सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

अपेक्षाएं





गहन प्रेम ही तो किया था प्रिय
क्या इसमें भी तुम्हारी 
शंकाएं सिर उठाती हैं ?
यह  केवल आसक्ति नहीं थी प्रिय !

इसमें दोषी शायद मेरे 
कृत्य ही हैं कहीं न कहीं.
अपेक्षाओं से भरी 
बदली लिए 
उमड़-घुमड़, बस  
बरस गयी तुम पर 
बिना जाने कि ये 
गहन प्रेम तुम्हें  भी 
मुझसे है या नहीं ...
 एक पल को भी 
तुम्हारी इच्छा का  
प्रस्फुटन तक 
होने नहीं दिया मैंने.
आज सोचती हूँ...
कितनी निर्ममता से 
मांग की थी 
मैंने अपने नेह के 
प्रतिदान की ...
उचित ही तो है  फिर 
तुम्हारा मेरे प्यार  पर 
शंका करना औ दुत्कारना .
सच है  फिर....
तुम्हारा मेरे प्रति 
उदासीन होना और 
मेरे प्यार को 
तथाकथित प्रेम 
कह देना..... !!


31 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इकतरफा प्रेम ,इकतरफा ख्याल कुसूरवार ही होता है

इमरान अंसारी ने कहा…

सच है अपेक्षाएं ही अंततः दुःख का कारण बन जाती हैं ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन-वे ट्रैफिक के नफे और नुकसान दोनों ही हैं!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

इकतरफा प्रेम कभी प्रेम नही कहलाता,

RECENT POST LINK...: खता,,,

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

एकतरफा प्रेम दुःख का सबब बनता ही है :-(

अनु

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

prem to bas prem hota hai agar apeksha nahi ho to dukh ka karan nahi banta

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

एक तरफा प्रेम बहुत तकलीफ देता है...
एक सच है रचना में...
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
:-)

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

फिर....
तुम्हारा मेरे प्रति
उदासीन होना और
मेरे प्यार को
तथाकथित प्रेम
कह देना..... !!
जी अनामिका जी ऐसा भी होता है ..जिन्दगी में बहुत सोच समझ परख की जरुरत होती है नहीं तो .... जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच कहा .... ऐसे हालात मन को दुःख ही देते हैं......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रश्न तो गहरे उतर कर खड़े होते हैं..

संगीता पुरी ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति ..

vandana gupta ने कहा…

इकतरफ़ा प्रेम को बखूबी बयान कि्या है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति ........

Pallavi saxena ने कहा…

आपेक्षाएं ही न सिर्फ प्रेम बल्कि हर रिश्ते के टूटने कि अहम वजह होती है

Sadhana Vaid ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Sadhana Vaid ने कहा…

प्रेम की इस डगर पर प्राय: इंसान को अकेले ही चलना पड़ता है और हर पल शुष्क होकर टूट-टूट कर बिखरती संवेदनाओं को अपनी ही आँखों से देखना होता है ! बहुत ही भावपूर्ण एवँ मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ! अति सुन्दर !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अपेक्षा और उपेक्षा के दोराहे का विभ्रम व्याख्यायित करती एक भावपूर्ण रचना!!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

मन की ऊहापोह को व्यक्त करती सुन्दर रचना !

वाणी गीत ने कहा…

प्रेम ख़ुशी ही देता है , एकतरफा हुआ तो भी ....
खुश रहो की तुमने तो प्रेम ही किया ना , नफरत से हर हाल में बेहतर ही किया ...
बहरहाल एकतरफा प्रेम की त्रासदी को खूब बयां किया !

नादिर खान ने कहा…

अपेक्षाओं से भरी
बदली लिए
उमड़-घुमड़, बस
बरस गयी तुम पर
बिना जाने कि ये
गहन प्रेम तुम्हें भी
मुझसे है या नहीं ...

