जलने मे भी मज़ा है जलने दे मुझको यू ही
ख्वाब टूट गये हैं रुसवा हो गई है खुशिया
दुनिया को क्या देखु, अश्क नही देखते कुच्छ भी
धुंधला गयी है आँखे, दिल टूटा है कुच्छ यू ही..
तन्हा हू तो रहने दे तन्हा मुझको यू ही...!!
सावन जो रह-रह कर मेरी आँखो मे आता है.
भूलने देता ही नही मेरी किस्मत की ठोकरो को..
जिसका मांजी,पतवार किनारा और मंज़िल भी है...
फिर भी बे-सहारा हू,अकेली हू, तन्हा यू ही..!!
जलजले है गमो के, दामन भी कोई नही है..
सहारा होकेर भी वो मेरा सहारा नही है..
चिता जलती है खुशियो की..कोई राह भी नही है..
फिरती हू बोझ लिए कंधो पर गमो का यू ही..!!
रस्मे है जो कंधो पर निभानी है ज़रूरी..
काम है जो ज़िंदगी के वो निभाने भी ज़रूरी..
कांटो मे चाहे उलझी जाती है ये ज़िंदगी..फिर भी..
रो कर..या हस कर...'तन्हा' तुझे ज़िंदगी बितानी है यु ही..!!
22 टिप्पणियां:
बढ़िया है जी
रस्मे है जो कंधो पर निभानी है ज़रूरी..
काम है जो ज़िंदगी के वो निभाने भी ज़रूरी..
कांटो मे चाहे उलझी जाती है ये ज़िंदगी..फिर भी..
रो कर..या हस कर...'तन्हा' तुझे ज़िंदगी बितानी है यु ही..!!
Bahut He badiya rachna !!
क्या बात है, बहुत खूब , सच में दिल को छु गयी आपकी ये रचना ।
तन्हाई पर अच्छी रचना , बधाई
जलजले है गमो के, दामन भी कोई नही है..
सहारा होकेर भी वो मेरा सहारा नही है..
चिता जलती है खुशियो की..कोई राह भी नही है..
फिरती हू बोझ लिए कंधो पर गमो का यू ही..!!
दर्दीली रचना .... दर्द की इन्तहां है.... कुछ शब्द नहीं हैं कहने को बस मौन हूँ.....शुभकामनायें
बहुत ही सुंदर लिखा आपने , एक दम प्रभावित करने वाली रचना
अजय कुमार झा
behtreen rachana.......
सावन जो रह-रह कर मेरी आँखो मे आता है.
भूलने देता ही नही मेरी किस्मत की ठोकरो को..
जिसका मांजी,पतवार किनारा और मंज़िल भी है...
फिर भी बे-सहारा हू,अकेली हू, तन्हा यू ही..!!
अति-सुंदर..भावों से सजी एक खूबसूरत रचना..बधाई!!
Anamika ji....
aaj apka kaam me karti hu...are let me try....
ख्वाब टूट गये हैं रुसवा हो गई है खुशिया
दुनिया को क्या देखु, अश्क नही देखते कुच्छ भी
धुंधला गयी है आँखे, दिल टूटा है कुच्छ यू ही..
तन्हा हू तो रहने दे तन्हा मुझको यू ही...!!
are are ye kya khwabo ko itni jaldi mat todho..thodi himmat rakho dil fir jud jayega ji..
सावन जो रह-रह कर मेरी आँखो मे आता है.
भूलने देता ही नही मेरी किस्मत की ठोकरो को..
जिसका मांजी,पतवार किनारा और मंज़िल भी है...
फिर भी बे-सहारा हू,अकेली हू, तन्हा यू ही..!!
are roye aapke dushman....aur besahara akeli aap kaha..hum bloggars log kya mar gye ha...
Are nhi nhi...ye apka hi kaam ha..mujhper suit nhi kar raha...khair...bohot accha likha ha..touchy ha...aise hi likhti rahiye...
shubhkamnaye
बहुत अच्छी कविता।
रस्मे है जो कंधो पर निभानी है ज़रूरी..
काम है जो ज़िंदगी के वो निभाने भी ज़रूरी..
कांटो मे चाहे उलझी जाती है ये ज़िंदगी..फिर भी..
रो कर..या हस कर...'तन्हा' तुझे ज़िंदगी बितानी है यु ही ...
सच है ........ जीवन है तो कर्म तो करना ही पढ़ेगा .......... रस्में तो निभानी ही पड़ती हैं ........ बहुत अच्छी रचना है .......
सुंदर शब्दों के साथ बहुत सुंदर रचना....
बधाई...
bahut dardbhari rachna.
बहुत सुंदर रचना है।
बहुत सुंदर रचना है।
जलजले है गमो के, दामन भी कोई नही है..
सहारा होकेर भी वो मेरा सहारा नही है..
चिता जलती है खुशियो की..कोई राह भी नही है..
फिरती हू बोझ लिए कंधो पर गमो का यू ही..!!
yeh waqai me apne bin maange jawaab hai ...bahut khoobsurti se aapne har ek pankti ko batarteeb likha ...padhkar zahni khushi mili ....is naye kavita ke liye dher saari badhayiyan .... humne bhi do ghazal likhe hai ummeed hai aapko pasand aayege....
bahut saari subh kaanayein
Beautiful poem..itta sara dard liye huye hai !!!
सावन जो रह-रह कर मेरी आँखो मे आता है.
भूलने देता ही नही मेरी किस्मत की ठोकरो को..
जिसका मांजी,पतवार किनारा और मंज़िल भी है...
फिर भी बे-सहारा हू,अकेली हू, तन्हा यू ही..!!
bahut saari taklifo ko man me piroi hui rachna ,ati sundar
दर्द का बयान काबिले तारीफ है!
सुन्दर रचना!
बहुत डूब कर लिखा है आपने ...पसंद आई आपकी यह रचना ...शुक्रिया अपनी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी बहुत पसंद आई ..
सावन जो रह-रह कर मेरी आँखो मे आता है.
भूलने देता ही नही मेरी किस्मत की ठोकरो को..
जिसका मांजी,पतवार किनारा और मंज़िल भी है...
फिर भी बे-सहारा हू,अकेली हू, तन्हा यू ही..!!
khoobsurat andaz...bahut achchi post
बहुत ही सुन्दर और मनोहारी रचना....
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