नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !
चाह है ये धन, धन-हीनों को मिल जाए
बाँट का नीतिपूर्ण पर मिले न उपाय
सरकारी हाथ में बन्दर-बाँट हो जाये
कानून के प्रहरी भी गटक ही जायें !
बैंक बेकस तक पहुँच न पाए
खाता क्या है दीन जान न पाए
कैसे गरीब ग़नी हो पाए
ठग नगरी में कौन राह सुझाये !
सांई अब तो तुम ही पधारो
अपने अर्घ को आप ही बांटो
तुमसे भला न कोई बांटन वाला
जो समता से करे बंटवारा !
सदा रहे बाबा दीन के भ्राता
अकूत धन के हो तुम ही दाता
बेघि हरो हर विघ्न निर्बल का
गरीबी का करो निर्मूल नाशा !
30 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर बात कही अनामिका जी...
तुमसे भला न कोई बांटन वाला
जो समता से करे बंटवारा !
काश प्रभु खुद आकर समस्याओं का निदान करते..
सादर
अनु
नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !
वाह ... बहुत ही सच्ची बात कही है आपने इन पंक्तियों में
bahut sunder prarthna......
दिल से की गई प्रार्थना
ओम साईं, श्री साईं जय जय साईं
बहुत सुंदर रचना
नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !
Badee nirbheekta se pate kee baat kahee hai!
सांई अब तो तुम ही पधारो
अपने अर्घ को आप ही बांटो
तुमसे भला न कोई बांटन वाला
जो समता से करे बंटवारा !
प्रार्थना कुबूल हो !
सांई ने तो किया सही बंटवारा
जिसके हिस्से जो आना था वही आया
पर तुष्ट हो न सका इंसान स्वार्थ में
इसीलिए भ्रमित होता रहता है प्रलाप में ।
अच्छी प्रस्तुति
समान वितरण हो यह चिंता ज़रूरी है। इस चिंता को चिंतन तक ले जाती रचना कम-से-कम विवश तो करती ही है कुछ सोचने पर।
18 अक्टूबर को शिर्डी साई बाबा के अर्घ की नीलामी होनी थी---ऐसी न्यूज़ थी लेकिन भक्तों ने याचिका दायर कर कोर्ट से रोक लगवा दी थी ...उसी भाव भूमि पर पर है यह कविता ... ऐसा लगता है।
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~सादर !!!
सच कहा मनोज जी आपने, मेरी रचना की भाव-भूमि अक्षरश:बिलकुल यही है। आभारी हूँ इसकी गहराई तक जाने के लिए।
सांई अब तो तुम ही पधारो
अपने अर्घ को आप ही बांटो
तुमसे भला न कोई बांटन वाला
जो समता से करे बंटवारा !... साईं ही सबकुछ हैं
बहुत सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति..अब तो भगवान खुद आकर ही कुछ कर सकते हैं...
:)
सबको दे दो शान्ति सकल..
सदा रहे बाबा दीन के भ्राता
अकूत धन के हो तुम ही दाता
बेघि हरो हर विघ्न निर्बल का
गरीबी का करो निर्मूल नाशा !
जन प्रेम से आप्लावित रचना .
सांई अब तो तुम ही पधारो
अपने अर्घ को आप ही बांटो
तुमसे भला न कोई बांटन वाला
जो समता से करे बंटवारा ! अब तो साईं का ही सहारा है
भावपूर्ण स्तुति ..बाबा को नमन
सदा रहे बाबा दीन के भ्राता
अकूत धन के हो तुम ही दाता
बेघि हरो हर विघ्न निर्बल का
गरीबी का करो निर्मूल नाशा!
ओह माय गोड...
सब को सन्मति दे भगवान ,
तू ने दिया विवेक ,
मनुज कर पाये
अपना ही कल्याण :
पर मति पलट गई
अनीति पर तुला हुआ
बन कर नादान !
नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !
एकदम सटीक प्रस्तुति मेरे दिल की बात कह दी | रचना बहुत अच्छी लगी |
बहुत सुन्दर एवँ न्यायसंगत सोच है अनामिका जी ! लेकिन बाबा भी तो कहीं अनन्त में विलुप्त हो गये हैं ऐसा लगता है वरना क्या उन्हें इस बन्दर बाँट की खबर नहीं लगती ? अगर जान पाते तो क्या विवश, निर्धन, लाचार और दीन के साथ ऐसा ज़ुल्म वे होने देते ? मन को द्रवित करती एक सशक्त प्रस्तुति !
सच्चाई यही है ...
मंगलकामनाएं आपको!
बहुत शानदार प्रस्तुति ।
साईं का आशीर्वाद सभी को मिले
विजय दशमी की शुभ कामनाएं ...
सांई अब तो तुम ही पधारो
अपने अर्घ को आप ही बांटो
बहुत सुन्दर प्रार्थना
जहाँ भौतिकता की चमक ने मन-मस्तिष्क पर आधिपत्य जमा रखा हो, वहाँ संतोष संपदा की किसे पहचान होगी.. निर्धनों के पास वही धन है.. परमात्मा आपकी प्रार्थना सुने!!
सुंदर |
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