बहुत खूब ...

virendra sharma ने कहा…

प्रेम करने को क्या आप आप्रेशन करना समझतीं हैं प्रेम गहन कैसे हो सकता है .प्रेम तो अटूट होता है ,गहन तो निगरानी कक्ष होता है -इंटेंसिव केयर यूनिट है क्या प्रेम ?सघन और गहन तो चिकित्सा होती है प्रेम नहीं हो सकता .प्रेम प्रति दान नहीं मांगता ,बस किया जाता है ,हो जाता है ,पूर्ण समर्पण है प्रेम अद्वैत का द्वैत है .
अपना ही प्रक्षेपण है ,प्रोजेक्शन है प्रतिच्छाया है .पनमब्रा (PENUMBRA),उपच्छाया है प्रेम .ग्रहण लगने पर भी चन्द्रमा का कुछ अंश प्रकाशमान रहता है .हाँ आंशिक चन्द्र ग्रहण हो सकता है प्रेम .

virendra sharma ने कहा…

संबंधों का अपनापन किसी सामाजिक स्वीकृति और शाब्दिक अभिव्यक्ति का मोहताज़ नहीं है .स्पर्श की अपनी एक भाषा होती है .बशर्ते के दूसरा भी उसे ग्रहण करने की मनस्थिति में हो .सम्बन्ध अपने संबोधन से

कहीं बड़े होते हैं .कितने सहज शब्दों में कह दिया गया था -प्रेम न बाड़ी ऊपजे ,प्रेम न हाट बिकाय ..

सूफी संत गहरे प्रेम की बात तो करते हैं प्रेम के अर्थ में गहरी आसक्ति हो सकती है .कवियित्री को तत्सम शब्दों के स्तेमाल की आदत सी लगती है .प्यार की ऊर्जा तत्सम शब्द प्रयोग से बिखर जाती है .प्यार तो

एक एहसास है .इस एहसास को उभारने के लिए संस्कृत शब्द घुसाने की कहाँ आवश्यकता है .प्रेम जैसे एहसास को गहन शब्द से जोड़ना उपयुक्त नहीं लगता .

मैं ने प्यार ही तो किया था -कह देना भी उतना ही वजन दार लगता .अब अगर कोई कहे मैं आपसे अतीव प्रेम करता हूँ ,गहन प्रेम करता हूँ तो अटपटा सा लगेगा .गहन प्रेम करना अतीव प्रेम करना प्यार के

ज़ज्बात को हल्का कर देता है .

virendra sharma ने कहा…

संबंधों का अपनापन किसी सामाजिक स्वीकृति और शाब्दिक अभिव्यक्ति का मोहताज़ नहीं है .स्पर्श की अपनी एक भाषा होती है .बशर्ते के दूसरा भी उसे ग्रहण करने की मनस्थिति में हो .सम्बन्ध अपने संबोधन से

कहीं बड़े होते हैं .कितने सहज शब्दों में कह दिया गया था -प्रेम न बाड़ी ऊपजे ,प्रेम न हाट बिकाय ..

सूफी संत गहरे प्रेम की बात तो करते हैं प्रेम के अर्थ में गहरी आसक्ति हो सकती है .कवियित्री को तत्सम शब्दों के स्तेमाल की आदत सी लगती है .प्यार की ऊर्जा तत्सम शब्द प्रयोग से बिखर जाती है .प्यार तो

एक एहसास है .इस एहसास को उभारने के लिए संस्कृत शब्द घुसाने की कहाँ आवश्यकता है .प्रेम जैसे एहसास को गहन शब्द से जोड़ना उपयुक्त नहीं लगता .

मैं ने प्यार ही तो किया था -कह देना भी उतना ही वजन दार लगता .अब अगर कोई कहे मैं आपसे अतीव प्रेम करता हूँ ,गहन प्रेम करता हूँ तो अटपटा सा लगेगा .गहन प्रेम करना अतीव प्रेम करना प्यार के

ज़ज्बात को हल्का कर देता है .

Anita ने कहा…

प्रेम तो बस होता है...या नहीं होता है...

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी अभिव्‍यक्ति..

Amrita Tanmay ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

सुन्दर कविता |

रचना दीक्षित ने कहा…

प्रेम में देना ही देना है अगर अपेक्षाएं ना रहे तो कोई समस्या ही नहीं है.

सुंदर कविता, अच्छी प्रस्तुति.

Satish Saxena ने कहा…

वेदना की बढ़िया अभिव्यक्ति...

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत खूब।

Asha Joglekar ने कहा…

प्रेम तो बस प्रेम होता है
ुसमें लेन-देन कहां होता है ।