बजाये सब छोटी कर रहे हैं ... संवेदनशील अभिव्यक्ति ..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
वाह ! बहुत अच्छी रचना...
बहुत सुंदर प्रस्तुति..आभार!
लेकिन आज
हालात जुदा हैं..
चौखटें तो वहीँ हैं
मगर चाहतों की चौखटों में
दीमक लग गयी है...इसीलिए
मजबूरियों ने भी
पाँव पसार लिए हैं.
समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है....
और जो सबसे पहले बदले वो इंसान कहलाता है....!
आपकी प्रस्तुत कविता दिल के अंतस को प्रभावित कर गयी । भावों के साथ सहज एवं सटीक शब्दों का समायोजन इसे रस-सिक्त कर दिया । कविता बहुत अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना का 100 वां वर्ष" पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ।
धन्यवाद ।
बहुत सुंदर बिम्ब प्रयोग... बढ़िया रचना...
सादर।
कितना परिवर्तन-पसंद
है ना इंसान ....
घर की चौखटें बदलें न बदलें ...
मन की चौखटों को तो
बदल ही सकता है न
अपनी इच्छानुसार !!... insaan !
वाह बहुत बढिया
मेरे विचार से....
...मजबूरियों ने भी
पांव पसार लिए हैं।
..के बाद रूक जाना था कविता को। अर्थ लगाने के लिए पाठक स्वतंत्र हो जाते।
..बढ़िया कविता है।
बड़ी गहरी बात कह दी आज आपने अपनी रचना में ! मन की चौखटों का आकार प्रकार, रंग रूप इंसान अपनी सुविधा और ज़रूरत के अनुसार बदल लेता इसीलिये हर चौखट में खुद को फिट कर लेता है ! दिक्कत वहाँ आती है जहाँ वास्तविक जीवन की चौखटों में बदलाव भी संभव नहीं हो पाता और वह स्वयं को वहाँ फिट भी नहीं कर पाता ! बहुत ही सशक्त एवं सार्थक प्रस्तुति !
चौखटें तो वहीँ हैं
मगर चाहतों की चौखटों में
दीमक लग गयी है
चाहत की चौखटे बदल गए अच्छा हुआ. दीमक लगे चौखट का बदल जाना ठीक ही तो है
पता नही क्यों लगता है कि लिखने से भी और बढकर लिख दिया है आपने |
बहुत कुछ लिख दिया आपने....!!
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