अनामिका की सदायें ...
जो भी लिखती हूँ, इस दिल को सुकून देने के लिए लिखती हूँ .....
शनिवार, 26 जुलाई 2025
घर अब घर नहीं लगता
मंगलवार, 10 जून 2025
“माँ " आस पास महसूस होती हो
माँ मुझमें चहल - कदमी सी करती
मंद मंद मुस्काती तुम
उलझनों में फँसी मुझे
दिलासा देती हुई सी
परेशानियों की झाड़ियों से
हाथ पकड़ खींचती हुई सी
माँ आजकल अक्सर
मुझमें ही चहल कदमी करती सी
महसूस होती हो !!
गुमसुम बैठी माँ तुम्हें ही
बुन रही होती हूँ
और लगता है
कि पलभर को तुम्हारा साया
मेरे पास आया और निकल गया
माँ मेरे आस पास चहल कदमी सी
करती महसूस होती हो !!
‘माँ ’ आजकल आप
अपनी माँ जैसी लगती हो
नानी जैसी बातें करती हो ,
नानी जैसी हँसती हो ,
होठों के कोरों तक फैली
मुस्कान वाली तस्वीर देखती हूँ
और अपना ही अक्स पाती हूँ
अक्सर तुम
मुझमें ही चहल कदमी करती
महसूस होती हो !!
मंगलवार, 20 मई 2025
स्त्री और स्वाभिमान
जिसे मकान से घर बनाते हुए
उसने हज़ारों बार सुना ….
“निकल जाओ मेरे घर से “
अपने बच्चों के किए
घर में शांति बनाये रखने के लिए
गिर जाती है कितनी ही बार
अपनी ही नज़रों में,
हाँ …. उन्हीं बच्चों के लिए
जिन्हें अपना सर्वस्व देकर भी
माँ के नाम से नहीं
पिता के नाम से ही जाना जाता है !
जिसने अपनी ज़िद्दी इच्छाओं की
कामुक भावनाओं के नाखूनों से
उसके लाल मिट्टी वाली
दिल की धरा को छीला है !
दर्द समेटे,
झंझावातों से सुन्न हो चुकी
धमनियों से
थक जाती है सोचते सोचते …
कि कैसे भेड़िया बन जाता है पुरुष
अपने लिसलिसे, बुलबुलाते
कीड़ों को शांत करने के लिए …
मानो आसमान कदमों में रख देगा !
साथी की मर्जी
अपनी जिद्द की धुन में
मसल देता है रूह को भी !
बार बार बालात्कार होता है
अधेड़ उम्र के पड़ाव पर भी बार बार
फिर भी तमाम उम्र
उस रिश्ते को ढोती
इस रिसते मवाद का इलाज़ भी
नहीं कर सकती !
साथी शब्द को ही गाली देना है
उसीके बदलाव की उम्मीद में
ख़ुद का अस्तित्व भी चीख चीख कर
बग़ावत कर रहा होता है
सारे बंधन तोड़ देने को
किंतु नहीं पकड़ पाती
अपनी अलग राह
कि….
जवान बच्चों का भविष्य है
नए रिश्तों के आगमन का बंधन है
समाज -परिवार की शरम, बंधन
बेड़ियां बन जाते हैं उसके
कठोर फैसलों में
और …… और वो
सहती रहती है …
सहती रहती है …
और बस सहती ही जाती है
अपने स्वाभिमान को रौंदना,
अपनी ही नज़रों में गिर जाना
बिछा ही देना स्वयं को
सुन्न धमनियों के साथ
मृत हो चुके शरीर के साथ
उस कामुक, अंध लोलुप
इंसान के सम्मुख
जिसे संसार उसका
जीवन साथी कहता है !
शनिवार, 30 नवंबर 2024
संतान
चेहरे पर झुर्रियाँ
हिलते हुए दाँत
आँखों पर चश्मा
सर पर गिने-चुनें
सफेद बाल ,
ख़ुद की पहचान खोकर
जो तुम्हें पहचान दी है
आज तुम्ही उन्ही माँ-बाप से
उनकी पहचान पूछते हो। .
