शनिवार, 24 जनवरी 2015

ए दोस्त ........





मेरे वक्तव्य को 
अन्यथा न लेना दोस्त 
मेरी फितरत है 
जिसके लिए जैसा भाव है 
उसे उसका सौंप दूँ  
बिना लाग -लपेट के
कह देना मेरी आदत है। 


नहीं, दोषारोपित नहीं कर रही 
यह कह कर तुम्हे कि 
अधूरापन है दोस्त 
तुम्हारी मित्रता में।  

समय की, समाज की 
असह्य बेड़ियां हैं 
हमारे लिए दोस्त 
इसलिए विचलित मन 
बार बार तुमसे ही 
उलझ जाता है  !

बहुत कुछ बांटना चाहती हूँ 
तुम्हारे साथ ,
परन्तु हमारी  व्यस्तताये  
इस मैत्री को 
अल्पायु किये देने पर 
आमादा हैं !

अस्त -व्यस्त होते हुए 
मेरे यही मनोभाव 
व्याकुल किये रखते हैं मुझे  
और मैं स्वयं को 
हर संभव प्रयास करते हुए भी 
असमर्थ महसूस करती हूँ !!




8 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मन के गहरे भाव.....

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वाह,अनामिका!

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

Kailash Sharma ने कहा…

यह ही आज के समय की विडम्बना है, सब कुछ है पर समय नहीं...

Shanti Garg ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति..

Unknown ने कहा…

इस तरह की रचना की तारीफ चंद अल्फ़ाज़ों में बयां नहीं की जा सकती ।