Saturday 10 June 2023

शब्दों का सफर

















मै नहीं लिखती अब 
क्यूंकि, लिखने के लिए 
शब्दों को जीना पड़ता ह है । 

शब्दों को जीने के लिए
मनोभावों में कहीं गहरे तक 
उतरना पड़ता है। 

गहरे उतरने की क्रिया में 
तन्हाई से अटूट बंधन बनाते हुए 
जख्मों को उघाड़ उघाड़ कर 
कुरेदना पड़ता है । 

चीत्कार करते हुए 
एहसासो की वेदनाओं को 
शब्दों के वस्त्रों से सजा 
दर्द के मंच पर 
उतारना पड़ता है ........
तब कहीं जाकर जज़्बात 
कविता का रूप लेते हैं 
और इन शब्दों से 
कविता बनने तक का सफर 
बहुत रुलाता है मुझे 
इसलिए मैं अब नहीं लिखती  । 

क्यूंकि नहीं है पसंद मुझे 
जिंदगी को रुदन की पहरन में देखना 

क्यूंकि चाहे झूठी हंसी हंस कर ही 
पा लेती हूँ मैं विजय 
कुछ हद तक 
अपने अंदर के फैले नैराश्य से ,

भटका लेती हूँ 
अपनी व्याकुलता को 
अपनी मस्त चाल से 

पी जाती हूँ कड़वाहट 
अपने भीतर की ..........
गीतों की गुनगुनाहट से । 

संवार लेती हूँ 
विषाद  में डूबे मन को 
औरों को गले लगा कर ,,,,,
मुस्कुरा लेती हूँ 
खुद भी 
दूसरों को हंसा कर । 

इसलिए नहीं लिखती अब
क्यूंकि लिखने के लिए 
शब्दों को जीना पड़ता है  ।। 


2 comments:

Arun sathi said...


गहरे उतरने की क्रिया में
तन्हाई से अटूट बंधन बनाते हुए
जख्मों को उघाड़ उघाड़ कर
कुरेदना पड़ता है ।


दर्द....

Onkar said...

वाह.बहुत ही सुंदर