किचन की गर्मी, पसीना
हाथ पर गर्म तेल के
छींटे, कटने के निशान,
माथे पे बाम लगाये,
पैरों में दर्द सहती
हाथों में करछी, बेलन लिये
आज भी वही कर रही है
जो पिछले 25-30 सालों से
करती आ रही है
फिर भी पूछती है
बेटा कुछ चाहिये…. !!
तुम ही उसकी जमा पूंजी हो
और तुम उस से
उसकी जमा पूंजी पूछते हो !
ख़ुद को मिटा कर
जिसने तुमे बनाया
तुम उन से उनकी
औक़ात पूछते हो ???
दो पैसे कमा,
अपने कर्तव्यों से विमुख
माता पिता को उनके कर्तव्यों का
ज्ञान देते हो …..
उनके सुख दुख से अनजान
जरूरतों को दरकिनार कर
घर के चौकीदार बना
स्वयं के आनंद में डूबे
अपनी संगिनी की
भावनाओं से आद्रित
मान-मनुहार करते
अपने माता - पिता के मान को
खंडित करते हो
कैसी संतान हो ???
शनिवार, 10 जून 2023
शब्दों का सफर
मंगलवार, 20 सितंबर 2016
ओ रे पाकिस्तान
सोते शेरों को मारने वाले
पीठ में छुरा घोंपने वाले
अब तू भी चैन से न सो पायेगा
तेरे घर में ही घुस के तुझे मारा जायेगा !!
तेरे लिए तो हमारी सेना बहुत
तोपों की गर्जन तेरे बस की नहीं
कायरता तेरी इसी में दिखे
कि शहीदों को अपनाने का
तुझमे दम भी नहीं !!
सब्र दिखाया अब तक हमने बहुत
उसी जुबां में अब बात होगी
ना दोस्ती ना कोई फ़रियाद होगी
नेस्तनाबूत अब तेरा वज़ूद होगा
और तेरी रूह कब्र की मोहताज़ होगी.
एक चीनी के पीछे
जो दो-दो बेटे गँवाए
ऐसी दोस्ती का भिखारी है तू
आतंकी के मदारी का खिलौना बना
ऐसा गर्त में गिरता अनाड़ी है तू !!
तब बाकी दुनियां हमारी बाप होगी
यही सोच सदा सभ्य रहे हम
प्रगति पथ पर चले, शांत रहे हम
मगर ओ अक्ल के सौदागर
गुरुवार, 7 जनवरी 2016
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Sunita Khurana
सोमवार, 29 जून 2015
माँ
माँ के आँचल में
सिमटे रहते थे हम
माँ बदली नहीं,
माँ तुझसे दूर हूँ
शनिवार, 14 मार्च 2015
आखिर तो इंसान हूँ ....
दिल में चुभन हुई
तो मैं हंसने लगा
मानो हंस के
चुभन को भुलाने चला ..
चुभन जख्म करने लगी
तो मैं खामोशी से
लब सी गया
क्यूंकि आंसू दिखाने से
डरता रहा ..
रक्त रंजित किया ..
जख्मों ने छलनी किया
अश्क रुक न सके
आँख छलक ही गयी
आखिर तो हाड-मांस का
पुतला हूँ मैं.
भावों के स्पंदन से
जलता बुझता हूँ मैं !!
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015
एकाकीपन.......
एकाकीपन के
झंझावतों से
स्वयं को मुक्त करने,
अंतस की खलिश
को कम करने हेतु
बड़ी बहिन समान
भाभी, माँ सी छाया
देने वाली सासु माँ
मन को अलोलित करने वाले
मासूम बच्चो से ,
और उन बाकी रिश्तों …
जो इस तिश्नगी पर
फोहे बनने को काफी थे ……
उस सब से मिल तो ली थी
मगर उफ्फ ये
दिल की आग से
तपा आँखों का पानी,
कुछ अनचाही तल्खियाँ,
और जिद्दी मनहूसियत
मेरे वजूद को काबिज किये रहे
और ये रूह जो
सिर्फ और सिर्फ
तेरे आगोश की, तेरे साथ की,
तेरे जज्बातों की, स्पर्श की
तपिश पाने के लिए
तड़फती ही रही .....!!