मंगलवार, 6 नवंबर 2012

कब तक रूठे रहोगे





अपनी तमाम उम्र से 
दो सावन निचोड़ दिए
थे तुमने,  और 
बंजर पड़ी धरती से 
कंटीले झाड हटा मैं भी  
खुशियों के अंकुर बो 
रंग-बिरंगे फूलों की 
लह-लहाती फसल पा 
झूम रही थी।

कितने खुशगवार दिन थे 
दर्द की सारी परतें 
बे-बुनियाद हो 
अपना ठिकाना 
भटक गयी थीं !

आज भी नजरें 
तलाश रही हैं 
प्रेम से लबालब 
उस कश्ती को
जो  डूब गयी थी 
शक की नदी में।
 
कई निशब्द से 
पैगाम भेजे और 
उम्मीदें बाँधी कि 
हर बार की तरह  
अनकहे मजमून 
पढ़ लोगे तुम  !

फलक पे इस बार 
धुंध गहरा गयी है 
मेरे एहसास 
शायद नहीं पहुँचते अब  !

अवयवों से सांसों तक 
उतरती मौत 
न जाने कब आ जाये--- 

बताओ कब तक
फासले तक्सीम कर  
रूठे रहोगे मुझसे 
जफा के स्वांग 
हमारे बीच 
कब तक चलेंगे ???

न बिसरेंगे वो सावन 
जानते हो तुम भी ,
जबरन लगे  तो 
देखो सामने 
कुछ लकडिया जल रही हैं 
हाँ मैंने ही जलाई हैं 
रख आओ उस पर 
नकारी हुई मेरी मुहोब्बत को 
मैं भी समझा लूँ 
अड़ियल मन को 
कि  श्राद्ध कर ले 
अपनी मुहोब्बत का !!



26 टिप्‍पणियां:

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर भावों को बस भाव ने ग्रहण किया और अति सुन्दर रचना..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सुन्दर....बहुत सुन्दर भाव पिरोये हुए रचना..

अनु

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कई निशब्द से
पैगाम भेजे और
उम्मीदें बाँधी कि
हर बार की तरह
अनकहे मजमून
पढ़ लोगे तुम !
................. बहुत अच्छी लगी

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर भाव लिये बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,,,,

RECENT POST:..........सागर

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना...रचना के भाव अंतस को छू गये...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भावों की गहन प्रस्तुति..

सदा ने कहा…

मैं भी समझा लूँ
अड़ियल मन को
कि श्राद्ध कर ले
अपनी मुहोब्बत का !!
वाह अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने

Sadhana Vaid ने कहा…

भीगी-भीगी संवेदना से परिपूर्ण एक अनुपम रचना जो मन को गहराई तक झकझोर गयी ! अति सुन्दर !

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

संवेदनशील भाव लिए अति उत्तम कोमल रचना...
गहरे भाव से ओत- प्रोत...
बहुत खूब...

मनोज कुमार ने कहा…

एक बेहद संतुलित कविता। कई प्रयोग मन को बरबस आकर्षित करते हैं। मन की संवेदना बिम्बों के द्वारा मुखरित होकर प्रकट हो रही हैं।
बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

संवेदनशील रचना.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भावपूर्ण प्रस्तुति!
आपने लिंक दिया आभार आपका!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

भाव ग्रहण कर कुछ कहते नहीं बनता -चुप अनुभव!

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना
क्या कहने

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी भावप्रवण रचना पढ़ कर निदा फ़ाज़ली की ग़ज़ल के शेर याद आ गए ...

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

dinesh gautam ने कहा…

आपकी कोमल भावनाएँ बहुत खूबसूरती से व्यक्त हुई हैं। बधाई

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह क्या कहने उम्दा भाव बड़ी सुन्दर रचना

इमरान अंसारी ने कहा…

शानदार, लाजवाब।

प्रेम सरोवर ने कहा…

आज भी नजरें
तलाश रही हैं
प्रेम से लबालब
उस कश्ती को
जो डूब गयी थी
शक की नदी में।

आपकी कविता में मन में अंकुरित भावों की अभिव्यक्ति मुखर हो उठी है। धन्यवाद।

Ramakant Singh ने कहा…

न बिसरेंगे वो सावन
जानते हो तुम भी ,
जबरन लगे तो
देखो सामने
कुछ लकडिया जल रही हैं
हाँ मैंने ही जलाई हैं
रख आओ उस पर
नकारी हुई मेरी मुहोब्बत को
मैं भी समझा लूँ
अड़ियल मन को
कि श्राद्ध कर ले
अपनी मुहोब्बत का !!

सुन्दर भावों का बसेरा

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

फलक पे इस बार
धुंध गहरा गयी है
मेरे एहसास
शायद नहीं पहुँचते अब !


बहुत सुन्दर....

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut khoob....atal nishchay ...par kitna mushkil hai....

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

khubsurat bhaw se paripurn abhivyakti:)

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

फलक पे इस बार
धुंध गहरा गयी है
मेरे एहसास
शायद नहीं पहुँचते अब
- मौसम का भी कम दोष नहीं.
अभिव्यक्ति बहुत समर्थ है !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

देखो सामने
कुछ लकडिया जल रही हैं
हाँ मैंने ही जलाई हैं
रख आओ उस पर
नकारी हुई मेरी मुहोब्बत को ...
प्यारी सी पंक्तियाँ
खुबसूरत भाव भर दिए
आभार